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हाई कोर्ट के फैसले से राज्य शासन को मिली राहत, आधा दर्जन ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत में अपग्रेड करने के निर्णय को ठहराया सहीं...

High Court: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच के फैसले ने राज्य सरकार को बड़ी राहत दी है। डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले को रद्द करते हुए आधा दर्जन ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत में अपग्रेड कर नगर पंचायत का दर्जा देने के शासन के निर्णय को सही ठहराया है। इसके साथ ही डिवीजन बेंच ने सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है।

हाई कोर्ट के फैसले से राज्य शासन को मिली राहत, आधा दर्जन ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत में अपग्रेड करने के निर्णय को ठहराया सहीं...
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By Radhakishan Sharma

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने राज्य शासन की अपील को स्वीकार करते हुए सिंगल बेंच के आदेश को रद्द कर दिया है। डिवीजन बेंच ने आधा दर्जन ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत का दर्जा देने संबंधी राज्य शासन द्वारा जारी अधिसचूना को उचित ठहराया है। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में सु्प्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय का भी हवाला दिया है। डिवीजन बेंच ने इसके साथ ही सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है।

मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि जब किसी कार्यकारी आदेश पर सवाल उठाया जाता है, तो न्यायिक समीक्षा की शक्ति का प्रयोग करते समय न्यायालय को यह देखना आवश्यक है कि क्या सरकार ने नियमों से विचलन किया है ,यदि ऐसा है, तो सरकार की कार्रवाई को रद्द किया जा सकता है। राज्य सरकार ने 27.06.2024 को अधिसूचना जारी कर छत्तीसगढ़ नगर पालिका अधिनियम, 1961 के प्रावधानों के तहत 8 विभिन्न नवगठित नगर पंचायतों के कार्यों को निष्पादित करने के लिए विभिन्न समितियों का गठन किया था। राज्य शासन द्वारा जारी इस अधिसूचना को नितेश कुमार बंजारे, महेंद्र कुमार श्रीवास, डोमेश्वर यादव एवं 10 अन्य ने अपने अधिवक्ताओं के जरिए अलग -अलग याचिका दायर कर चुनौती दी थी। राज्य सरकार ने अधिसूचना के तहत ग्राम पंचायतों को अपग्रेड कर नगर पंचायत का दर्जा दिया था। याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा है कि 1961 के अधिनियम की धारा 5 (1) के तहत संबंधित ग्राम पंचायत, जिसके पास अधिकार क्षेत्र था, इसे तब तक कार्य करना जारी रखना था जब तक कि 1961 के अधिनियम के तहत विधिवत निर्वाचित नगर पंचायत का गठन नहीं हो जाता। पक्षों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने नगर पंचायत सकरी, सरसीवां, जनकपुर, कोपरा और पवनी व नगर पंचायत मरवाही से संबंधित राज्य शासन द्वारा अधिसूचना को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि चूंकि मरवाही का गठन तीन ग्राम पंचायतों लोहारी, मरवाही और कुम्हारी को मिलाकर किया गया था, इसलिए राज्य सरकार अधिनियम 1961 की धारा 5(1) के दूसरे प्रावधान को ध्यान में रखते हुए समिति का पुनर्गठन करे।

0 सिंगल बेंच के फैसले को शासन ने डिवीजन बेंच में दी थी चुनौती

सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए राज्य शासन ने महाधिवक्ता कार्यालय के विधि अधिकारी के माध्यम से डिवीजन बेंच में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच में हुई। राज्य शासन की ओर से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता कार्यालय के विधि अधिकारी ने कहा कि ,अधिनियम, 1961 की धारा 5 के दूसरे प्रावधान के तहत प्रतिबंध केवल "संक्रमणकालीन क्षेत्र" के संबंध में लागू है। संक्रमणकालीन क्षेत्र 1961 के अधिनियम की धारा 5 (बी) के तहत परिभाषित है।

0 क्या है अधिनियम 1961 की धारा 5

1961 के अधिनियम की धारा 5, विशेष रूप से 5 (ए) और 5 (बी) का मात्र अवलोकन करने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि संक्रमणकालीन क्षेत्र केवल ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में संक्रमण के दौर से गुजर रहे क्षेत्र को संदर्भित करता है और संक्रमणकालीन क्षेत्र की अवधि का अर्थ केवल उस तिथि से होगा जिस दिन राज्य सरकार ने ग्राम पंचायत को नगर पंचायत में अपग्रेड करने के अपने इरादे को अधिसूचित किया था।

0 सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवाला,याचिकाओं को किया खारिज

मामले की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने माना कि यह अच्छी तरह से स्थापित है कि कोई भी कार्यकारी निर्देश क़ानून या वैधानिक नियमों को रद्द नहीं कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने ललित मोहन देब बनाम भारत संघ ((1973) 3 एससीसी 862) के मामले की सुनवाई के बाद यह कहा कि कार्यकारी निर्देश नियमों के अनुरूप होने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि सिंगल बेंच द्वारा की गई टिप्पणियों और निष्कर्षों से डिवीजन बेंच असहमत है। इस टिप्पणी के साथ डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले को रद्द कर दिया है। राज्य सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है।

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