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Bilaspur High Court: दो आईएएस और मेडिकल सुपरिंटेंडेट को हाई कोर्ट का अवमानना नोटिस, जानिए कौन हैं दो आईएएस जिनकी बढ़ने वाली है मुश्किलें

Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ सरकार के दो आईएएस और डीकेएस अस्पताल के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट की मुश्किलें बढ़ती दिखाई दे रही है। न्यायालयीन आदेश की अवहेलना के आरोप में दायर याचिका पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने दो आईएएस अफसरों के अलावा डीकेएस अस्पताल की मेडिकल सुपरिंटेंडेंट को नोटिस जारी कर पूछा है कि क्यों ना उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए। डॉ प्रवेश कुमार शुक्ला ने अधिवक्ता संदीप दुबे के माध्यम से बिलासपुर हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की है। याचिका में आईएएस अफसरों व मेडिकल सुपरिंटेंडेंट पर गंभीर आरोप लगाया है। न्यायालय के आदेश की नाफरमानी को लेकर कोर्ट ने गंभीरता से लिया है।

Bilaspur High Court: दो आईएएस और मेडिकल सुपरिंटेंडेट को हाई कोर्ट का अवमानना नोटिस, जानिए कौन हैं दो आईएएस जिनकी बढ़ने वाली है मुश्किलें
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के इकलौते सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सक डा प्रवेश शुक्ला, सिस्टम के भेंट चढ़ गए हैं। पीड़ा इस बात की है कि MBBS, MS(सर्जरी), Dr.NB (डॉक्टरेट ऑफ नेशनल बोर्ड सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी) सुपर स्पेशलिस्ट कोर्स की डिग्री है और वह गैस्ट्रोएंटरोलॉजी सर्जन के क्षेत्र में एक चिकित्सक होने के साथ ही प्राइवेट प्रैक्टिस के बजाय उसने सरकारी अस्पताल में काम करने को प्राथमिकता दी। डीकेएस अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे थे। कलंकपूर्ण आरोप लगाते हुए राज्य सरकार ने सेवा से बाहर कर दिया है। कलंकपूर्ण आदेश से व्यथित होकर डा शुक्ला ने राज्य शासन के फैसले को चुनौती देते हुए अधिवक्ता संदीप दुबे के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने राज्य शासन के आदेश काे निरस्त कर दिया था। कोर्ट के आदेश के बाद भी सेवा में बहाली नहीं की गई और ना ही बकाया सैलेरी का भुगतान किया। न्यायालयीन आदेश की अवहेलना करने के आरोप में डा शुक्ला ने दोबारा हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

अवमानना याचिका पर जस्टिस अरविंद्र कुमार वर्मा के सिंगल बेंच में सुनवाई हुई। कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए दो आईएएस अफसर व डीकेएस अस्पताल की मेडिकल सुपरिंटेंडेंट को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब पेश करने कहा है। जारी नोटिस में कोर्ट ने पूछा है कि क्यों ना उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए। मामले की अगली सुनवाई के लिए कोर्ट ने अप्रैल 2025 के अंतिम सप्ताह में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।

0 कोर्ट ने कुछ इस तरह की थी टिप्प्णी

पूर्व में दायर याचिका की सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपने फैसले में गंभीर टिप्पणी की थी। कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के अफसरों के रवैये पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि यह एक कलंकपूर्ण आदेश है, जिसमें छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के उल्लंघन का स्पष्ट उल्लेख है। याचिकाकर्ता को विभागीय जांच में शामिल कर उसकी सुनवाई की जानी आवश्यक है, जो वर्तमान मामले में नहीं की गई है।

0 क्या है मामला

शराब घोटाले के आरोपी अनवर ढेबर को जून के महीने में इलाज कराने के लिए रायपुर सेंट्रल जेल से जिला अस्पताल लाया गया था। जिला अस्पताल में लोअर इंडोस्कोपी मशीन खराब होने के कारण डा प्रवेश शुक्ला ने उसे एम्स रेफर कर दिया था। सेवा में कमी और अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए राज्य शासन ने उसकी सेवा समाप्त करने के साथ ही गोलबाजार थाने में एफआईआर दर्ज करा दिया। इस आरोप से आहत डा शुक्ला ने स्वास्थ्य विभाग के अफसरों पर आरोप लगाते हुए कहा कि बगैर विभागीय जांच कराए और उसे सुनवाई का पर्याप्त अवसर दिए बिना कलंकपूर्ण आदेश पारित कर उसकी सेवा शासकीय दाऊ कल्याण सिंह सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, रायपुर, जिला रायपुर छत्तीसगढ़ ('डीकेएस अस्पताल' ) में सहायक प्रोफेसर गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के पद से समाप्त कर दी गई।

0 शासन के आदेश को डा शुक्ला ने दी थी चुनौती

डा शुक्ला ने अपनी याचिका में कहा कि 11.08.2023 को उसने DKS अस्पताल में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के तहत एक सर्जन (गैस्ट्रोएंटरोलॉजी) के रूप में संविदाआधार पर नियुक्त मिलने के बाद काम करना प्रारंभ किया। याचिकाकर्ता ने कहा कि 08.06.2024 को ओपीडी के दौरान विचाराधीन बंदी अनवर ढेबर जेल से अपना इलाज कराने आया था, जिसमें उसने उक्त मरीज को आगे के इलाज के लिए जिला अस्पताल रायपुर रेफर किया है।

0 राज्य शासन ने अनुशासनहीनता का लगाया था आरोप

उसके खिलाफ आरोप है कि गैस्ट्रोएंटरोलॉजी सर्जन होने के नाते ओपीडी में इलाज करते समय उसने उसे अन्य सरकारी अस्पताल/एम्स में रेफर कर दिया, क्योंकि जीआई. एंडोस्कोपी (कोलोनोस्कोपी) उपकरण विभाग में उपलब्ध नहीं था। यदि कोलोनोस्कोपी विभाग में उपलब्ध नहीं है, तो वह इसे अन्य सरकारी अस्पताल से करवा सकता था, जो पूर्णतः अनुशासनहीनता है और छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1965 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने बताया कि विवाद लोअर जीआई एंडोस्कोपी (कोलोनोस्कोपी) की उपलब्धता से संबंधित है। कोलोनोस्कोपी आमतौर पर गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट (जो चिकित्सा पर सुपर स्पेशलिस्ट की डिग्री रखता है) द्वारा की जाती है। उसके पास गैस्ट्रोएंटरोलॉजी सर्जन की सुपर स्पेशलिस्ट डिग्री है। मेडिसिन की डिग्री उसके पास नहीं है, इसलिए वह कोलोनोस्कोपी उपकरण चलाने के लिए इस क्षेत्र का विशेषज्ञ नहीं है। याचिका के अनुसार उसने जांच समिति गठित करने और मामले की जांच करने के लिए सक्षम प्राधिकारी के समक्ष मांग भी की, लेकिन आज तक अधिकारियों ने जांच समिति गठित नहीं की और न ही मामले की जांच की।

0 अधिवक्ता संदीप दुबे ने दिया ये तर्क

मामले की सुनवाई जस्टिस एके प्रसाद के सिंगल बेंच में हुई थी। याचिकाकर्ता चिकित्सक की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता संदीप दुबे ने सुनवाई का कोई अवसर या विभागीय जांच के बिना ही याचिकाकर्ता की सेवाएं 08.08.2024 को समाप्त करने का आरोप लगाया था। अधिवक्ता दुबे ने कहा कि राज्य शासन द्वारा कलंकपूर्ण आदेश जारी करते समय याचिकाकर्ता को न तो सुनवाई का कोई अवसर दिया गया और न ही उसके खिलाफ कोई विभागीय जांच शुरू की गई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए अधिवक्ता संदीप दुबे ने कहा कि यदि संविदा नियुक्ति में भी कोई कलंकपूर्ण आदेश पारित किया जाना है, तो उसे उचित जांच करने और संबंधित अपराधी/कर्मचारी को सुनवाई का उचित अवसर देने के बाद पारित किया जाना चाहिए।

0 हाई कोर्ट ने फैसले में अफसरों के रवैये पर की गंभीर टिप्पणी

मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस प्रसाद ने अपने फैसले में लिखा है कि राज्य शासन के 08.08.2024 के आदेश के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक कलंकपूर्ण आदेश है, जिसमें छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के उल्लंघन का स्पष्ट उल्लेख है। लिहाजा याचिकाकर्ता को विभागीय जांच में शामिल कर उसकी सुनवाई की जानी आवश्यक है, जो वर्तमान मामले में नहीं की गई है। सिंगल बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि संबंधित अधिकारियों ने कोई विभागीय जांच न करके तथा कलंकपूर्ण आदेश पारित करने से पहले सुनवाई का उचित अवसर न देकर अवैधता की है। लिहाजा 08.08.2024 का विवादित आदेश निरस्त किए जाने योग्य है तथा इसके द्वारा निरस्त किया जाता है। कोर्ट से आदेश का आजतलक अफसरों ने पालन नहीं किया है।

0 इन अफसरों को अवमानना नोटिस

अमित कटारिया आईएएस, सचिव चिकित्सा शिक्षा

किरण कौशल आईएएस, कमिश्नर चिकित्सा शिक्षा

डा शिप्रा शर्मा, डीकेएस अस्पताल सुपरिंटेंडेंट व अकादमिक इंचार्ज


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