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Bilaspur High Court: हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को वापस लौटाया मुकदमा: सुनवाई व फैसले के तय किया 9 महीने का डेडलाइन, पढ़िए क्या है मामला

Bilaspur High Court: बिलासपुर हाई कोर्ट ने चेक बाउंस के मामले की सुनवाई के बाद मुकदमे काे वापस ट्रायल कोर्ट भेजने का निर्देश रजिस्ट्रार जनरल को दिया है। हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई और फैसले के लिए डेडलाइन भी तय कर दिया है। हाई कोर्ट के निर्देश के तहत ट्रायल कोर्ट को 9 महीने के भीतर मामले की फिर से सुनवाई करना और फैसला सुनाना होगा।

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Bilaspur High Court

By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। चेक बाउंस से जुड़े मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने मुकदमा को वापस ट्रायल कोर्ट भेजने का निर्देश रजिस्ट्रार जनरल को दिया है। जस्टिस एनके चंद्रवंशी के सिंगल बेंच ने ट्रायल कोर्ट को निर्देशित किया है कि संबंधित बैंक अफसर को तलब कर चेक के स्टेटस के बारे में पूछने और चेक जारी करने वाले व्यक्ति के बैंक खाते में पर्याप्त बैलेंस था या नहीं। जस्टिस व्यास ने नए सिरे से मामले की जांच करने और फैसला सुनाने के लिए ट्रायल कोर्ट को 9 महीने की डेडलाइन दिया है। निर्धारित समय के भीतर ट्रायल कोर्ट को अपना फैसला सुनाना होगा।

चेक बाउंस से जुड़े मामले में जस्टिस एनके व्यास ने बेहद अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत मुकदमा सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि चेक रिटर्न मेमो में बैंक की मुहर या हस्ताक्षर नहीं है। याचिका की सुनवाई जस्टिस एनके व्यास के सिंगल बेंच में हुई। तुलसी स्टील ट्रेडर्स ने पूर्वा कंस्ट्रक्शन के खिलाफ याचिका दायर किया था। मामले में आरोपी मित्रभान साहू को निचली अदालत ने यह कहते हुए बरी कर दिया था कि रिटर्न मेमो में बैंक की अधिकृत मुहर नहीं है, ना ही किसी बैंक अधिकारी से पूछताछ की गई है।

मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के इस नजरिए को "प्रक्रियात्मक त्रुटि" करार देते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। तुलसी स्टील ट्रेडर्स के मालिक पुष्पेंद्र केशरवानी ने अपनी याचिका में बताया कि उसने सीमेंट और लोहे के छड़ों की आपूर्ति पूर्वा कंस्ट्रक्शन को की थी। आपूर्ति के बाद बिल भुगतान के लिए मित्रभान साहू ने 67 हजार 640 और दूसरा 1 लाख 70 हजार 600 रुपये का दो अलग-अलग चेक जारी किया था। भुगतान के लिए जब उसने चेक को बैंक में जमा किया तब अकाउंट में पर्याप्त बैलेंस ना हाेने के कारण चेक बाउंस हो गया। चेक बाउंस होने के बाद उसे मित्रभान को कानूनी नोटिस भेजा था। नोटिस का जवाब नहीं दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता पुष्पेंद्र ने

एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत मामला दर्ज किया।

याचिकाकर्ता ने धारा 145 के तहत शपथ पत्र के साथ अन्य जरूरी दस्तावेज कोर्ट में पेश किया। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एनके व्यास ने कहा कि "धारा 139 के तहत यह मान्यता है कि चेक किसी देनदारी के विरुद्ध जारी हुआ था। रिटर्न मेमो में सिर्फ बैंक की मुहर न होने से इस कानूनी धारणा को नकारा नहीं जा सकता। जस्टिस व्यास ने अपने फैसले में लिखा है कि "धारा 146 कोई निश्चित प्रारूप नहीं बताती है और न ही यह मेमो बैंकर्स बुक एविडेंस एक्ट के तहत आता है। लिहाजा इसकी प्रक्रियात्मक कमियां मुकदमे को अमान्य नहीं करतीं।

0 हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को वापस भेजा मुकदमा, जरुरी निर्देश भी दिया

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में महत्वपूर्ण टिप्प्णी करते हुए मामले को वापस ट्रायल कोर्ट को भेज दिया है। ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया है कि संबंधित बैंक अफसर को बुलाकर यह सत्यापित कराया जाए कि वास्तव में भुगतान के लिए चेक को बैंक में जमा किया गया था नहीं। जब चेक को जमा किया गया था तब प्रमुख प्रतिवादी के बैंक खाते में पर्याप्त बैलेंस था या नहीं। कोर्ट ने यह भी व्यवस्था दी है कि इसके लिए नए सिरे से नोटिस जारी करने की आवश्यकता नहीं है। मामले की सुनवाई के दौरान दोनों पक्ष के अधिवक्ता कोर्ट में उपस्थित थे। हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों को मई में ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया है। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को 9 महीने के भीतर ट्रायल पूरा कर आदेश जारी करने कहा है।

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