High Court News: चीफ जस्टिस के सामने 18 साल के युवा ने अपने मामले की ख़ुद की पैरवी: बहस सुन मुरीद हुए चीफ जस्टिस और सुनाया ये फैसला
High Court News: पुलिस द्वारा झूठे मामले में फंसा कर एफआईआर दर्ज कर दी. इसे चुनौती देते हुए युवा ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपने मामले की ख़ुद पैरवी की. युवा की प्रभावशाली पैरवी से चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा प्रभावित हुए बीना न्ही रहे. पढ़िये चीफ जस्टिस ने क्या फैसला सुनाया है।

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बिलासपुर. पुलिस द्वारा झूठे मामले में फंसा कर एफआईआर दर्ज कर दी. इसे चुनौती देते हुए युवा ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपने मामले की ख़ुद पैरवी की. युवा की प्रभावशाली पैरवी से चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा प्रभावित हुए बीना नहीं रहे. मामले की सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस ने दोनों याचिका को मंजूर करते हुए एफआईआर और कार्रवाई निरस्त करने का आदेश दिया है.
आईपी एड्रेस के आधार पर सायबर क्राइम में फंसाए गए एक किशोर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर प्रभावशाली ढंग से खुद अपनी पैरवी की. प्रस्तुत कथनों और दस्तावेजों के आधार पर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज सभी एफआईआर निरस्त कर दोनों ही याचिकाएं मंजूर कर ली है.
डिविज़न बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का स्पष्ट दुरुपयोग होगा. अभय सिंह राठौर ने पुलिस थाना तारबाहर, बिलासपुर में एफआईआर दर्ज कराई, थी, जिसमें आरोप लगाया कि मई-जून 2022 के दौरान, क्षितिज समेत कई व्यक्तियों ने बैंक कर्मचारी जय दुबे के साथ मिलकर बैंक खाते खोले. महादेव सट्टा ऐप चलाने के उद्देश्य से एक जाली कंपनी बनाई. इस पर आईपीसी की धारा 420 और 34 तथा जुआ अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत पुलिस ने अपराध दर्ज किया.
क्षितिज भारद्वाज के कथन के आधार पर याचिकाकर्ता का नाम बाद में सह-अभियुक्त के रूप में जोड़ दिया. एक अन्य प्रतिवादी डी. भास्कर राव ने भी पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई कि, एक अज्ञात व्यक्ति ने शिकायतकर्ता के भतीजे के नाम से फर्जी इंस्टाग्राम आईडी बनाकर आपत्तिजनक तस्वीरें भेजने धमकी भरे संदेश भेजे. जाँच के दौरान याचिकाकर्ता पीयूष गंगवानी( 18 वर्ष ) को केवल एक आईपी एड्रेस के आधार पर फंसाया गया, जबकि इसका कोई ठोस सबूत नहीं था. थाने में जबरन कागज़ों पर हस्ताक्षर कराकर अदालत में पेश किया गया और एफआईआर की जानकारी दिए बिना ही हिरासत में भेज दिया गया.
जाली दस्तावेज़ों के आधार पर झूठा फंसाया
याचिकाकर्ताओं गंगवानी ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में दो अलग अलग क्रिमिनल मिस्लेनियस पिटीशन दाखिल की. याचिकाकर्ता ने चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस विभु दत्त गुरु की डीबी में खुद पैरवी करते हुए तर्क दिया कि पुलिस अधिकारियों और निजी प्रतिवादी डी. भास्कर राव की मिलीभगत से तैयार जाली दस्तावेज़ों, जाली हस्ताक्षरों और हेरफेर किए गए रिकॉर्ड के आधार पर उसे झूठा और दुर्भावनापूर्ण तरीके से फंसाया गया है. उसके डिवाइस का इस्तेमाल नहीं हुआ.
हाई कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा
डीबी ने अपने आदेश में कहा कि, साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी के तहत प्रस्तुत साइबर सेल की रिपोर्ट यह स्थापित करती है कि, याचिकाकर्ता के डिवाइस का इस्तेमाल कथित फर्जी इंस्टाग्राम अकाउंट को संचालित करने के लिए नहीं किया गया. प्रथम दृष्टया दुर्भावनापूर्ण अभियोजन है. डीबी ने कहा कि, याचिकाकर्ता, राज्य के अधिवक्ता और प्रस्तुत प्रस्तुतियों और अभिलेखों में प्रस्तुत सामग्री पर विचार करने के बाद, न्यायालय का निष्कर्ष है कि याचिकाकर्ता पर प्रथम दृष्टया दुर्भावनापूर्ण अभियोजन, कष्टदायक कार्यवाही और प्रक्रियात्मक अनियमितताओं का आरोप लगाया गया है. सभी कार्रवाई और एफएआईआर निरस्त की जाती हैं. सह-अभियुक्तों के विरुद्ध कार्यवाही कानून के अनुसार जारी रहेगी.
