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High Court News: कर्मचारियों के लिए हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: कोर्ट ने राज्य सरकार के आदेश को किया रद्द, कहा- लंबे समय बाद किसी कर्मचारी के वेतन से....

High Court News: हाई कोर्ट के इस फैसले से राज्य सरकार के कर्मचारियों को काफी राहत मिलेगी। तकनीकी शिक्षा विभाग के एक प्राचार्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने साफ कहा कि लंबे समय पर किसी कर्मचारी के वेतन से वसूली नहीं की जा सकती। विभाग के आदेश को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता प्रिंसिपल से रिकवरी की गई तो राशि तीन महीने के भीतर लौटानी होगी।

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High Court News

By Radhakishan Sharma

High Court News: बिलासपुर। जस्टिस एके प्रसाद ने तकनीकी शिक्षा विभाग के प्रिंसिपल की याचिका पर सुनवाई के बाद महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। यह फैसला राज्य सरकार के लाखों कर्मचारियों के हित में है। प्रिंसिपल से विभाग ने यह कहते हुए वेतन से रिकवरी का आदेश जारी कर दिया था। 16 साल बाद जारी रिकवरी आदेश को प्रिंसिपल ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में तकनीकी शिक्षा विभाग द्वारा जारी वेतन वसूली के आदेश को खारिज करते हुए कर्मचारी को बड़ी राहत दी है। जस्टिस एके प्रसाद के सिंगल बेंच ने अपने आदेश में लिखा है कि 16 साल बाद की जाने वाली वसूली पूरी तरह से अनुचित, अन्यायपूर्ण और कानून के विरुद्ध है।

मामला एक सरकारी सेवक का है, जो वर्ष 1996 में तकनीकी शिक्षा विभाग में व्याख्याता Lecturer के रूप में नियुक्त हुआ और पदोन्नति पाकर प्राचार्य के पद तक पहुंचा। विभाग ने 21 दिसंबर 2022 को आदेश जारी कर यह कहते हुए उसके वेतन से वसूली शुरू कर दी कि 2006 से उसे अधिक वेतन दिया गया है। वेतन निर्धारण विभागीय अधिकारियों ने ही वैध आदेशों के तहत किया था और इसमें कर्मचारी की कोई भूमिका नहीं थी।

रिकवरी आदेश को चुनौती देते हुए प्रिंसिपल ने अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी और दीक्षा गौराहा के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई जस्टिस एके प्रसाद के सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करती हुई अधिवक्ता दीक्षा गौराहा ने सुप्रीम कोर्ट के स्टेट ऑफ पंजाब बनाम रफीक मसीह (2015) के मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि विभाग द्वारा 16 वर्ष बाद की जा रही वसूली, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा है कि यदि अधिक भुगतान कर्मचारी की किसी धोखाधड़ी, गलत बयानी या तथ्य छिपाने के कारण नहीं हुआ है, तो वसूली नहीं की जा सकती। इस सिद्धांत की पुष्टि बाद में थॉमस डेनियल (2022) और जोगेश्वर साहू (2023) मामलों में भी की जा चुकी है।

लंबे समय बाद रिवकरी न्यायसंगत नहीं है

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि रिकॉर्ड में कहीं भी ऐसा नहीं है कि कर्मचारी ने विभाग को गुमराह किया हो या किसी तरह का गलत ब्योरा दिया हो। वेतन निर्धारण पूरी तरह से सक्षम प्राधिकारी के आदेशों से हुआ है और कर्मचारी ने केवल वही वेतन प्राप्त किया जो विभाग ने स्वयं तय किया था। इतने लंबे समय बाद वसूली करना केवल न्यायसंगत ही नहीं बल्कि कर्मचारी के आर्थिक जीवन पर असंगत बोझ डालने जैसा है। कोर्ट ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता पहले से ही शिक्षा ऋण और आवास ऋण के भारी बोझ तले दबा है, और वसूली होने पर उस पर असहनीय आर्थिक संकट आ सकता है।

रिकवरी की राशि तीन महीने के भीतर लौटानी होगी

सिंगल बेंच ने 21 दिसंबर 2022 के विभागीय आदेश को निरस्त करते हुए वसूली पर रोक लगा दी। साथ ही यह निर्देश भी दिया कि यदि विभाग ने पहले से कोई राशि वसूल की है, तो उसे तीन माह के भीतर कर्मचारी को लौटाना होगा। हालांकि अदालत ने विभाग को यह स्वतंत्रता दी है कि वह भविष्य में नियमों के अनुसार वेतन निर्धारण में संशोधन कर सकता है, बशर्ते कर्मचारी को सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाए। इस आदेश से न केवल याचिकाकर्ता को बड़ी राहत मिली है, बल्कि राज्य के अन्य कर्मचारियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण नजीर स्थापित हुई है।


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