Bilaspur High Court: बिलासपुर हाई कोर्ट का अदालतों को नसीहत, तकनीकी अनुबंध मामलों में हस्तक्षेप से बचना चाहिए
Bilaspur High Court: बिलासपुर हाई कोर्ट ने टेंडर विवाद से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने अदालतों को नसीहत देते हुए कहा कि अदालतों को तकनीकी अनुबंध मामलों में हस्तक्षेप से बचना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि निविदा निर्णयों में प्रक्रियात्मक अनुपालन को प्राथमिकता देनी चाहिए।

Bilaspur High Court: बिलासपुर। ठेका विवाद को लेकर दायर याचिका पर बिलासपुर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में ठेका देने में राज्य सरकार के विवेकाधिकार को बरकरार रखा है। डिवीजन बेंच ने निविदा प्रक्रिया को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि न्यायिक समीक्षा को प्रशासनिक निर्णयों में तब तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक कि वे मनमाने, अनुचित या दुर्भावना से ग्रसित ना हों।
0 क्या है मामला
सीएसआईडीसी द्वारा जारी निविदा को चुनौती देते हुए आधा दर्जन से अधिक रिट याचिकाएं दायर की गई थी। छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में औद्योगिक क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं के लिए जारी निविदा की प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी। मेसर्स श्रद्धा कंस्ट्रक्शन कंपनी सहित अन्य याचिकाकर्ताओं ने अपनी बोलियों को खारिज किए जाने का विरोध किया, जिसमें मेसर्स आनंदी बिल्डर्स के पक्ष में मनमाने ढंग से निविदा जारी करने का आरोप लगाया था। निविदा प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार छत्तीसगढ़ राज्य विकास निगम औद्योगिक (CSIDC) ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से डिवीजन बेंच के समक्ष पेश जवाब में बताया कि याचिकाकर्ताओं ने निविदा की शर्तों के अलावा तकनीकी आवश्यकताओं सहित अन्य मानदंडों को पूरा करने में विफल रहे हैं।
0 हाई कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
रिट याचिका की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि एक बोलीदाता निविदा की शर्तों को पूरा करता है या नहीं, इसका संतोष मुख्य रूप से बोली आमंत्रित करने वाली संस्था पर निर्भर करता है।
0 किसी बोलीदाता द्वारा निविदा की शर्तों को पूरा करना प्राथमिक रूप से बोली आमंत्रित करने वाले प्राधिकारी पर निर्भर करता है। ऐसा प्राधिकारी निविदादाताओं से अपेक्षाओं के बारे में जानता है, तथा गैर-निष्पादन के परिणामों का मूल्यांकन करता है।
0 न्यायिक समीक्षा, न्यायालयों को अनुबंध संबंधी मामलों में अपीलीय प्राधिकारियों के रूप में कार्य करने की अनुमति नहीं देती है। न्यायालय को केवल यह जांच करनी चाहिए कि क्या निर्णय लेने की प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और पक्षपात से मुक्त थी।
0 अदालतों को तकनीकी मुद्दों से जुड़े अनुबंधों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए, क्योंकि अदालतों के पास ऐसे मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता का अभाव है।
0 हाई कोर्ट ने दी समझाइश
डिवीजन बेंच ने कहा कि सरकारी अनुबंधों में निष्पक्षता, समानता और कानून के शासन को कायम रखा जाना चाहिए, लेकिन निविदा प्राधिकरण के पास वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर पात्रता निर्धारित करने का विवेकाधिकार है।
0 हाई कोर्ट का फैसला
रिट याचिकाओं की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि न्यायालय ने पाया कि बोलियों को अस्वीकार करना वैध और वस्तुनिष्ठ मानदंडों पर आधारित था। विशेष रूप से याचिकाकर्ताओं द्वारा आवश्यक बोली क्षमता और तकनीकी शर्तों को पूरा करने में विफलता के आधार पर है। डिवीजन बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को अयोग्य घोषित करने का सीएसआईडीसी का निर्णय न तो मनमाना था और न ही अनुचित। बोलीदाता मेसर्स आनंदी बिल्डर्स ने सभी आवश्यक अर्हताएं पूरी की थी और उसे सही तरीके से ठेका दिया गया। तकनीकी मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप न्यूनतम होना चाहिए,जब तक कि स्पष्ट या दुर्भावनापूर्ण इरादे न हों
0 राज्य को वित्तीय नुकसान का अंदेशा
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि वर्क आर्डर पहले ही जारी किया जा चुका था, और परियोजना समय-संवेदनशील थी, जिसे 31 मार्च, 2025 तक पूरा करना था। किसी भी तरह की देरी से अनावश्यक परेशानी होगी। इससे राज्य को देरी और वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। इस टिप्पणी के साथ डिवीजन बेंच ने सभी रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया है।