High Court News: हाई कोर्ट की तल्ख टिप्पणी- किसानों को नुकसान पहुंचाने वाली बीज कंपनी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती, इसलिए कार्रवाई जरुरी
High Court News: हाई कोर्ट ने बीज कंपनी की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दायर एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि किसानों को भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाने वाली कंपनी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती।
High Court News: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने किसानों से धोखाधड़ी के मामले में बीज कंपनी द्वारा दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग को लेकर दायर याचिका को खारिज कर दिया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस एके. प्रसाद की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि किसानों को भारी नुकसान पहुंचाने वाली कंपनी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती।
मामला कोंडागांव जिले से संबंधित है। गोकुल प्रधान और अन्य किसानों ने विगोर बायोटेक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के वितरक शंकर कृषि केंद्र, रंधना से चंचल हाइब्रिड धान बीज खरीदा था। किसानों ने आरोप लगाया है कि यह बीज खराब गुणवत्ता का था, जिससे किसानों की फसल नष्ट हो गई और उन्हें बड़ा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा। इस मामले में गोकुल प्रधान ने कंपनी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) और 34 (सामूहिक आपराधिक इरादा) के तहत फरसगांव थाने में एफआईआर दर्ज कराई।
एफआईआर रद्द करने कंपनी ने हाई कोर्ट में दायर की थी याचिका
विगोर बायोटेक प्राइवेट लिमिटेड ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर एफआईआर को रद्द करने की मांग की। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के कोर्ट को बताया कि यह विवाद सिविल प्रकृति का है और शिकायतकर्ता ने उन्हें परेशान करने के लिए यह शिकायत दर्ज कराई है। राज्य शासन की ओर से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता कार्यालय के विधि अधिकारी ने कहा कि एफआईआर दर्ज होने के बाद इस पूरे मामले की जांच होनी चाहिए। किसानों ने अगर आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई है तो तकनीकी दृष्टि से पूरे मामले की जांच हो। बीजों की प्रमाणिकता की जांच भी जरुरी है।
कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी के साथ हस्तक्षेप से किया इंकार
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि याचिकाकर्ता कंपनी और डिस्ट्रीब्यूटर्स के खिलाफ संज्ञेय अपराध का संकेत मिलता है। लिहाजा एफआईआर को रद्द करने के लिए बीएनएस की धारा 528 के अंतर्गत हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा। जरुरी टिप्पणी के साथ डिवीजन बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया है।