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Bilaspur High Court: फूड इंस्पेक्टर के बर्खास्तगी आदेश पर हाई कोर्ट ने लगाई रोक, पढ़िए राज्य सरकार ने क्यों कर दिया था डिसमिस

Bilaspur High Court: चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने राज्य शासन द्वारा जारी फूड इंस्पेक्टर की बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया है। राज्य सरकार ने नाबालिग के दौरान किए गए अपराध को कारण बताते हुए नौकरी से निकाल दिया था। याचिकाकर्ता ने राज्य शासन के इस आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। पढ़िए हाई कोर्ट ने किस सेवा के बदले याचिकाकर्ता के उस अपराध को माफ कर दिया है।

Bilaspur High Court: फूड इंस्पेक्टर के बर्खास्तगी आदेश पर हाई कोर्ट ने लगाई रोक, पढ़िए राज्य सरकार ने क्यों कर दिया था डिसमिस
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By Radhakishan Sharma

बिलासपुर। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने राज्य शासन द्वारा जारी फूड इंस्पेक्टर की बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया है। राज्य सरकार ने नाबालिग के दौरान किए गए अपराध को कारण बताते हुए नौकरी से निकाल दिया था। याचिकाकर्ता ने राज्य शासन के इस आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।

बता दें कि राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता के खिलाफ 2002 में नाबालिग रहने के दौरान दर्ज दो अपराध को कारण बताते हुए सेवा से बाहर कर दिया था। डिवीजन बेंच ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत उन्हें सभी अयोग्यताओं से छूट मिलती है।

याचिकाकर्ता पेंड्रा रोड निवासी प्रहलाद प्रसाद राठौर की भूतपूर्व सैनिक कोटे से 30 अगस्त 2018 को फूड इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्ति हुई थी। 15 मार्च 2024 को पुलिस वेरिफिकेशन के बाद राज्य सरकार को पुलिस ने रिपोर्ट सौंपी। पुलिस रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार ने एक आदेश जारी करउन्हें सेवा से हटा दिया।

रिपोर्ट में कहा गया कि उनके खिलाफ पुराने आपराधिक प्रकरण दर्ज थे, इसलिए वे सरकारी सेवा के लिए अयोग्य हैं। प्रहलादराठौर ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई के बाद सिंगल बेंच ने जनवरी 2025 में उनकी याचिका खारिज कर दी। सिंगल बेंच के फैसले काो चुनौती देते हुए उसने डिवीजन बेंच में याचिका दायर की थी।

याचिका में कहा कि नाबालिग रहते केस दर्ज हुआ था। इसमें दोषसिद्धि भी नहीं हुई है। पड़ोसी से मामूली झगड़े का मामला वर्ष 2007 में लोक अदालत में समझौते के बाद मामला बंद हो चुका है। इसके अलावा इस मामले में कोई जांच भी नहीं हुई। कोर्ट की ओर से दोषसिद्धि भी नहीं है। वहीं, बर्खास्तगी से पहले उनका पक्ष नहीं सुना गया, न ही उनके जवाब मांगा गया।

याचिकाकर्ता ने कहा में कि भारतीय नौसेना में लंबी सेवा के दौरान उनके चरित्र और आचरण को अनुकरणीय और बहुत अच्छा दर्ज किया गया है। मामले में दिए गए फैसले में अपराध से पहले वे नाबालिग थे। मामले 2002 के थे और 2007 में ही निपटारा हो चुका था। 2018 में नौकरी मिलने से पहले वे पूरी तरह समाप्त हो चुके थे। ऐसे पुराने और मामूली मामलों के आधार पर चरित्र को अयोग्य बताना मनमाना है। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने याचिका को स्वीकार करते हुए राज्य सरकार द्वारा जारी बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया है।

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