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Bilaspur High Court: भूअर्जन में विलंब: छत्तीसगढ़ में हाई काेर्ट की यह पहली कार्रवाई, NRDA के भूअर्जन प्रक्रिया को हाई कोर्ट ने किया निरस्त

Bilaspur High Court: केंद्र सरकार के नए और पुराने भूअर्जन नीति के बीच न्यू रायपुर विकास प्राधिकरण NRDA की भूअधिग्रहण कार्रवाई का पेंच फंस गया है। हाई कोर्ट ने एक आदेश जारी कर पुराने नीति के तहत किए गए भूअर्जन और अवार्ड को रद्द कर दिया है। याचिकाकर्ता को अवार्ड की राशि वापस लौटाने और राज्य शासन को नए कानून के तहत दोबारा भूअर्जन की प्रक्रिया प्रारंभ करने का निर्देश दिया है।

भूअर्जन में विलंब: छत्तीसगढ़ में हाई काेर्ट की यह पहली कार्रवाई,  NRDA के भूअर्जन प्रक्रिया को हाई कोर्ट ने किया निरस्त
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High Court News

By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। केंद्र सरकार के नए और पुरानी भूअर्जन नीति के फेर में नया रायपुर विकास प्राधिकरण NRDA के महत्वाकांक्षी कार्य में पेंच फंस गया है। दरअसल एक भूमि स्वामी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्र सरकार के नए भूअर्जन नीति के तहत मुआवजा की मांग की है। याचिकाकर्ता ने भूमि अधिग्रहण और मुआवजा प्रक्रिया को लेकर केंद्र सरकार द्वारा तय लिमिट का हवाला भी दिया है। कोर्ट को जानकारी दी है कि तय समय में कार्रवाई पूरी नहीं की गई है। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने पुरानी नीति के तहत किए गए भूअर्जन की प्रक्रिया को रद्द कर दिया है। याचिकाकर्ता को अवार्ड की राशि राज्य शासन को वापस लौटाने का निर्देश दिया है।

छत्तीसगढ़ में यह पहला मामला है जब केंद्र सरकारी की पुरानी नीति के तहत भूअर्जन की प्रक्रिया रद्द करने के सााथ राज्य शासन द्वारा भूमि स्वामी को दी गई अवार्ड की राशि को वापस लौटाने का निर्देेश हाई कोर्ट ने दिया है। कोर्ट ने एनआरडीए द्वारा लापरवाही बरतने के कारण कड़ा रुख अपनाया है। हाई कोर्ट ने भू-अर्जन प्रक्रिया को शून्य और कालातीत घोषित करते हुए राज्य शासन और NRDA की पूरी कार्यवाही को रद्द कर दिया।

सिविल लाइन रायपुर निवासी उषा देवी सिंघानिया ने अधिवक्ता सुशोभित सिंह के जरिए हाई कोर्ट में याचिका दायर कर पुरानी भूअर्जन नीति के तहत दिए गए अवार्ड की राशि को चुनौती दी थी। याचिका के अनुसार राज्य शासन व एनआरडीए ने भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पुराने भू-अर्जन अधिनियम, 1894 की धारा 6 के तहत प्रारंभ की थी। 1 जनवरी 2014 से केंद्र सरकार ने नया भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 लागू कर दिया था।

12 महीने के भीतर पारित करना होगा अवार्ड

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने नए नियमों में दिए गए प्रावधान व मापदंडों का हवाला देते हुए कोर्ट को बताया कि नए अधिनियम की धारा 25 के तहत यह स्पष्ट प्रावधान है कि धारा 19 के प्रकाशन की तिथि से 12 महीने के भीतर अवार्ड पारित करना अनिवार्य है। याचिकाकर्ता के मामले में भू-अर्जन अधिकारी ने अवार्ड पारित में एक साल से भी अधिक का समय लगाया है। यह नए कानून में दिए गए प्रावधान और टाइम लिमिट का सीधेतौर पर उल्लंघन है।

हाई कोर्ट ने कहा टाइम लिमिट का पालन करना जरुरी

मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने कहा कि नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम लागू होने के बाद धारा 19 के अंतर्गत अवार्ड पारित करने के लिए 12 महीने की समय सीमा बाध्यकारी है। तय समय सीमा का उल्लंघन कर पारित किए गए अवार्ड को हाई कोर्ट ने क्षेत्राधिकारविहीन मानते हुए अवैध घोषित कर दिया है। हाई कोर्ट ने राज्य शासन को छूट दी है कि यदि जरुरी समझे तो नए अधिनियम के तहत दोबारा अधिग्रहण की प्रक्रिया प्रारंभ कर सकती है।

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