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Bilaspur High Court- अवैध शराब मामला: पुलिस की कार्रवाई पर उठे सवाल, लौटाना होगा जुर्माने की राशि, हाई कोर्ट का फैसला

Bilaspur High Court- अवैध शराब जब्ती के एक मामले में पुलिस की कार्रवाई और कोर्ट में पेश दस्तावेजों को लेकर गंभीर सवाल उठे। इस मामले का रोचक तथ्य यह है कि तीन अलग-अलग कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई। दो अदालतों से याचिकाकर्ता को सजा मिली। निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने कुछ इस तरह फैसला सुनाया है।

Bilaspur High Court- अवैध शराब मामला: पुलिस की कार्रवाई पर उठे सवाल, लौटाना होगा जुर्माने की राशि, हाई कोर्ट का फैसला
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court बिलासपुर। अवैध शराब जब्ती के एक मामले में पुलिस की जब्ती और दस्तावेजी कार्रवाई पर गंभीर सवाल उठा है। पुलिस ने आरोपी बताते हुए मामला दर्ज कर निचली अदालत में पेश किया। मामले की सुनवाई के बाद निचली अदालत ने याचिकाकर्ता को दोषी ठहराते हुए सजा भी सुनाई और 50 हजार रुपये का जुर्माना भी ठोंका। निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए आरोपी ने हाई कोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया है। आपराधिक पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल के सिंगल बेंच में हुई।

धमतरी जिले के मगरलोड पुलिस ने याचिकाकर्ता अर्जुन देवांगन के खिलाफ अवैध शराब बिक्री का मामला दर्ज किया था। 40 क्वार्टर देशी शराब (180 मि.ली. प्रति बोतल) को अवैध रूप से मोटरसाइकिल में ले जाने का पुलिस ने उस पर आरोप लगाते हुए मौके से शराब जब्त करना बताया और अर्जुन के खिलाफ छत्तीसगढ़ आबकारी अधिनियम, 1915 की धारा 34(2) के तहत मामला दर्ज किया था। पुलिस ने प्रकरण सीऐएम के कोर्ट में पेश किया था। मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट धमतरी ने 20 जुलाई 2012 को अर्जुन को दोषी ठहराते हुए एक साल की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माना लगाया था। सीजेएम कोर्ट के फैसले के बाद अपर सत्र न्यायालय ने 13 सितंबर 2012 को कोर्ट के सजा को बरकरार रखते हुए जुर्माना घटाकर 25 हजार रुपये कर दिया था। निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए अर्जुन ने अपने अधिवक्ता संजीव कुमार साहू के माध्यम से हाई कोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर कर निचली अदालत के फैसले को रद्द करने की मांग की थी।

आपराधिक पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल के सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता संजीव कुमार साहू ने कहा कि जब्ती के दौरान पुलिस ने जिन दो लोगों को स्वतंत्र गवाह बनाते हुए जब्ती की कार्रवाई पूरी की थी, उन्हीं दोनों गवाहों ने पुलिस की इस कार्रवाई को गलत ठहराया है। अधिवक्ता ने पुलिस कार्रवाई की खामियों को उजागर करते हुए कोर्ट को बताया कि जब्ती पत्र में सैंपल सील का उल्लेख नहीं है। जब्त की गई शराब को सुरक्षित और सील अवस्था में मलकाना में जमा नहीं किया गया था। पुलिस और गवाहों के बयानों में समय और जगह को लेकर गंभीर विरोधाभास हैं। पुलिस दस्तावेजों में जब्ती की जगह कुछ बता रही है और गवाह कुछ अलग बता रहे हैं।

0 पुलिस कार्रवाई की खुली पोल

आपराधिक पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि अवैध शराब की जब्ती पुलिस ने किसी जगह से नहीं बल्कि पुलिस चौकी में ही की थी। जब्ती की कार्रवाई और जगह को लेकर पुलिस व गवाहों के बयान अलग-अलग है। मलकाना रजिस्टर में सील की स्थिति का कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। स्पष्ट जानकारी ना देना या उल्लेख ना करना, आबकारी अधिनियम की धारा 57 ए का उल्लंघन है। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला संदेह से परे सिद्ध करने में असफल रहा। आपराधिक पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता को संदेह का लाभ देते हुए निचली अदालत के फैसले को रद्द करने के साथ ही दोषमुक्त कर दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता द्वारा निचली अदालत के फैसले के बाद जुर्माने की राशि जमा की गई होगी तो उसे वापस लौटाया जाए।

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