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Bilaspur High Court: योग के बहाने नमाज पढ़वाने का मामला, हाईकोर्ट ने प्रोफेसरों की FIR रद्द करने से किया इनकार

योग के बहाने गुरुघासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्रों को नमाज पढ़ने मजबूर करने वाले प्रोफेसरों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से हाई कोर्ट ने इंकार कर दिया है। डिवीजन बेंच ने प्रोफेसर की याचिका को खारिज कर दिया है।

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Bilaspur High Court

By Radhakishan Sharma

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई काेर्ट ने गुरुघासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इंकार कर दिया है। प्रोफेसर पर आरोप है कि एनएसएस कैंप के दौरान योग के बहाने हिंदू छात्रों को जबरन नमाज पढ़ने मजबूर किया है। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने प्रोफेसर की याचिका खारिज कर दी है। बिलासपुर हाईकोर्ट ने बिलासपुर जिले के कोटा में गुरुघासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सेवा योजना NSS कैंप में हिंदू छात्रों को योग के बहाने नमाज पढ़ने के लिए मजबूर करने के आरोपी सात सहायक प्रोफेसरों के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने से इंकार किया। गुरुघासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम करते हुए याचिकाकर्ता प्राध्यापकों को 26 मार्च से 01 अप्रैल, 2025 के बीच आयोजित NSS शिविर की निगरानी के लिए नियुक्त किया गया था।

शिविर में भाग लेने वाले तीन स्टूडेंट्स ने कोनी थाने में प्रोफेसरों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। इन छात्रों की शिकायत के बाद कोनी पुलिस ने प्राध्यापकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। छात्रों ने अपनी शिकायत में कहा है कि प्राध्यापक यह जानते हैं कि वे सभी हिंदू हैं। हिंदू धर्म के अनुयायी होने के बाद भी योग करने के बहाने हम सभी को नमाज पढ़ने के लिए मजबूर किया गया है। याचिकाकर्ता प्राध्यापकों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 190 (गैरकानूनी सभा), 196(1)(बी) (विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच सद्भाव बनाए रखने के लिए प्रतिकूल कार्य), 197(1)(बी) (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक आरोप, दावे), 197(1)(सी) (असहमति पैदा करने की संभावना वाले दावे), 299 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य) और 302 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से शब्द बोलना) और छत्तीसगढ़ धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 की धारा 4 के तहत FIR दर्ज की गई।

याचिकाकर्ता प्राध्यापकों ने कहा राजनीति से प्रेरित है शिकायत-

याचिकाकर्ता प्राध्यापकों ने तर्क दिया कि लिखित शिकायत राजनीति से प्रेरित लगती है, क्योंकि इसे 14-15 दिनों के विलंब के बाद दर्ज किया गया था। प्राध्यापकों ने कहा कि 150 हिंदू स्टूडेंट्स इस कार्यक्रम में शामिल हुए, उनमें से केवल तीन ने ही इस तरह के आरोप लगाए, जिसका उन्होंने पूरी तरह से खंडन किया। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने कहा कि इस कार्यक्रम में मुस्लिम धर्म से संबंधित केवल चार स्टूडेंट ने भाग लिया, जिन्होंने नमाज़ अदा की। अधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता प्राध्यापकों ने किसी भी हिंदू स्टूडेंट को नमाज़ पढ़ने के लिए मजबूर नहीं किया। याचिकाकर्ता प्राध्यापकों के अधिवक्ता ने एफआईआर को रद्द करने की मांग की।

राज्य सरकार ने कहा, आराेप गंभीर प्रकृति का है-

राज्य शासन की ओर से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता कार्यालय के ला अफसरों ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए एफआईआर को रद्द ना करने की बात कही। ला अफसरों ने कहा कि प्राध्यापकों के खिलाफ लगाए गए आरोप गंभीर प्रकृति के हैं।

मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी करना या हस्तक्षेप करना उचित नहीं-

मामले की सुनवाई जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस राकेश मोहन पांडेय के डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता पहले से ही जमानत पर हैं। मामले की जांच चल रही है और अभी तक आरोप पत्र दायर नहीं किया गया। इस स्तर पर मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी करना या हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा। डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ताओं को राहत देने से इंकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया है।

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