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Bilaspur High Court- बिलासपुर हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: सजा के लिए संदेह को नहीं बनाया जा सकता आधार...

Bilaspur High Court- बिलासपुर हाई कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना और आत्महत्या के एक मामले में निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि सजा सुनाने के लिए संदेह को आधार नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि संदेह के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती। दहेज प्रताड़ना और आत्म हत्या के लिए प्रेरित करने के 24 साल पुराने मामले में यह फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट के इस फैसले से पति व ससुराल वालों पर बहू को दहेज के लिए प्रताड़ित करने और आत्म हत्या के लिए प्रेरित करने का लगा कलंक मिट गया है।

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Bilaspur High Court

By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court-बिलासपुर। दहेज के लिए प्रताड़ित करने और पत्नी को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के आरोप में पति व परिजनों पर लगा कलंक का टीका 24 साल बाद ही सही अब मिट गया है। हाई कोर्ट के सिंगल ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए आरोप से मुक्त कर दिया है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि मृतका की मौत संदेहास्पद जरूर है, लेकिन मौत से ठीक पहले प्रताड़ना या दहेज की मांग का कोई ठोस सबूत नहीं है। संदेह के आधार पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती।

रायपुर जिले के देवभोग थाना क्षेत्र के उरमाल गांव का मामला है। चंपा लाल की शादी 1998 में कुसुम उर्फ गंगा से हुई थी। शादी के दो साल बाद 29 दिसंबर 2000 को गंगा अपने ससुराल में खाने बनाते समय स्टोव के फटने से बुरी तरह झुलस गई थी। पहले देवभोग अस्पताल और फिर रायपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान 30 दिसंबर की रात उसकी मौत हो गई। डाक्टरों की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला 90 से 100 प्रतिशत झुलस गई थी।

मृतका के पिता शिवलाल शंखला ने आरोप लगाया था कि शादी के समय दहेज में 60 हजार रुपए नकद और बेटी को जेवर पहनाकर विदा किया था। चंपा लाल के पिता ने दहेज के रूप में 1.25 लाख रुपये की मांग की थी। समय-समय पर बेटी द्वारा भेजे गए पत्रों में उसने परेशान होने की बात कही थी और पिता से लेने आने की गुहार भी लगाई थी।

निचली अदालत में सुनवाई के दौरान मृतका की बहन लक्ष्मी ने कोर्ट में ससुराल वालों पर गंभीर आरोप लगाई लगाई थी। उसने कहा था कि गंगा को लाल मिर्च खिलाई जाती थी, पीटा जाता था, काम के बोझ से वह बीमार रहने लगी थी और छह महीने का गर्भ भी गिर गया था। कोर्ट ने इस गवाही को अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना माना था और गवाही को खारिज कर दिया था।

0 चिकित्सकों की रिपोर्ट और बयान से हुआ सब-कुछ साफ

मृतका का इलाज करने वाले चिकित्सक ने कोर्ट को बताया कि गंगा जब होश में थी जब उसने बताया कि खाना बनाते समय स्टोव के फटने के कारण वह जल गई है। चिकित्सक ने कोर्ट को महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि गंगा मानसिक रूप से अस्वस्थ थी, मनोरोग चिकित्सक के यहां पहले इलाज चला था।

0 हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह लिखा

मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि किसी भी गवाह ने यह स्पष्ट नहीं बताया कि गंगा को आखिरी बार उनके ससुराल वालों ने कब प्रताड़ित किया। कोर्ट ने यह भी लिखा है कि दहेज हत्या (धारा 304बी) में मृत्यु से ठीक पहले प्रताड़ना का होना जरूरी है। लेकिन इस मामले में वह कड़ी नजर नहीं आई। गंगा को आत्महत्या के लिए उकसाने (धारा 306) का कोई सीधा या अप्रत्यक्ष सबूत भी नहीं मिला है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असफल रहा और ट्रायल कोर्ट ने गवाहियों की गलत व्याख्या की थी। इस टिप्पणी के साथ निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को दहेज प्रताड़ना और आत्म हत्या के लिए प्रेरित करने के आरोप से बरी कर दिया है।

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