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Bilaspur High Court: बिलासपुर हाई कोर्ट ने सजायाफ्ता कर्मचारियों को लेकर सुनाया महत्वपूर्ण फैसला, पढ़िए हाई कोर्ट ने क्या है...

Bilaspur High Court: हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने कर्मचारियों की सेवाओं और वेतन को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जस्टिस बीडी गुरु ने अपने फैसले में लिखा है कि ऐसे कर्मचारी, जो स्वयं अपराध में लिप्त रहा हो किन्तु बाद में दोषमुक्त कर दिया गया हो, वह बकाया वेतन प्राप्त करने का हकदार नहीं है। उसने दोषसिद्धि या जेल में बंद होने के आधार पर स्वयं को सेवा प्रदान करने से अयोग्य कर लिया था। हाई कोर्ट का यह फैसला न्याय दृष्टांत AFR बन गया है।

Bilaspur High Court: बिलासपुर हाई कोर्ट ने सजायाफ्ता कर्मचारियों को लेकर सुनाया महत्वपूर्ण फैसला, पढ़िए हाई कोर्ट ने क्या है...
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Bilaspur High Court

By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। बिलासपुर हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में किसी अपराध में कोर्ट से सजा सुनाने और जेल में बंद रहने के बाद अदालत से दोषमुक्त होने की स्थिति के बाद भी ऐसे कर्मचारी पिछला वेतन पाने का हकदार नहीं होगा। इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ जस्टिस बीडी गुरु के सिंगल बेंच ने बिजली कंपनी के एक रिटायर कर्मचारी की याचिका को खारिज कर दिया है। घुसखाेरी के आरोप में एसीबी ने कार्रवाई करते हुए स्पेशल कोर्ट में चालान पेश किया था। स्पेशल कोर्ट ने याचिकाकर्ता कर्मचारी को घुसखोरी में संलिप्तता के आरोप में सजा सुनाया था।

याचिकाकर्ता राम प्रसाद नायक की वर्ष 1977 में विद्युत मंडल में नियुक्ति हुई थी। इसके बाद, उन्हें वर्ष 1995 में पर्यवेक्षक (सिविल) के पद पर पदोन्नत किया गया। मनसुख लाल ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, रायपुर में अतिरिक्त अधीक्षण अभियंता और उसके खिलाफ रिश्वत मांगने की शिकायत की थी। एसीबी ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7, 13 (1) (डी), 13 (2) के तहत एफआईआर दर्ज किया था। एफआईआर दर्ज होने के कारण उसे 12.10.2007 को आदेश जारी कर निलंबित कर। ट्रायल 3 साल की अवधि के भीतर समाप्त नहीं किया जा सका, इसलिए 04.09.2010 को एक आदेश जारी कर निलंबन को रद्द कर दिया गया। इस बीच, सुनवाई पूरी होने के बाद याचिकाकर्ता को विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण) की अदालत ने दोषी करार दिया है।

एसीबी कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में दी चुनौती

एसीबी कोर्ट के फैसले को याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी थी। याचिका के अनुसार एसीबी कोर्ट के फैसल के आधार पर बिजली कंपनी ने उसकी सेवा समाप्ति का आदेश जारी कर दिया है। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने 08.05.2020 को आदेश जारी कर याचिकाकर्ता को आरोपों से बरी कर दिया। हाई कोर्ट के फैसले के बाद बिजली कंपनी ने याचिकाकर्ता को 31-8-2018 को सेवा से वापस ले लिया। याचिकाकर्ता ने कंपनी में ज्वाइनिंग भी कर ली।

बर्खास्तगी अवधि का मांगा वेतन

ज्वाइनिंग के बाद याचिकाकर्ता ने पिछले वेतन की मांग करते हुए अभ्यावेदन पेश किया। कंपनी ने अभ्यावेदन को खारिज करते हुए पिछला वेतन देने से इंकार कर दिया। मामले की सुनवाई जस्टिस बीडी गुरु के सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट के समक्ष पैरवरी करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता मौलिक नियमों के नियम 54-बी के आधार पर बकाया वेतन पाने का हकदार है। छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड, प्रबंध निदेशक (CSPDCL) व सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर छत्तीसगढ़ स्टेट पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी (सिविल- डिस्ट्रीब्यूशन) के अधिवक्ताओं ने कोर्ट से कहा कि याचिकाकर्ता को निलंबित नहीं किया गया था और उक्त निलंबन के निरस्तीकरण पर सेवा में बहाल नहीं किया गया था और वह अपनी अनुपस्थिति की अवधि के लिए निलंबित नहीं था, बल्कि उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। मौलिक नियम उन पर लागू नहीं होगा और वे पिछले वेतन के हकदार नहीं होंगे।

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह लिखा

मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस बीडी गुरु ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जस्टिस गुरु ने अपने फैसले में लिखा है कि याचिकाकर्ता को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7 और 13 (1) (डी) व धारा 13 (2) के तहत अपराधों के लिए एसीबी कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया था, जिसके अनुसार उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं। हालांकि, आपराधिक अपील में इस अदालत ने याचिकाकर्ता को आरोपों से बरी कर दिया। लेकिन इस बीच, याचिकाकर्ता 31.08.2018 को सेवानिवृत्त हो गया। हालांकि, उन्हें पिछला वेतन देने से इनकार कर दिया गया है। सीएसपीडीसीएल याचिकाकर्ता की सेवाओं को लेने में असमर्थ था क्योंकि उन पर आपराधिक आरोप लगे हुए थे। मौलिक नियमों का नियम 54-बी वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता पर लागू नहीं होगा। परिणामस्वरूप, मौलिक नियमों का नियम 54-बी लागू नहीं होगा और इस प्रकार, वह पिछले वेतन का हकदार नहीं होगा।

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