Bilaspur High Court: लिव इन रिलेशनशिप में रही और फिर दुष्कर्म का लगाई आरोप: हाई कोर्ट ने इन कारणों से आरोपी को किया दोषमुक्त, राज्य सरकार की अपील हुई खारिज
Bilaspur High Court: जस्टिस संजय एस. अग्रवाल एवं जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डीविजन बेंच ने शादी का वादा कर नाबालिग से दुष्कर्म करने के आरोपी को दोषमुक्त किए जाने के खिलाफ पेश राज्य शासन की अपील खारिज कर दी है। राज्य शासन की ओर से पेश याचिका में पीड़िता का उम्र घटना के दौरान 18 वर्ष से कम थी,साबित नहीं कर पाया। पीड़िता ने अपने बयान में खुद ही स्वीकार किया कि वह आरोपी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी।

Bilaspur High Court: बिलासपुर। रायगढ़ जिला निवासी पीड़िता ने 10 फरवरी 2016 को लिखित रिपोर्ट दर्ज कराई जिसमें कहा गया कि, 1 फरवरी 2016 से आरोपी उसके साथ लिव इन रिलेशनशिप में था और इस दौरान, उसने शादी का झूठा बहाना बनाकर बार-बार उसके साथ शारीरिक संबंध बनाया। जब पीड़िता ने उससे शादी करने के लिए कहा, तो उसने मना कर दिया। पीड़िता की शिकायत के आधार पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ धारा 376 एवं पास्को एक्ट के तहत जुर्म दर्ज किया। पीड़िता का चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया। चिकित्सकीय रिपोर्ट में पीड़िता के साथ जबरदस्ती सेक्सुअल इंटरकोर्स का कोई निशान नहीं देखा और न ही पीड़िता के शरीर पर अंदर या बाहर कोई चोट का निशान पाये जाने की रिपोर्ट दी गई। उम्र प्रमाणित करने के लिए पीड़ित का वर्ष 2011 का प्रोग्रेस कार्ड के हिसाब से जन्म प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया। मामले की सुनवाई स्पेशल कोर्ट में हुई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने पीड़ित के बयान व उसकी उम्र 18 वर्ष से कम होना साबित नहीं होने पर आरोपी को दोषमुक्त किया। स्पेशल कोर्ट द्वारा दोषमुक्ति को चुनौती देते हुए राज्य शासन ने हाई कोर्ट में अपील पेश की थी। मामले की सुनवाई जस्टिस संजय एस. अग्रवाल व जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डीविजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने राज्य शासन की अपील खारिज कर दी है। पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम साबित नहीं हो पाया। पीड़िता ने इस बात का स्वीकार किया था कि वह आरोपी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में ये कहा
जस्टिस संजय एस अग्रवाल एवं जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डीबी ने सुनवाई के बाद आदेश में लिखा है, पीड़िता के पिता ने कहा है कि उनके सभी बच्चों की जन्म तारीख कोटवारी रजिस्टर में दर्ज थी, और उनके गांव के कोटवार ने उन जन्म तारीखों को रजिस्टर में दर्ज किया था। प्रॉसिक्यूटर ने उस कोटवार, से पूछताछ नहीं की और न ही कोटवारी रजिस्टर पेश किया। वह पीड़ित के जन्म की तारीख, महीना या साल नहीं बता सका और उसने माना कि उसे अपने किसी भी बच्चे की जन्म तिथि की जानकारी नहीं है। उसने यह भी कहा कि चूंकि उसके दादा ने पीड़िता को स्कूल में प्रवेश दिलाया था, इसलिए सिर्फ़ दादा ही उस समय दर्ज जन्म तारीख बता सकते थे। पीड़िता का स्कूल एडमिशन रजिस्टर भी पेश नहीं किया गया है। पीड़िता का जन्म प्रमाण पत्र पेश किया, जो देखने पर एफआईआर दर्ज होने के चार महीने बाद 21. जून 2016 को जारी किया गया लगता है। लिहाजा जन्म प्रमाण पत्र के असली होने पर शक होता है।
