Bilaspur High Court: हाई कोर्ट ने कहा: दुष्कर्म पीड़िता को निर्णय लेने का पूरा अधिकार है कि वह गर्भ को जारी रखना चाहती है या नहीं
Bilaspur High Court: बिलासपुर हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि दुष्कर्म पीड़िता को यह निर्णय लेने का पूर्ण अधिकार है कि वह गर्भ को जारी रखना चाहती है या नहीं। साथ ही, मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने गर्भ समापन की अनुमति दी और संबंधित चिकित्सकीय संस्थान को निर्देशित किया कि गर्भपात की प्रक्रिया यथाशीघ्र कराई जाए।

Bilaspur High Court: बिलासपुर। मानसिक रूप से बीमार दुष्कर्म पीड़िता की बहन की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एके प्रसाद ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर पीड़िता को अर्बाशन कराने की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने अस्पताल प्रबंधन को सतर्कता के साथ अर्बाशन करने और डीएनए का नमूना सुरक्षित रखने का निर्देश दिया है।
जस्टिस एके प्रसाद ने आज एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में दुष्कर्म पीड़िता मानसिक रोगी युवती को अर्बाशन की अनुमति दे दी है। (Medical Termination of Pregnancy) पीड़िता की बहन ने बिलासपुर हाई कोर्ट में दायर की थी। याचिकाकर्ता बहन ने दुष्कर्म पीड़िता बहन को एक गरिमामय जीवन जीने के अधिकार के तहत अवांछित गर्भ को समाप्त करने की मांग की थी।
याचिका में बताया गया कि पीड़िता IDD (Intellectual Developmental Disorder) और मिर्गी (Epilepsy) से पीड़ित है। पीड़िता की मानसिक एवं शारीरिक स्थिति का लाभ उठाकर, गांव के निवासी एक युवक ने उसे विवाह का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाया। जब यह बात परिवार को पता चली और युवक से विवाह करने का आग्रह किया गया, तो उसने साफ इंकार कर दिया। इस पर पीड़िता की मां ने रतनपुर थाने में अपराध क्रमांक 36/2025 के तहत BNSS की धारा 64(2)(k) में एफआईआर दर्ज कराई।
याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह कोर्ट ने माना कि दुष्कर्म पीड़िता को यह निर्णय लेने का पूर्ण अधिकार है कि वह गर्भ को जारी रखना चाहती है या नहीं। साथ ही, मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने गर्भ समापन की अनुमति दी और संबंधित चिकित्सकीय संस्थान को निर्देशित किया कि गर्भपात की प्रक्रिया यथाशीघ्र कराई जाए।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि भ्रूण का डीएनए नमूना नियम 6(6), POCSO नियमावली 2020 के अंतर्गत संरक्षित किया जाए, ताकि आपराधिक प्रकरण की आगामी कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में उपयोग हो सके। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पीड़िता की गोपनीयता का पूरी तरह से पालन किया जाए, जैसा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम, 1971 की धारा 5A में निर्धारित है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ऋषिकेश शर्मा और विकास पांडे ने पैरवी की।