Bilaspur High Court: तय नियमों के तहत हो नर्सिंग होम या क्लिनिकल सेंटर के खिलाफ कार्रवाई, SDM ने नियम विपरीत कर दी है कार्रवाई- हाई कोर्ट
Bilaspur High Court: नर्सिंग होम या क्लिनिकल सेंटर के खिलाफ कार्रवाई को लेकर बिलासपुर हाई कोर्ट ने जरुरी दिशा निर्देश जारी किया है। सिंगल बेंच ने कहा कि तय नियमों और मापदंडों का पालन करना अनिवार्य है। संबंधित अधिकारी उस नर्सिंग होम या क्लिनिकल प्रतिष्ठान को 30 दिन का नोटिस देगा जिसका लाइसेंस रद्द या निलंबित किया जाना है। नोटिस में वह कारण और आधार शामिल होगा जिसके आधार पर लाइसेंस रद्द या निलंबित किया जाना है। सरायपाली के मैट्रिकेयर हॉस्पिटल एंड फर्टिलिटी सेंटर को एसडीएम द्वारा सीलबंद कार्रवाई को कोर्ट ने अनुचित ठहराते हुए आगामी आदेश तक सील खोलने का आदेश दिया है। मैट्रिकेयर हॉस्पिटल एंड फर्टिलिटी सेंटर के संचालक ने शिबाशीष बेहरा ने अधिवक्ता मतीन सिद्धीकी व अभ्युदय त्रिपाठी के माध्यम से याचिका दायर की थी।

High Court News
Bilaspur High Court: बिलासपुर। नर्सिंग होम व क्लिनिकल सेंटर के खिलाफ कार्रवाई को लेकर हाई कोर्ट ने जरुरी गाइड लाइन जारी किया है। सरायपाली में संचालित मैट्रिकेयर हॉस्पिटल एंड फर्टिलिटी सेंटर को महासमुंद एसडीएम ने सीलबंद कर दिया था। इसके खिलाफ संचालक शिबाशीष बेहरा ने अधिवक्ता मतीन सिद्धीकी व अभ्युदय त्रिपाठी के माध्यम से याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने एसडीएम की कार्रवाई को नियम विपरीत मानते हुए आगामी आदेश तक मैट्रिकेयर हॉस्पिटल एंड फर्टिलिटी सेंटर का सील खोलने का आदेश दिया है।
हॉस्पिटल सरायपाली के संचालक शिबाशीष बेहरा के विरुद्ध प्रशांत कुमार साहू ग्राम छिंदपाली तहसील सरायपाली निवासी ने पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में लिखा है कि लापरवाही पूर्ण इलाज करने के कारण उसकी पत्नी विकलांग हो गई है। शिकायत के अनुसार डा शिबाशीष बेहरा ने 10 अक्टूबर 2024 को उसकी पत्नी का ऑपरेशन किया था। सही तरीके से ना करने के कारण विकलांगता की स्थिति बन गई है। शिकायतकर्ता अपनी शिकायत में यह भी लिखा है कि बाद में उन्हें पता चला कि मैट्रिकेयर हॉस्पिटल एंड फर्टिलिटी सेंटर के संचालक के पास MBBS, MD की योग्यता है। MS के रूप में योग्य नहीं है और ना ही वह सर्जन है। लिहाजा वह सर्जरी करने में अक्षम है। शिकायत के अनुसरण में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी CMHO जिला- महासमुंद ने संबंधित मामले की जांच के लिए 20. जनवरी 2025 के पत्र द्वारा 4 सदस्यीय समिति का गठन कियाथा। इसके बाद, उपमंडल अधिकारी, सरायपाली, जिला- महासमुंद द्वारा 28 जून 2024 को आपत्तिजनक कार्रवाई की गई, जिसके तहत याचिकाकर्ता को कोई कारण बताओ नोटिस या जब्ती ज्ञापन जारी किए बिना, याचिकाकर्ता के अस्पताल को सीलबंद कर दिया गया।
अधिवक्ता सिद्धीकी ने कोर्ट के समक्ष पेश किया ये तर्क
याचिकाकर्ता केअधिवक्ता मतीन सिद्दीकी ने कोर्ट के समक्ष पैरवी करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य नर्सिंग होम और क्लीनिकल स्थापना अधिनियम 2010 के अनुसार बिना कोई पूर्व सूचना के नर्सिंग होम को सील करने का अधिकार नहीं है। एसडीएम सरायपाली ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर बिना कोई पूर्व सूचना के याचिकाकर्ता के नर्सिंग होम को सील किया जाना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।
राज्य शासन ने रखा अपना पक्ष
राज्य सरकार की ओर से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता कार्यालय के ला अफसर ने कोर्ट को बताया कि शिकायतकर्ता की शिकायत के आधार पर अनुविभागीय अधिकारी SDM सरायपाली ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, जिला महासमुंद को ज्ञापन जारी किया है और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, जिला महासमुंद ने याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत के सत्यापन के लिए जांच समिति का गठन किया है।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में ये लिखा
मामले की सुनवाई जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा के सिंगल बेंच में हुई। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि
याचिकाकर्ता के अस्पताल को सीलबंद करने का कोई आदेश नहीं है, न ही कोई कारण बताओ नोटिस है। 11 जुलाई 2025 को याचिकाकर्ता ने एसडीएम, सरायपाली को एक पत्र लिखा था। 28 जून 2025 को एसडीएम और अन्य ने याचिकाकर्ता के अस्पताल को सील कर दिया। इसके अलावा, याचिकाकर्ता को न तो कोई नोटिस दिया गया और न ही कोई ज़ब्ती सूची। इसलिए उन्होंने एसडीएम, सरायपाली से सील करने के कारण की एक प्रति उपलब्ध कराने का अनुरोध किया। कोर्ट ने नियमों का हवाला देते हुए लिखा है कि
किसी लाइसेंस प्राप्त नर्सिंग होम या क्लिनिकल स्थापन ने इस अधिनियम के किसी प्रावधान या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या लाइसेंस के समय निर्दिष्ट किसी शर्त का उल्लंघन किया है या उसका अनुपालन नहीं किया है; या यदि किसी लाइसेंस प्राप्त नर्सिंग होम या क्लिनिकल स्थापन को इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है, तो वह नर्सिंग होम या क्लिनिकल स्थापन को सुनवाई का उचित अवसर देने के पश्चात लाइसेंस को रद्द या निलंबित कर सकेगा।
लाइसेंस रद्द करने से पहले दी जाने वाली सूचना
इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, पर्यवेक्षी प्राधिकारी उस नर्सिंग होम या क्लिनिकल प्रतिष्ठान को 30 दिन का नोटिस देगा जिसका लाइसेंस रद्द या निलंबित किया जाना है। नोटिस में वह कारण और आधार शामिल होगा जिसके आधार पर लाइसेंस रद्द या निलंबित किया जाना है। यदि नोटिस के अनुरोध पर, नोटिस प्राप्तकर्ता के बचाव को सुनने के लिए व्यक्तिगत सुनवाई की भी अनुमति दी जा सकती है। यदि उपर्युक्त प्रक्रिया का पालन करने और नोटिस प्राप्तकर्ता के मामले की सुनवाई के बाद पर्यवेक्षी प्राधिकारी लाइसेंस को रद्द या निलंबित करने का निर्णय लेता है, तो वह इस आशय का एक आदेश पारित करेगा जिसमें लाइसेंस के ऐसे रद्द या निलंबन के कारण शामिल होंगे।
इसलिए, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, संबंधित पक्षों के वकीलों के प्रस्तुतीकरण पर विचार करते हुए, प्रथम दृष्टया मामला याचिकाकर्ता के पक्ष में बनता है, इसलिए, यह निर्देश दिया जाता है कि, विशुद्ध रूप से अंतरिम उपाय के रूप में, प्रतिवादी प्राधिकारी इस न्यायालय के अगले आदेश तक याचिकाकर्ता के अस्पताल को तत्काल मुक्त कर देगा। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के सचिव, कलेक्टर महासमुंद, मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी महासमुंद, अनुविभागीय दंडाधिकारी सरायपाली तथा शिकायतकर्ता को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। दो सप्ताह बाद मामले की सुनवाई होगी
