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Bilaspur High Court: हाई कोर्ट का निर्देश: आरोपी के न्यायिक हिरासत में रहने के दौरान मुकदमों के निपटारे में ना करें देरी, लगातार करें सुनवाई

Bilaspur High Court: बिलासपुर हाई कोर्ट ने निचली अदालतों ट्रायल कोर्ट्स को सलाह दी है कि वे अनावश्यक रूप से लंबी तारीखें न दें, इससे मुकदमों के निपटारे में अनावश्यक विलंब हो रही है। कोर्ट ने कहा कि विशेष रूप से जब आरोपी न्यायिक हिरासत में हो,उस वक्त साक्ष्य दर्ज करने के लिए छोटी और लगातार तारीखें तय की जानी चाहिए

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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। बिलासपुर हाई कोर्ट ने निचली अदालतों ट्रायल कोर्ट्स को सलाह दी है कि वे अनावश्यक रूप से लंबी तारीखें न दें, इससे मुकदमों के निपटारे में अनावश्यक विलंब हो रही है। कोर्ट ने कहा कि विशेष रूप से जब आरोपी न्यायिक हिरासत में हो,उस वक्त साक्ष्य दर्ज करने के लिए छोटी और लगातार तारीखें तय की जानी चाहिए।

चीफ़ जस्टिस रमेश सिन्हा ने टिप्पणी करते हुए कहा, यह देखा गया है कि कई मामलों में ट्रायल कोर्ट्स लंबी तारीखें दे देते हैं, भले ही आरोपी जेल में हो। ऐसी प्रथा न केवल मुकदमे के निपटारे में देरी करती है, बल्कि संविधान द्वारा गारंटीकृत शीघ्र न्याय के मौलिक अधिकार को भी प्रभावित करती है। लिहाजा सभी ट्रायल कोर्ट्स को निर्देशित किया जाता है कि वे अनावश्यक स्थगन से बचें और जहां आरोपी न्यायिक हिरासत में है, वहां साक्ष्य के लिए छोटी और लगातार तारीखें तय करें, सिवाय इसके कि कोई अपरिहार्य या विवश करने वाली परिस्थिति हो।

एक आरोपी की दूसरी जमानत याचिका पर कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। याचिकाकर्ता आरोपी को मादक द्रव्य और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 NDPS Act की धारा 20-B(II)(C) के तहत गिरफ्तार किया गया था। इस धारा के तहत यदि कोई व्यक्ति अवैध रूप से गांजा का उत्पादन, परिवहन, बिक्री या कब्जा करता है, तो 10 से 20 साल तक की कठोर सजा और 1 से 2 लाख रुपये तक का जुर्माने का प्रावधान है। पुलिस ने आरोपी और सह-आरोपी के संयुक्त कब्जे से 33.7 किलोग्राम गांजा जब्त किया था। पहली जमानत याचिका खारिज हो चुकी थी। दूसरी याचिका में आरोपी ने कहा कि वह नवंबर 2024 से जेल में है, और 14 गवाहों में से अब तक केवल 3 की गवाही हुई है। जिनमें से सभी शत्रु गवाह बन गए। अगली सुनवाई जनवरी 2026 के लिए तय की गई थी, इसलिए आरोपी ने जमानत की मांग की।

राज्य सरकार ने आरोपी की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कोर्ट को बताया कि आरोपी के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दायर हो चुकी है और जब्त की गई मात्रा वाणिज्यिक मात्रा से कहीं अधिक है। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने जमानत देने से इंकार कर दिया। ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि मामले की सुनवाई की तारीख आगे ना बढ़ाई जाए। साक्ष्य दर्ज करने के लिए छोटी-छोटी और लगातार तारीखें तय की जाएं। कोर्ट ने कहा यह अदालत आशा और विश्वास करती है कि ट्रायल कोर्ट इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तिथि से चार महीने के भीतर मुकदमे का निपटारा करने का पूरा प्रयास करेगा।

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