Bilaspur High Court: गैंगरेप के बाद मर्डर: हाई कोर्ट ने पांच आरोपियों की फांसी की सजा को इसलिए कर दिया कम, पढ़िए हाई कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया
Bilaspur High Court: पिता के सामने 16 साल की नाबालिग बेटी के साथ गैंगरेप किया, फिर पिता की पत्थर पटकर हत्या कर दी। पिता की हत्या के बाद पीड़िता को मौत के घाट उतार दिया। हत्यारों ने चार साल की मासूम भतीजी को भी नहीं बख्शा। उसकी भी मौके पर ही हत्या कर दी। निचली अदालत ने इस जघन्य कांड के लिए सभी पांच आरोपी को फांसी की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के फैसले को आरोपियों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। अपील की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने फांसी कीसजा को पलट दिया है। डिवीजन बेंच ने कुछ इस तरह का फैसला सुनाया है।

Bilaspur High Court: बिलासपुर। मामला छत्तीसगढ़ के कोरबा का है। 16 वर्षीय नाबालिग का गैंगरेप के बाद पिता और चार वर्षीय भतीजी को बारी-बारी निर्ममता के साथ मौत के घाट उतारने वाले पांच आरोपियों को निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए आरोपियों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी थी। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में अपील पर सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि यह दुर्लभ मामला नहीं है। बेंच ने निचली अदालत के फैसले को संशोधित करते हुए फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया है।
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि निचली अदालत अपीलकर्ताओं में सुधार और पुनर्वास की संभावना पर विचार करने में विफल रही है। ट्रायल कोर्ट ने केवल अपराध और उसके तरीके पर विचार किया है। 16 वर्षीय नाबालिग, उसके पिता और चार वर्षीय भतीजी की जघन्य हत्या और दुष्कर्म की यह घटना समाज को झकझोरने वाली है। लेकिन रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है कि याचिकाकर्ताओं को सुधारा या पुनर्वास नहीं किया जा सकता है।
हाई कोर्ट की टिप्पणी
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि हालांकि याचिकाकर्ताओं ने तीन निर्दोष व्यक्तियों की हत्या का जघन्य अपराध किया है। जिनमें से एक 16 साल की नाबालिग दूसरी 4 साल की नाबालिग लड़की थी। 16 साल की नाबालिग लड़की को मौत के घाट उतारने से पहले उसके साथ बेरहमी से गैंगरेप किया गया जो अमानवीय, जघन्य और बेहद क्रूर है। पत्थरों से सिर कुचलकर नृशंस तरीके से हत्या की गई है। ये अपराध की परिस्थितियां हैं, लेकिन रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है कि याचिकाकर्ताओं में सुधार या पुनर्वास नहीं किया जा सकता है। इनके खिलाफ कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं दिखाई गई है। डिवीजन बेंच ने कहा कि घटना की तथ्यों और परिस्थितियों में मौत की सजा की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि यह 'दुर्लभतम मामला' नहीं था और इसके बजाय, उनके शेष जीवन के लिए कारावास पूरी तरह से पर्याप्त होगा और न्याय के उद्देश्यों को पूरा करेगा।
फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सुनाया था फांसी की सजा
फास्ट ट्रैक कोर्ट ने आरोपी संतराम मझवार (49), अब्दुल जब्बार (34), अनिल कुमार सारथी (24), परदेशी राम (39) और आनंद राम पनिका (29) को आईपीसी की धारा 302 , 376 (2), एससी-एसटी और पाक्सो अधिनियम के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। एक अन्य आरोपी उमाशंकर यादव (26) को आजीवन कारावास की सजा कोर्ट ने सुनाया था।
क्या है मामला
मृतक व्यक्ति अपने पूरे परिवार के साथ याचिकाकर्ता संतराम मंझवार के मवेशियों को चराते थे। संतराम के घर पर ही पूरा परिवार रहता था। मवेशी चराने के एवज में संतराम मृतक को प्रति वर्ष 8 हजार रुपये और प्रति माह 10 किलोग्राम चावल देने का वादा किया था। संतराम मझवार ने पूरे वर्ष का बकाया भुगतान नहीं किया और मवेशियों को चराने के एवज में मृतक को केवल 600 रुपये दिया। वादा खिलाफी से परेशान मृतक के परिजनों ने अपने गांव वापस जाने का फैसला किया।
घटना दिनांक 29 जनवरी, 2021 को, जब मृतक व्यक्ति अपने परिवार के साथ गांव जाने बस स्टैंड पहुंचा। इसी बीच संतराम मंझवार ने अपने साथियों के साथ साजिश रची और पीड़ितों से कहा कि वह उन्हें उनकी मोटरसाइकिल पर छोड़ देगा। इसके बाद वह उन्हें किसी स्थान पर ले गया और रास्ते में 16 वर्षीय लड़की के साथ पांचों आरोपियों ने बारी-बारी से दुष्कर्म किया। पिता ने जब इसका विरोध किया तो लाठी डंडों से पिटाई के बाद सिर पर पत्थर पटककर हत्या कर दी । गैंगरेप के बाद नाबालिग लड़की की भी हत्या कर दी। चार वर्षीय भतीजी को भी नहीं बख्शा और उसकी भी हत्या कर दी।
