Begin typing your search above and press return to search.

Bilaspur High Court: 26 साल की अदालती लड़ाई के बाद दिवंगत टीआई पर लगा रिश्वत का दाग अब जाकर मिटा, पत्नी की याचिका पर हाई कोर्ट का आया ऐसा फैसला

Bilaspur High Court: रिश्वत के आरोप में तीन साल की कठोर सजा के आरोप से जूझ रहे टीआई ने तब निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान उसकी मृत्यु हो गई। पत्नी ने आगे की कानूनी लड़ाई लड़ी। 26 साल बाद जब हाई कोर्ट का फैसला आया तो राहत मिली। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता के दिवंगत पति को दोषमुक्त कर दिया है।

Bilaspur Highcourt News
X
By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। 26 साल की अदालती लड़ाई के बाद पत्नी ने आखिरकार अपने दिवंगत टीआई पति के ऊपर लगे रिश्वत के दाग को मिटा ही दिया। स्पेशल कोर्ट ने टीआई को तीन साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। इस फैसले को चुनौती देते हुए टीआई ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसी दौरान उसकी मृत्यु हो गई। पति के अधूरे कानूनी लड़ाई को आगे बढ़ाने का जिम्मा पत्नी ने उठाया और याचिका पर सुनवाई चलती रही। मामले की सुनवाई जस्टिस संजय के अग्रवाल के सिंगल बेंच में हुई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने स्पेशल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है।

कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि टीआई को जिस रिश्वत की मांग पर आरोपी बनाया गया था,उसका कोई औचित्य नहीं रह जात ाहै। शिकायकर्ता और उसके परिजनों की पहले ही जमानत पर रिहाई हो गई थी। जमानत पर रिहाई के दो दिन बाद जमानत के एवज में रिश्वत मांगे जाने का आरोप सही जान नहीं पड़ता है। बसना थाना में 8 अप्रैल 1990 की एक एफआईआर की गई थी। ग्राम थुरीकोना निवासी जैतराम साहू ने सहनीराम, नकुल और भीमलाल साहू के खिलाफ मारपीट की शिकायत दर्ज कराई थी। थाना प्रभारी गणेशराम शेंडे ने आईपीसी की धारा 324 के तहत अपराध दर्ज किया था। यह धारा जमानती था। लिहाजा तीनों आरोपियों को उसी दिन मुचलके पर रिहा कर दिया गया।

रिहाई के दो दिन बाद 10 अप्रैल 1990 को एक आरोपी भीमलाल साहू ने एसपी लोकायुक्त रायपुर को शिकायत करते हुए बताया कि रिहाई के एवज में टीआई नेएक हजार रुपए की रिश्वत मांगी थी। शिकायत के आधार पर लोकायुक्त पुलिस ने कार्रवाई की, जिसमें शेंडे को रंगे हाथों पकड़ने का दावा किया गया।

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 और 13 (1) (D) के साथ धारा 13(2) के तहत दोषी ठहराते हुए विशेष न्यायालय ने टीआई शेंडे को तीन वर्ष कठोर कारावास और दो हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। स्पेशल कोर्ट के फैसले के खिलाफ टीआई शेंडे ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका लंबित रहने के दौरान उसकी मौत हो गई। पति की मौत के बाद पत्नी ने मुकदमा लड़ा।

थाना प्रभारी से नाराज होने पर की थी शिकायत

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि शिकायतकर्ता टीआई से पहले से नाराज था। नाराजगी का कारण भी साफ है, उसकी शिकायत पर टीआई ने कार्रवाई नहीं की। कोर्ट ने कहा कि ऐसे में ट्रैप की परिस्थितियां संदेहास्पद मानी जा सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि अभियोजन पक्ष रिश्वत की मांग साबित करने में असफल रहा और ट्रैप में जब्त राशि का कोई वैधानिक आधार नहीं था।

Next Story