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Bilaspur High Court: सिविल जज जूनियर डिवीजन परीक्षा: बार कौंसिल में इनरोल्ड ना होने वाले अभ्यर्थी परीक्षा से हुए बाहर, हाई कोर्ट ने याचिकाओं को किया खारिज

Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बार काउंसिल में नामांकन न होने के कारण न्यायपालिका एग्जाम एडमिट कार्ड न दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है, ये याचिकाएं इस अदालत के असाधारण अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग हैं। ये गलत धारणाओं, मिसाल की गलत व्याख्या और इस अदालत को वैधानिक नियमों को फिर से लिखने के लिए आमंत्रित करके न्यायिक सेवा में पिछले दरवाजे से प्रवेश पाने के प्रयास पर आधारित हैं,जो कानून में अस्वीकार्य है।

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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। हाई कोर्ट ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन) परीक्षा-2024 के लिए पंजीकृत अभ्यर्थियों द्वारा दायर रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया है। इन अभ्यर्थियों में लोक अभियोजक और सहायक लोक अभियोजक भी शामिल हैं। ये परीक्षा के विज्ञापन की तिथि तक बार काउंसिल में 'एडवोकेट' के रूप में नामांकित नहीं है। इन अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर एडमिट कार्ड न दिए जाने को चुनौती दी थी, जबकि उन्हें पहले परीक्षा के लिए आवेदन करने की अनुमति दी गई थी। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने तल्ख टिप्पणी के साथ याचिका को खारिज कर दिया है।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की डिवीजन बेंच ने याचिकाओं पर विचार करने में स्पष्ट अनिच्छा जाहिर करते हुए याचिकाकर्ताओं की पिछले दरवाजे से प्रवेश पाने का प्रयास करने के लिए आलोचना की। डिवीजन बेंच ने अपने आदेश में कहा है, याचिकाकर्ताओं द्वारा संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के उल्लंघन का निराधार तर्क दिया गया।

डिवीजन बेंच की तल्ख टिप्पणी

डिवीजन बेंच ने साफ कहा है कि सरकारी नौकरी के लिए योग्यता निर्धारित करने वाले किसी विधायी प्रावधान को केवल इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता, क्योंकि उम्मीदवारों का एक समूह इससे व्यथित है। याचिकाकर्ता विधायी क्षमता की कमी, स्पष्ट मनमानी या संवैधानिक गारंटियों के उल्लंघन को प्रदर्शित करने में विफल रहे हैं। जो आरोप लगाया गया, वह नीति से असहमति के अलावा और कुछ नहीं है, जो न्यायिक हस्तक्षेप का अनुचित आधार है। हिमालया रवि सहित अन्य अभ्यर्थियों ने अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इनमें से कुछ याचिकाकर्ता पहले से ही सरकारी अभियोजक, सहायक सरकारी अभियोजक के रूप में सरकारी पदों पर कार्यरत हैं। याचिकाकर्ताओं अपनी याचिका में बताया कि विज्ञापन में निजी प्रैक्टिस करने वाले वकीलों और सरकारी अभियोजकों के बीच अनुचित रूप से अंतर किया गया है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार ऐसा भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के विरुद्ध है। लोक अभियोजक और विधि अधिकारी को एडवोकेट एक्ट के तहत वकील माना जाना चाहिए

याचिकाकर्ताओं ने बताया कि 05 जुलाई 2024 की अधिसूचना और 23 दिसंबर 2024 के विज्ञापन द्वारा लाया गया संशोधन दीपक अग्रवाल बनाम केशव कौशिक एवं अन्य (2013) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित विधि की स्थापित स्थिति के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि लोक अभियोजक और विधि अधिकारी नियमित रूप से न्यायालयों में उपस्थित होते हैं और वकीलों के समान कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं। उन्हें न्यायिक सेवा में पात्रता के प्रयोजनों के लिए एडवोकेट एक्ट के तहत वकील माना जाना चाहिए।

अभियोजक और विधि अधिकारी ने उठाए सवाल

याचिकाकर्ताओं ने यह भी बताया कि लोक अभियोजक, विधि अधिकारी के रूप में उनकी सेवा उच्चतर न्यायिक सेवा में भर्ती के लिए पात्रता में गिनी जाती है, जो सीधे बार से की जाती है। जब उन्हें जिला जज के संवर्ग में नियुक्ति के लिए पात्र माना जाता है तो यह आश्चर्यजनक है कि उन्हें केवल गैर-नामांकन के तकनीकी आधार पर प्रवेश स्तर के पद, अर्थात सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के लिए अयोग्य कैसे माना गया। याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट के 22 जनवरी 2025 के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट के आदेश पर जब गैर-नामांकित उम्मीदवारों को भर्ती के लिए आवेदन करने की अनुमति देने हेतु शुद्धिपत्र लाया गया तो उन्हें इस समय, जब प्रारंभिक परीक्षा बस कुछ ही दिन दूर है, अर्थात 21 सितंबर 2025, मनमाने ढंग से प्रक्रिया से बाहर नहीं किया जा सकता।

याचिकाकर्ताओं ने 19 जनवरी 2024 की अधिसूचना का दिया हवाला

डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है, सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद पर भर्ती के लिए विज्ञापन 23 दिसंबर 2024 को जारी किया गया। उस समय प्रचलित नियम, पात्रता मानदंड यह था कि उम्मीदवार के पास किसी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी से लॉ डिग्री होनी चाहिए और एडवोकेट एक्ट, 1961 के तहत अधिवक्ता के रूप में नामांकित होना चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 19 जनवरी 2024 को जब कुल रिक्तियों की संख्या अधिसूचित की गई, न्यायिक सेवा के लिए आवेदन करने हेतु बार नामांकन को पूर्व शर्त के रूप में अनिवार्य करने वाला कोई नियम नहीं था। ऐसा संशोधन 05. जुलाई 2024 को ही पेश किया गया। लिहाजा AIJA के निर्णय के अनुसार, 19.01.2024 को प्रचलित नियम, अर्थात् नामांकन की कोई अनिवार्य आवश्यकता नहीं, लागू होना चाहिए।

हालांकि, अदालत ने इस दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया, 19 जनवरी 2024 की अधिसूचना केवल रिक्तियों की कुल संख्या को सूचित करने वाली अधिसूचना है। यह पद पर भर्ती के लिए अधिसूचना, विज्ञापन नहीं है, क्योंकि भर्ती के लिए अधिसूचना में न केवल रिक्तियों की संख्या निर्दिष्ट होती है, बल्कि पात्रता मानदंड, वेतनमान, आरक्षण की शर्तें, परीक्षा का तरीका, फॉर्म भरने का तरीका भी निर्दिष्ट होता है, जो 19 जनवरी 2024 की अधिसूचना में उपलब्ध नहीं है। जिन उम्मीदवारों का 23 दिसंबर 2024 को बार काउंसिल में नामांकन नहीं हुआ, उन्हें अब भर्ती प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है।

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