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Bilaspur High Court: हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, सरकारी टेंडर और एग्रीमेंट विवादों की सुनवाई अब डिवीजन बेंच में होगी

सरकारी निकायों के टेंडर और अनुबंध को लेकर होने वाले विवादों का निपटारा अब डिवीजन बेंच करेगा। हाई कोर्ट के फुल बेंच ने हाई कोर्ट नियमावली, 2007 के नियम 23(1)(iv) से संबंधित नियमों को समझने में हो रही गलती को अब साफ कर दिया है। फुल बेंच ने कहा है कि राज्य सरकार, सार्वजनिक उपक्रम, स्थानीय निकाय व वैधानिक निकायों से संबंधित सभी टेंडर व अनुबंध मामलों की सुनवाई डिवीजन बेंच द्वारा की जाएगी।

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Bilaspur High Court

By Radhakishan Sharma

बिलासपुर। हाई कोर्ट नियमावली में दी गई बातों और शर्तों को समझने में हो रही चूक को लेकर बीते दिनों हाई कोर्ट के फुल बेंच बैठी। फुल बेंच ने साफ कहा है कि राज्य सरकार, सार्वजनिक उपक्रम, स्थानीय निकाय व वैधानिक निकायों से संबंधित सभी टेंडर व अनुबंध मामलों की सुनवाई डिवीजन बेंच द्वारा की जाएगी। हाई कोर्ट नियमावली, 2007 के नियम 23(1)(iv) में यह पहले से ही प्रावधान है कि सरकारी टेंडर व एग्रीमेंट से जुड़ी विवादों के चलते दायर की जाने वाली रिट याचिकाओं की सुनवाई डिवीजन बेंच में होगी। 4 अप्रैल, 2017 को एक अधिसूचना के जरिए इस नियम को संशोधित कर दिया गया। संशोधन के बाद यह तय कर दिया गया कि अनुबंध व टेंडर के आवंटन या समाप्ति को लेकर विवाद की स्थिति बनने और याचिका दायर करने पर इसकी सुनवाई डिवीजन बेंच में होगी।

पूर्व के नियमों में संशोधन के बाद भ्रम की स्थिति बनी कि अन्य मुद्दों से जुड़ी याचिकाएं मसलन शोकाज नोटिस आदि की सुनवाई सिंगल बेंच में होगी या फिर मामला डिवीजन बेंच में जाएगा। भ्रम की स्थिति को दूर करने और हाई कोर्ट नियमावली को स्पष्ट करने के लिए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की अगुवाई में जस्टिस एनके व्यास और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की फुल कोर्ट बैठी। फुल कोर्ट ने कहा कि भ्रम की स्थिति को दूर करते हुए कोर्ट ने कहा कि सरकार,सार्वजनिक उपक्रम, स्थानीय निकाय, वैधानिक निकाय से संबंधित अनुबंध व टेंडर के सभी मामलों की सुनवाई डिवीजन बेंच द्वारा की जाएगी। फुल कोर्ट ने यह भी व्यवस्था दी है कि नियम 23 (1) (iv) को उसके मूल रूप (2017 की अधिसूचना से पूर्व) में प्रभावी माना जाना जाएगा।

इसलिए उठा सवाल-

एक याचिका की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच द्वारा दिए गए फैसले के बाद यह स्थिति बनी और हाई कोर्ट नियमावली का विस्तृत अध्ययन और दी गई व्यवस्था को प्रभावी ढंग से लागू करने का निर्णय लिया गया। डिवीजन बेंच ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट रूल्स 2007 की धारा 35 के तहत किया गया। दो सवाल उठाए गए थे। पूछा था कि जब किसी टेंडर व एग्रीमेंट को लेकर शो-कॉज नोटिस को चुनौती दी जाती है जो सीधेतौर पर सरकार, उपक्रम, निकाय आदि से जुड़ा हो तो क्या उसे डिवीजन बेंच सुनेगी या सिंगल बेंच। अनुबंध व टेंडर का आवंटन या समाप्ति के विवाद से संबंधित याचिका की सुनवाई डिवीजन बेंच में होगी।

याचिकाकर्ता एक, अलग-अलग बेंच से आया अलग-अलग फैसला-

दरअसल फुल कोर्ट के सामने यह सवाल इसलिए उठा कि एक याचिकाकर्ता ने एक ही मुद्दे को लेकर सिंगल व डिवीजन बेंच में अलग-अलग याचिका दायर की थी। डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद कहा कि अगर मामला टेंडर आवंटन, शर्तें व टेंडर निरस्त करने से जुड़ा है तो सुनवाई डिवीजन बेंच में होगी। डिवीजन बेंच ने यह भी कहा कि अगर मामला ठेका कंपनी को ब्लैक लिस्ट करने से है तो इसे सिंगल बेंच के समक्ष सुनवाई के लिए रखा जा सकता है। डिवीजन बेंच के इसी फैसले के चलते हाई कोर्ट रूल्स में दी गई बातों व नियमों को लेकर भ्रम की स्थिति बन गई। फुल बेंच ने कहा कि डिवीजन बेंच द्वारा की तय की गई शर्तों को स्वीकार करने का कोई औचित्य नजर नहीं आता। इस टिप्पणी के साथ फुल कोर्ट ने हाई कोर्ट रूल्स 2007 के नियम 23(1)(iv) को उसके संशोधन से पहले की स्थिति में लागू करने का निर्देश दिया है। फुल कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय को उचित कार्रवाई का निर्देश दिया

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