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बड़ी खबर: Bilaspur High Court: एक मामले की पैरवी के लिए अलग-अलग तीन वकीलों की नियुक्ति: नाराज हाई कोर्ट ने कहा....

Bilaspur High Court: याचिकाकर्ता ने एक ही मामले की पैरवी के लिए हाई कोर्ट के अलग-अलग बेंच और सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने के लिए पूर्व के अधिवक्ताओं की सहमति के बिना अलग अधिवक्ता की नियुक्ति कर ली। सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी खारिज होने के बाद हाई कोर्ट में रिव्यू याचिका के लिए फिर अलग अधिवक्ता नियुक्त कर लिया। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस ने इस बात पर आश्चर्य और नाराजगी जताते हुए कहा कि पूर्व के अधिवक्ता की सहमित लिए बना याचिकाकर्ता ने अलग-अलग चरण में अलग-अलग वकीलों की नियुक्ति कर गलत परंपरा की शुरुआत की है। नाराज चीफ जस्टिस ने न्यायिक अधिकारों का दुरुपयोग और कोर्ट का कीमती समय बर्बाद करने के लिए याचिकाकर्ता पर जुर्माना करने के साथ ही रिव्यू याचिका को खारिज कर दिया है।

बड़ी खबर: Bilaspur High Court: एक मामले की पैरवी के लिए अलग-अलग तीन वकीलों की नियुक्ति: नाराज हाई कोर्ट ने कहा....
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। याचिकाकर्ता ने एक ही मामले की पैरवी के लिए हाई कोर्ट के अलग-अलग बेंच और सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने के लिए पूर्व के अधिवक्ताओं की सहमति के बिना अलग अधिवक्ता की नियुक्ति कर ली। सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी खारिज होने के बाद हाई कोर्ट में रिव्यू याचिका के लिए फिर अलग अधिवक्ता नियुक्त कर लिया। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस ने इस बात पर आश्चर्य और नाराजगी जताते हुए कहा कि पूर्व के अधिवक्ता की सहमित लिए बना याचिकाकर्ता ने अलग-अलग चरण में अलग-अलग वकीलों की नियुक्ति कर गलत परंपरा की शुरुआत की है। नाराज चीफ जस्टिस ने न्यायिक अधिकारों का दुरुपयोग और कोर्ट का कीमती समय बर्बाद करने के लिए याचिकाकर्ता पर जुर्माना करने के साथ ही रिव्यू याचिका को खारिज कर दिया है।

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पिछले स्टेज पर मामले की पैरवी करने वाले पिछले वकील की सहमति लिए बिना नए वकील द्वारा रिव्यू फाइल करना एक सही तरीका नहीं है। इसके बाद एक ऐसे व्यक्ति पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया, जिसने अपील और रिव्यू के अलग-अलग स्टेज पर अलग-अलग वकील रखे। याचिकाकर्ता को एक विभागीय जांच में दोषी पाया गया और उस पर चार सालाना इंक्रीमेंट रोकने की सज़ा दी गई, जिसका असर आगे भी जारी रहेगा। याचिकाकर्ता संजय यादव ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन का हवाला देते हुए इस आदेश को 2018 में एक रिट याचिका में चुनौती दी गई। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने याचिका खारिज की और अनुशासनात्मक समिति के आदेश को सही ठहराया।

याचिकाकर्ता ने सिंगल बेंच के आदेश को चुनौती देते हुए रिट अपील दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए एसएलपी को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में रिव्यू याचिका दायर की। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उनके द्वारा दायर एसएलपी को सुप्रीम कोर्ट ने मेरिट के आधार के बजाय शुरुआती दौर में ही याचिका को खारिज कर दिया था।

मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच में हुई। सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच के सामने यह बात आई कि याचिकाकर्ता ने अपील के अलग-अलग चरण के लिए अलग-अलग अधिवक्ताओं को रखा। याचिकाकर्ता ने शुरुआत में जब हाई कोर्ट में याचिका दायर की तब एक अधिवक्ता रखा। सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए जब रिट याचिका दायर की तब दूसरा वकील रख लिया। रिव्यू याचिका दायर करते वक्त फिर वकील बदल दिया। इसी तरह के एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अलग वकील के जरिए रिव्यू याचिका दायर करने की प्रथा की निंदा की थी और ऐसी प्रथा को बार की स्वस्थ प्रथा के लिए सही नहीं कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड और वी. एन. राजू रेड्डीआर के मामले की सुनवाई के दौरान कड़ी टिप्पणी की थी।

डिवीजन बेंच की नाराजगी आई सामने

मामले की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने कहा कि रिट याचिका की पैरवी और बहस उस अधिवक्ता ने की जो सिंगल बेंच के सामाने सुनवाई के दौरान मौजूद नहीं थे। रिव्यू याचिका के दौरान भी मौजूद नहीं है। चीफ जस्टिस ने कहा कि जो अधिवक्ता वर्तमान में रिव्यू याचिका में बहस के लिए मौजूद हैं, उसने रिट याचिका की सुनवाई के दौरान बेंच के सामने ना तो कोई तर्क पेश किया और ना ही इस मामले में उनकी मौजूदगी रही। रिट याचिका के दौरान अधिवक्ता ना तो मौजूद थे और ना ही इस मामले की बहस ही की है। डिवीजन बेंच ने साफ कहा कि ऐसी प्रथा की इजाज़त देना न्याय के हित में नहीं होगा। डिवीजन बेंच ने इस बात पर नाराजगी जाहिर कि याचिकाकर्ता ने गलत रिव्यू याचिका दायर कर कोर्ट का कीमती समय बर्बाद किया है। याचिकाकर्ता ने गलत परंपरा की शुरुआत करते हुए एक अलग अधिवक्ता नियुक्त कर रिव्यू याचिका दायर की है।

कोर्ट ने कहा कि रिव्यू के लिए आवेदन को मामले की मेरिट पर बहस करने का मौका नहीं माना जा सकता और रिव्यू आवेदन की आड़ में अपील की मेरिट पर दोबारा सुनवाई की इजाज़त नहीं दी जा सकती।

डिवीजन बेंच ने की कड़ी टिप्पणी

मामले की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग कर ऐसी तुच्छ रिव्यू याचिका फाइल करने की गलत परंपरा की शुरुआत ठीक नहीं है। नाराज डिवीजन बेंच ने कोर्ट का कीमती समय बर्बाद करने के लिए याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना किया है। डिवीजन बेंच ने रिव्यू याचिका को खारिज कर दिया है।

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