Bilaspur High Court: अफसरों को हाई कोर्ट ने दी एफआईआर की धमकी तब जारी हुआ आदेश, पढ़िए क्या है मामला और पोस्टिंग में किस हद तक की जाती है मनमानी
Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ का जल संसाधन विभाग ने मेरिट में सबसे नीचे वाले एसई को प्रभारी चीफ इंजीनियर बनाने ऐसे-ऐसे करतब दिखाए कि बिलासपुर हाई कोर्ट को एफआईआर कराने की धमकी देनी पड़ गई। पढ़िए सीई की कुर्सी पर अपनों को बैठाने के लिए अफसरों ने क्या चालाकी की थी।

Bilaspur High Court: बिलासपुर। जल संसाधन विभाग ने रायपुर में चीफ इंजीनियर की कुर्सी पर चेहतों को बैठाने के लिए एक साथ दो नियमों को ताक पर रख दिया। सीनियारिटी को तो किनारे किया ही रेगुलर अफसर रहते एसई लिस्ट में सबसे नीचे वाले को प्रभारी बना सीई की कुर्सी सौंप दी। हाई कोर्ट से फटकार मिली तो बिलासपुर के रेगुलर चीफ इंजीनियर को हटाकर एसई को वहां बिठा दिया। मामला फिर हाई कोर्ट पहुंचा और चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा के डिवीजन बेंच में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने विभाग के अफसरों की मनमानी को बताया तब कोर्ट की नाराजगी सामने आई।
मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने विभाग के आला अफसर से कहा कि नियम कानून क्यों नहीं मानते। याचिकाकर्ता के प्रकरण का अब तक निराकरण क्यों नहीं किया। यह ना कर आपने इंचार्ज अफसर आरआर सारथी को बैठा दिया। यह तो अवमानना का मामला बनता है। जल संसाधन विभाग को नोटिस जारी कर कोर्ट ने कहा हम आखिरी मौका देते हैं, आज का आज प्रकरण का निराकरण नहीं करेंगे तो एफआईआर करेंगे। एफआईआर के डर से डिपार्टमेंट ने तत्काल फाइल चलाई और याचिकाकर्ता जेआर भगत को सीई बना दिया।
0 क्या है मामला
जल संसाधन विभाग में विवाद की शुरुआत कार्यपालन अभियंता से अधीक्षण अभियंता के प्रमोशन के बाद प्रारंभ हुआ। प्रमोशन के बाद एसई की लिस्ट में अरुण साय फर्स्ट और सतीश कुमार टेकाम सीनियारिटी में 15 वें नंबर पर हैं। विभाग ने साय की वरिष्ठता को दरकिनार करते हुए टेकाम को रायपुर जल संसाधन विभाग में सीई बना दिया। इसे लेकर अरुण साय ने आपत्ति जताई और कहा कि ग्रेडेशन लिस्ट में उनका नाम प्रथम स्थान पर है। उसे प्राथमिकता देने के बजाय जूनियर टेकाम को सीई बना दिया है। आपत्ति का निराकरण ना होने पर साय ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर इसे चुनौती दी।
मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता साय को विभाग के समक्ष अभ्यावेदन पेश करने और विभाग को आठ सप्ताह के भीतर निराकरण करने का निर्देश दिया। कोर्ट के आदेश के बाद विभाग ने अभ्यावेदन पर निराकरण करने के बजाय सीई अरुण साय को जल संसाधन विभाग बिलासपुर का इंचार्ज सीई बना दिया। बिलासपुर में पहले से ही जेआर भगत रेगुलर सीई के पद पर पदस्थ थे। विभाग ने साय को एडजस्ट करने के लिए रेगुलर सीई भगत को डेपुटेशन पर सीएसआईडी भेज दिया।
0 भगत ने दायर की याचिका
जल संसाधन विभाग के इस निर्णय को चुनौती देते हुए सीई जेआर भगत ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के बाद सिंगल बेंच ने विभाग के दोनों निर्णय जिसमें अरुण साय को बिलासपुर का सीई बनाने और याचिकाकर्ता जेआर भगत के डेपुटेशन को सही ठहराते हुए भगत की याचिका को खारिज कर दिया। सिंगल बेंच के फैसले को भगत ने चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच में याचिका दायर की। इसी बीच 30 अप्रैल को सीई अरुण साय रिटायर हो गए। साय के रिटायर होने के बाद विभाग ने आरआर सारथी को इंचार्ज सीई बना दिया। याचिकाकर्ता भगत ने कोर्ट से शिकायत की कि रेगुलर अफसर के रहते विभाग ने जूनियर को इंचार्ज सीई बना दिया है।
0 ये है विवाद की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता एसई अरुण साय ने अपनी याचिका में कहा था कि वे और सतीश कुमार टेकाम सहायक अभियंता के पद पर काम करते समय 08.01.2024 के आदेश द्वारा अधीक्षण अभियंता के पद पर पदोन्नत किए गए थे। पदोन्नति आदेश में उसका नाम क्रमांक 1 पर रखा गया है तथा वरिष्ठता भी उसमें अंकित है। याचिकाकर्ता को क्रमोन्नति सूची में क्रमांक 6 पर दिखाया गया है, जबकि सतीश टेकाम को क्रमांक 26 पर रखा गया है। राज्य सरकार ने टेकाम को प्रभारी मुख्य अभियंता, महानदी गोदावरी कछार, रायपुर के पद पर स्थानांतरित करने का आदेश भी जारी किया है, जो राज्य सरकार और मुख्य सचिव द्वारा ग्रेडेशन सूची में कनिष्ठ अधिकारियों को उच्च पद पर पदस्थ करने के परिपत्र का उल्लंघन है। मामले की सुनवाई जस्टिस पीपी साहू के सिंगल बेंच में हुई। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को विभाग के समक्ष अभ्यावेदन प्रस्तुत करने कहा व विभाग को छह सप्ताह के भीतर निराकरण करने का निर्देश दिया था। विभाग ने अभ्यावेदन का निराकरण करने के बजाय याचिकाकर्ता एसई साय को बिलासपुर का प्रभारी सीई बना दिया था।
0 भगत ने सिंगल बेंच के फैसले को दी चुनौती
याचिकाकर्ता जेआर भगत ने अपनी याचिका में बताया कि वे मुख्य अभियंता जल संसाधन विभाग के मूल पद पर हैं और 01.जनवरी .2025 के स्थानांतरण आदेश के तहत उन्हें निदेशक, छत्तीसगढ़ अधोसंरचना विकास निगम रायपुर (प्रतिनियुक्ति पर) के कार्यालय में स्थानांतरित किया गया है। याचिकाकर्ता ने राज्य शासन के इस आदेश को इस आधार पर चुनौती दी थी कि मूल विभाग और उधार लेने वाले विभाग की सहमति प्राप्त किए बिना प्रतिनियुक्ति का कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।
0 एक विभाग के कर्मचारी को दूसरे विभाग में ट्रांसफर
याचिकाकर्ता ने नियमों व मापदंडों का हवाला देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ अधोसंरचना विकास निगम और जल संसाधन विभाग दो अलग-अलग विभाग हैं। एक विभाग के कर्मचारी को दूसरे विभाग में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है। ऐसा स्थानांतरण प्रतिनियुक्ति के बराबर होगा और कर्मचारी की सहमति प्राप्त किए बिना उक्त आदेश पारित नहीं किया जा सकता है। केवल प्रशासनिक नियंत्रण सौंपने से प्रतिनियुक्ति का आदेश सुरक्षित नहीं होगा।
अरुण साय के अधिवक्ता ने कहा कि राज्य शासन ने 01.जनवरी 2025 के आदेश जारी कर अरुण साय को सीई के पद पर पदस्थ कर दिया था। नियुक्ति स्थल पर कार्यभार ग्रहण कर लिया है तथा 30.अप्रैल 2025 को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर पूछा था कि क्या मूल विभाग और उधार लेने वाले विभाग की सहमति प्राप्त किए बिना प्रतिनियुक्ति का कोई आदेश पारित किया जा सकता है।
0 अफसरों ने किया फिर गफलत, रेगुलर की जगह इंचार्ज अफसर को बना दिया सीई
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि अफसर लगातार नियमों व कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं। याचिका के अनुसार अरुण कुमार साय प्रभारी मुख्य अभियंता, हसदेव कछार जल संसाधन विभाग बिलासपुर, ने सेवानिवृत्ति प्राप्त कर ली है और 30. अप्रैल.2025 को सेवानिवृत्त हो गए हैं। उनकी सेवानिवृत्ति के बाद,आर आर सारथी जो रायगढ़ में अधीक्षण अभियंता थे, को हसदेव कछार जल संसाधन विभाग बिलासपुर में अरुण साय के स्थान पर मुख्य अभियंता का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने साफ कहा कि यह इस कोर्ट का विशिष्ट आदेश है कि संबंधित प्राधिकारियों को इस तथ्य के संबंध में मामले पर निर्णय लेना है कि मूल विभाग और उधार लेने वाले विभाग की सहमति प्राप्त किए बिना प्रतिनियुक्ति का कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।
0 कोर्ट की नाराजगी आई सामने
मामले की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने कहा कि जब मामला इस न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है, तो संबंधित प्राधिकारियों से यह अपेक्षा नहीं की गई थी कि वे 30अप्रैल 2025 का आदेश पारित करेंगे, क्योंकि यह न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप के समान है। कोर्ट द्वारा एफआईआर की धमकी के बाद सिस्टम हरकत में आया और रेगुलर सीई को काम करने की अनुमति संबंधी फाइल चलाई।
