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Chhattisgarh Assembly Election 2023: छत्तीसगढ़ में विधानसभा की एक ऐसी सीट, जहां कांग्रेस के वोटों का मीटर 30 हजार से चालू होता है और बीजेपी का जीरो से

Chhattisgarh Assembly Election 2023: बिलासपुर छत्तीसगढ़ का दूसरा बड़ा शहर है। बिलासपुर विधानसभा सीट को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है। इस सीट से 1977 की जनता पार्टी की लहर में भी कांग्रेस के बीआर यादव चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे। ऐसी कठिन सीट से बीजेपी के अमर अग्रवाल अगर चार बार चुनाव जीते हैं, तो इसमें उनके मैनेजमेंट को श्रेय जाता है।

Chhattisgarh Assembly Election 2023: छत्तीसगढ़ में विधानसभा की एक ऐसी सीट, जहां कांग्रेस के वोटों का मीटर 30 हजार से चालू होता है और बीजेपी का जीरो से
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By Sanjeet Kumar

Chhattisgarh Assembly Election 2023: बिलासपुर। हाईकोर्ट होने की वजह से बिलासपुर को छत्तीसगढ़ का न्यायधानी कहा जाता है। इस सीट से बीजेपी सरकार में 15 साल मंत्री रहे अमर अग्रवाल और कांग्रेस के वर्तमान विधायक शैलेष पाण्डेय आमने-सामने हैं। सरकार विरोधी लहर में अमर अग्रवाल 2018 का विधानसभा चुनाव 11 हजार वोटों से हार गए थे। इससे पहले वे 1998 से लेकर 2013 तक लगातार चुनाव जीते और चार बार विधायक बने। ये तब हुआ, जब बिलासपुर विधानसभा सीट को कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है। इसकी वजह यह है मुस्लिम और क्रिश्चियन मतदाता। छत्तीसगढ़ के 90 विधानसभा सीटों में बिलासपुर ऐसी सीट है, जहां सबसे अधिक मुस्लिम और क्रिश्चियन वोटर हैं। करीब 22 हजार मुस्लिम और 8 हजार ईसाई। कुल मिलाकर लगभग 30 हजार। ये कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक है। इसके अलावा 11 हजार करीब दलित मतदाता हैं। हालांकि, दलित मतदाताओं के वोट अब कांग्रेस को एकतरफा नहीं मिलते। फिर भी कांग्रेस इसमें भारी पड़ती है। राजनीति के जानकार भी स्वीकार करते हैं कि बिलासपुर में कांग्रेस का मीटर 30 हजार से शुरू होता है तो बीजेपी का जीरो से।

इसी वोट बैंक का नतीजा है कि बिलासपुर सीट से सिर्फ दो ही गैर कांग्रेसी प्रत्याशी चुनाव जीत पाए हैं, वो भी मार्जिनल वोटों से। 1990 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के मूलचंद खंडेलवाल करीब छह हजार वोट से बीआर यादव को हरा पाए। जबकि, उस वक्त हिन्दुत्व की बड़ी लहर थी। इसके तीन साल बाद 93 में जब चुनाव हुआ तो यादव ने लगभग 13 हजार वोटों से मूलचंद को हरा दिया। इसके बाद यादव लगातार दो चुनाव जीते। 1998 के विधानसभा चुनाव से पहले मढ़ाताल जमीन घोटाले में नाम आने से यादव को टिकिट नहीं मिली। पार्टी ने उनके बेटे को चुनाव मैदान में उतारा। इस चुनाव में अनिल टाह को पहले टिकिट मिल गई थी। मगर ऐन नामंकन के समय बी फार्म बदलकर यादव के बेटे राजू यादव को कांग्रेस पार्टी ने प्रत्याशी बना दिया। इससे नाराज होकर अनिल टाह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतर गए। त्रिकोणीय मुकाबले में बीजेपी के अमर अग्रवाल मात्र छह हजार वोटों से पहली बार विधायक बनने में कामयाब हो गए। इसके बाद अपने कुशल मैनेजेंट की वजह से अमर लगातार चार चुनाव जीते मगर वोटों का अंतर खास नहीं रहा। 2003 में वे नौ हजार, 2008 में 15 हजार और 2013 में लगभग 12 हजार मतों से उन्होंने चुनाव जीता।

मुस्लिम, क्रिश्चियन के परंपरागत वोट बैंक का ही नतीजा था कि रायबरेली से आए शैलेष पाण्डेय बिलासपुर से चुनाव लड़े और जीतने में कामयाब हो गए। छत्तीसगढ़िया वाद की लहर में भी कांग्रेस पार्टी ने शैलेष को टिकिट दिया। शैलेष को ब्राम्हण वोटों का फायदा मिला। बिलासपुर विधानसभा सीट में करीब 24 हजार ब्राम्हण हैं। सियासी प्रेक्षकों का मानना है, ये वोट शैलेष को एकतरफा मिले। मुस्लिम और क्रिश्चियन समुदाय में कांग्रेस की गहरी पैठ है ही। उपर से 15 साल की सरकार का एंटीइंकांबेंसी। इन सबसे एक साथ मिलने का ही नतीजा हुआ कि अमर अग्रवाल का प्रभाव नहीं चल पाया। वरना, अमर अग्रवाल का समाजों में अच्छी पकड़ थी। मंत्री रहते हुए उन्होंने खुले हाथों से समाजों को भवन से लेकर विभिन्न गतिविधियों के लिए मदद की थी। मगर ये तीनों फैक्टर उन पर भारी पड़ गए। इस बार एंटीइंकांबेंसी नहीं है। ब्राम्हण वोट भी शैलेष को इस बार एकतरफा नहीं पड़ना है। अब देखना है कि नतीजों का उंट इस बार किस करवट बैठता है।

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रायपुर। छत्तीसगढ़ की पुरातन नगरी बिलासपुर को हाई कोर्ट की वजह से न्यायधानी कहा जाता है। रायपुर के बाद सूबे का यह दूसरा बड़ा शहर है। बिलासपुर में अब तक 15 विधानसभा चुनाव हुए हैं। छत्तीसगढ़ राज्य गठन से पहले 11 और बाद में चार। इन चुनावों के जरिए बिलासपुर को अब तक कुल 7 विधायक मिले हैं। इनमें कांग्रेस के बीआर यादव और भाजपा के अमर अग्रवाल ने 4-4 चुनाव जीता। वहीं, कांग्रेस के शिवदुलारे रामाधीन और रामचरण राव ने 2-2 बार यहां के विधायक चुने गए। लेकिन कांग्रेस के श्रीधर मिश्रा और भाजपा के मूलचंद खंडेलवाल ऐसे विधायक रहे, जो रिपीट नहीं हो पाए। ऐसे में अब बिलासपुर के वर्तमान विधायक शैलेष पाण्डेय पर सबकी निगाहें रहेंगी। नजर इसलिए रहेगी कि क्या वे इस मिथक को तोड़ पाएंगे।

अब बात करते हैं बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र में हुए अब तक के चुनावों की। साल 1951 में जब बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र में पहला चुनाव हुआ तो कांग्रेस ने शिवदुलारे रामाधीन को अपना प्रत्याशी बनाया। वहीं उनके सामने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में रामचरण राय थे। चुनाव के बाद जब परिणाम सामने आए तो शिवदुलारे को 13958 वोट मिले, जबकि रामचरण को महज 3681 वोट से संतुष्ट होना पड़ा। इस तरह शिवदुलारे ने यह चुनाव 10277 वोट के अंतर से जीतकर बिलासपुर के पहले विधायक बनें। 1957 में हुए दूसरे चुनाव में एक बार फिर से शिवदुलारे ने जीत दर्ज की, लेकिन इस बार जीत का मार्जिन 1022 रह गया।

यहां 15 चुनाव हुए, 10 कांग्रेस, 5 चुनाव भाजपा ने जीता

बिलासपुर विधानसभा में अब तक 15 चुनाव हुए हैं। साल 1951 से लेकर 1985 तक के चुनाव में यहां कांग्रेस कभी नहीं हारी, लेकिन 1990 के चुनाव में कांग्रेस के तीन बार के विधायक बीआर यादव के सामने भाजपा के मूलचंद खंडेलवाल को दोबारा उतारा गया। इस चुनाव में बीजेपी को 43043 वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 35467 वोट। इस तरह भाजपा को पहली बार बिलासपुर से जीत मिली। हालांकि इसके ठीक 3 साल बाद 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में खंडेलवाल चुनाव हार गए और बीआर यादव चौथी बार बिलासपुर से विधायक चुने गए। भाजपा के अमर अग्रवाल ने इस सीट से 1998 में पहली बार जीत दर्ज की। इसके बाद वे 2003, 2008 और 2013 में भी विधायक चुने गए। साल 2018 के चुनाव में अमर अग्रवाल को हार का सामना करना पड़ा। विस्‍तार से पढ़ने के लिए यहां क्‍लीक करें



Sanjeet Kumar

संजीत कुमार: छत्‍तीसगढ़ में 23 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। उत्‍कृष्‍ट संसदीय रिपोर्टिंग के लिए 2018 में छत्‍तीसगढ़ विधानसभा से पुरस्‍कृत। सांध्‍य दैनिक अग्रदूत से पत्रकारिता की शुरुआत करने के बाद हरिभूमि, पत्रिका और नईदुनिया में सिटी चीफ और स्‍टेट ब्‍यूरो चीफ के पद पर काम किया। वर्तमान में NPG.News में कार्यरत। पंड़‍ित रविशंकर विवि से लोक प्रशासन में एमए और पत्रकारिता (बीजेएमसी) की डिग्री।

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