Bilaspur High Court News: दोहरे हत्याकांड पर हाई कोर्ट की टिप्पणी, कहा: सिर्फ संदेह के आधार पर नहीं होता फैसला...
Bilaspur High Court News: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डीविजन बेंच ने हत्या के मामले में शासन की अपील पर महत्वपूर्ण फैसले सुनाया है। जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डीविजन बेंच ने कहा कि संदेह, चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, फैसले के लिए साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता।
Bilaspur High Court News:बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डीविजन बेंच ने हत्या के मामले में शासन की अपील पर महत्वपूर्ण फैसले सुनाया है। जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डीविजन बेंच ने कहा कि संदेह, चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, फैसले के लिए साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता।
हाई कोर्ट ने दोहरे हत्याकांड के आरोपियो को दोषमुक्त किये जाने के खिलाफ पेश शासन की अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि संदेह चाहे जितना भी मजबूत हो वह निर्णय में साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता है। मामले में गवाहों के बयान भी विरोधाभाषी है। एक मृतक का पीएम रिपोर्ट भी पेश नहीं किया गया।
मोहन लाल बंदे, संजय बंदे 23 अप्रैल 2009 को एक विवाह समारोह में शामिल होने जयरामनगर गए थे। विवाह स्थल में मोहनलाल बंदे मोबाइल से लड़की व महिलाओं का फोटोशूट करने लगा। इस बात पर उसका झगड़ा हो गया। मारपीट में घायल मोहनलाल ने रात 3.30 बजे मस्तूरी थाना में रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस घायलों को इलाज के लिए मस्तूरी स्वास्थ्य केंद्र लेकर गई। डॉक्टर ने जांच उपरांत मोहनलाल व संजय बंदे को ज्यादा चोट होने पर सिम्स रिफर कर दिया। घायल मनीष को सामान्य चोट होने पर इलाज कर छोड़ दिया गया। सिम्स में इलाज के दौरान घायल संजय की मौत हो गई। तबियत बिगड़ने पर मोहनलाल को अपोलो में भर्ती किया गया। उपचार के दौरान उसकी भी मौत हो गई। पुलिस ने मामला दर्ज कर रामकुमार बंदे, राजेन्द्र, शैलेश सहित 8 लोगो को बलवा व हत्या के जुर्म में गिरफ्तार कर न्यायालय में चालान पेश किया। 26 फरवरी 2011 को ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए रिहा कर दिया।
ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील
ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ राज्य शासन ने हाई कोर्ट में अपील पेश की। मामले की सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डीविजन बेंच में हुई। डीविजन बेंच ने अपने आदेश में लिखा है कि घटना तिथि 23 अप्रैल 2009 को मृतक मोहन लाल बंदे घटना स्थल पर था। उसने अत्यधिक शराब पी ली, जिसके कारण वह चलने-फिरने में असमर्थ हो गया। मृतक-मोहन के पेट में बहुत दर्द रहता था, जिसका इलाज चल रहा था और उसी दौरान उनकी मौत हो गई। इस बात को छोड़कर. उनके पेट में ऐसा कोई चोट नहीं मिला और न ही शरीर पर चोट के निशान था। मृतक-संजय का पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं मिला है । रिकार्ड से यह भी साफ है कि घटना दिनांक को मृतक मोहन लाल बंदे शराब के नशे में लड़कियों की तस्वीरें खींच रहा था, जिसके कारण झगड़ा हो गया।
कोर्ट की टिप्पणी
डीविजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि यदि अभियोजन के मामले को वैसे ही लिया जाए, तो संदेह, चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, निर्णायक साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता। ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों की विस्तृत समीक्षा की है। पूरे साक्ष्य का विश्लेषण करने के बाद यह साफ है कि इसमें बड़ा विरोधाभास और चूक है।
लिहाजा अभियोजन पक्ष किसी भी आरोप को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है। इस टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट ने राज्य शासन की अपील को खारिज कर दिया है।