Bilaspur High Court: एनटीपीसी लारा प्रोजेक्ट भूअर्जन घोटाले में आया हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: तत्कालीन एसडीएम पर चारसौबीसी का था मामला...
Bilaspur High Court: एनटीपीसी लारा प्रोजेक्ट भूअर्जन घोटाले में बिलासपुर हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। भूअर्जन घोटाले में चारसौबीसी का आरोप झेल रहे रायगढ़ के तत्कालीन एसडीएम ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने कुछ इस तरह का फैसला सुनाया है।

Bilaspur High Court
Bilaspur High Court: बिलासपुर। रायगढ़ जिले में स्थित एनटीपीसी लारा पावर प्रोजेक्ट के लिए भूअर्जन घोटाले में रायगढ़ के तत्कालीन एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल पर पुलिस ने चारसौबीसी के अलावा 467, 468, 471, 120बी, 34, 506बी आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया था। भूमि अधिग्रहण और मुआवजा वितरण में करोड़ों रुपये के वारा-न्यारा का आरोपी बना था। मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा ने तत्कालीन एसडीएम को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया है। कोर्ट ने तत्कालीन एसडीएम व याचिकाकर्ता के खिलाफ रायगढ़ कोर्ट द्वारा 13 जनवरी 2016 को आरोप तय करने के आदेश और 2 दिसंबर 2024 को दाखिल चार्जशीट को भी खारिज कर दिया है।
जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा ने याचिका पर सुनवाई के बाद अपने फैसले में लिखा है कि याचिकाकर्ता द्वारा पारित आदेश राजस्व अधिकारी के न्यायिक कर्तव्यों का हिस्सा था। लिहाजा उन्हें न्यायिक संरक्षण अधिनियम, 1985 के तहत पूर्ण सुरक्षा प्राप्त है।
जशपुर निवासी तीर्थराज अग्रवाल वर्ष 2013–14 में रायगढ़ में एसडीएम के पद पर पदस्थ थे। इस दौरान ग्राम झिलगीतर में एनटीपीसी लारा परियोजना के लिए 160 हेक्टेयर भूअर्जन व मुआवता वितरण की प्रक्रिया को पूरा कराया था। भूअर्जन और मुआवजा वितरण के बाद शिकायत मिली कि भूअर्जन के बाद मुआवजा वितरण में बडे पैमाने पर गड़बड़ी की गई है। वास्तविक भूमि स्वामियों को मुआवजा देने के बजाय कागजों में फर्जी किसान बनाकर मुआवजा राशि हड़प ली गई है।
तत्कालीन एसडीएम व याचिकाकर्ता पर यह भी आरोप था कि फर्जी खाता विभाजन, कर्ज पुस्तिकाएं और फर्जी खातों के जरिए सात लोगों को लाखों रुपये की राशि बांट दी गई है। मामले की जांच के बाद रिपोर्ट में शिकायत को सही पाया गया। जांच रिपोर्ट के आधार पर भूअर्जन और मुआवजा घोटाले में तत्कालीन एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल व अन्य को आरोपी बनाते हुए पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया।
हाई कोर्ट में दी थी चुनौती
पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग करते हुए तीर्थराज अग्रवाल ने अधिवक्ता राजीव श्रीवास्तव के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता का नाम पुलिस ने एफआईआर में बाद में जोड़ा है। पहले दर्ज एफआईआर में याचिकाकर्ता का नाम नहीं था। बाद में पुलिस ने बिना किसी पुख्ता प्रमाण के जोड़ दिया।
जांच रिपोर्ट या गवाहों के बयान में भी याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई ठोस आरोप नहीं है। उन्होंने केवल राजस्व रिकार्ड के आधार पर कानूनी प्रक्रिया के तहत मुआवजा आदेश पारित किया था। वे स्वयं पूरे मामले की जांच के आदेश देने वाले अधिकारी थे, जिसके चलते एफआइआर दर्ज की गई थी।
कोर्ट ने कहा: इसलिए नहीं चलाई जा सकती आपराधिक कार्रवाई
कोर्ट ने कहा कि एक राजस्व अधिकारी जब विधिक प्रक्रिया के अंतर्गत आदेश पारित करता है, तो वह न्यायिक कार्य कहलाता है और उस पर आपराधिक कार्यवाही नहीं चलाई जा सकती। जजेज प्रोटेक्शन एक्ट, 1985 की धारा 3 के तहत ऐसे अधिकारियों को पूर्ण संरक्षण प्राप्त है। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि राज्य शासन ने पहले ही विभागीय जांच नस्तीबद्ध कर दी थी और विभाग ने अग्रवाल को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया था।