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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश, आपराधिक प्रकरण व विभागीय जांच एकसाथ चलन योग्य नहीं

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने आरक्षक की याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। जस्टिस एके प्रसाद के सिंगल बेंच ने कहा है कि किसी मामले में यदि संबंधित के खिलाफ पहले से आपराधिक प्रकरण दर्ज है और न्यायालय में मामला चल रहा है, तो ऐसी स्थिति में विभागीय जांच साथ-साथ नहीं चलाई जा सकती। कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा है कि आपराधिक प्रकरण और विभागीय जांच साथ-साथ चलन योग्य नहीं है। याचिकाकर्ता कांस्टेबल डीएल पठारे ने अधिवक्ता अभिषेक पांडेय के जरिए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।

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Bilaspur High Court

By Radhakishan Sharma

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने एक आरक्षक की याचिका पर महत्वपूर्ण आदेश सुनाया है। कोर्ट ने दुर्ग एसपी द्वारा जारी विभागीय जांच आदेश पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा है कि अगर समान आरोप में आपराधिक प्रकरण न्यायालय में लंबित है तो साथ-साथ विभागीय जांच नहीं कराई जा सकती। एक ही साथ दोनों चलन योग्य नहीं है। कोर्ट ने विभागीय जांच पर रोक लगाते हुए पहले गवाहों का न्यायालय में परीक्षण कराने का आदेश दिया है।

कोर्ट में आपराधिक प्रकरण लंबित रहने के दौरान दुर्ग एसपी द्वारा जारी विभागीय जांच के आदेश को चुनौती देते हुए कांस्टेबल डीएल पठारे ने अधिवक्ता अभिषेक पांडेय के जरिए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। दायर याचिका में याचिकाकर्ता कांस्टेबल ने कोर्ट को बताया कि वह पुलिस थाना पाटन, जिला दुर्ग में पुलिस विभाग में आरक्षक के पद पर पदस्थ था। पदस्थापना के दौरान 10 सितम्बर 2024 को उसके विरूद्ध पुलिस थाना पाटन में एक अपराध पंजीबद्ध किया गया। जुर्म दर्ज करने के साथ ही टीआई पाटन ने कोर्ट में चालान पेश किया। आपराधिक प्रकरण कोर्ट में लंबित है। इसी दौरान एसपी दुर्ग ने समान आरोप में उसे आरोप पत्र जारी कर विभागीय कार्रवाई प्रारंभ करने का आदेश जारी कर दिया।

मामले की सुनवाई जस्टिस एके प्रसाद के सिंगल बेंच में हुई। प्रकरण की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता अभिषेक पांडेय ने कहा कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध दर्ज आपराधिक प्रकरण पर न्यायालय में मामला चल रहा है। वर्तमान में यह प्रकरण लंबित है। समान आरोप में एसपी दुर्ग ने आरोप पत्र जारी कर विभागीय जांच का आदेश जारी कर दिया है। दोनों ही कार्रवाई में अभियोजन और गवाह समान हैं। अधिवक्ता पांडेय ने कोर्ट को बताया कि आपराधिक प्रकरण से पूर्व विभागीय जांच में गवाहों का परीक्षण पूरा कर लिया जाता है तो ऐसी स्थिति में याचिकाकर्ता के बचाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इससे याचिकाकर्ता को नुकसान उठाना पड़ेगा।

अधिवक्ता पांडेय ने यह भी कहा कि यह नैसर्गिक और प्राकृतिक न्याय सिद्धांत का उल्लंघन होगा। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता पांडेय ने गवाहों का सबसे पहले आपराधिक मामले में परीक्षण कराने की मांग की। मामले की सुनवाई जस्टिस एके प्रसाद के सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के तर्कों व मांग से सहमति जताते हुए हाई कोर्ट ने रिट याचिका को स्वीकार कर लिया है। कोर्ट ने विभागीय जांच पर रोक लगाते हुए सबसे पहले गवाहों का परीक्षण आपराधिक प्रकरण में कराने का निर्देश दिया है।

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