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Bilaspur High Court: निकायों के परिसीमन का मामला और हाई कोर्ट ने खींची लक्ष्मण रेखा

Bilaspur High Court: प्रदेश के विभिन्न नगरीय निकायों में वार्ड परिसीमन को लेकर दायर जनहति याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए करते हुए हाई कोर्ट ने अपने 48 पेज के विस्तृत फैसले में महत्वपूर्ण बात कही है। कोर्ट ने दोटूक कहा कि राज्य सरकार द्वारा वार्डों का परिसीमन करना एक विधायी कार्य है। परिसीमन की कार्यवाही न्यायिक समीक्षा के लिए तभी तक खुली हो सकती है जब इसके लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है। प्रक्रियागत कार्रवाई को न्यायालय की जांच के लिए नहीं रखा जा सकता है। पढ़िए नगरीय निकायों के परिसीमन के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने अपने फैसले में क्या लिखा है। यह बात भी तय है कि हाई कोर्ट के इस फैसले से कांग्रेस और उनके नेताओं को राजनीतिक रूप से करारा झटका भी लगा है।

Bilaspur High Court: निकायों के परिसीमन का मामला और हाई कोर्ट ने खींची लक्ष्मण रेखा
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। नगरीय निकायों के परिसीमन के खिलाफ प्रदेश में पहली याचिका राजनादगांव नगर निगम के परिसीमन पर रोक लगाने की मांग को लेकर दायर की गई। यह याचिका वार्ड क्रमांक 25 सोनारपारा निवासी कुलबीर सिंह छाबड़ा ने लगाई थी। मामले की प्रारंभिक सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने परिसीमन की प्रक्रिया पर रोक लगाते हुए राज्य शासन को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया था। अदालत की शुरुआती रोक से प्रदेशभर के कांग्रेसी उत्साहित नजर आए और हाई कोर्ट में परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिकाओं की झड़ी लग गई। प्रदेश के अलग-अलग निकायों से एक दर्जन से ज्यादा याचिकाएं दायर कर परिसीमन की प्रक्रिया को चुनौती देने के साथ ही इस पर रोक लगाने की मांग की।

मंगलवार को जस्टिस पीपी साहू के सिंगल बेंच ने अपना फैसला सुना दिया था। सभी याचिकाओें को महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ खारिज कर दिया है। उन याचिकाओं को भी रद कर दिया है जिसे प्रारंभिक सुनवाई के बाद परिसीमन की प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई थी। प्रदेश के ऐसे चार निकायों में भी अब राज्य शासन को परिसीमन की विधिक छूट मिल गई है। जस्टिस पीपी साहू ने अपने फैसले में संवैधानिक बाध्यताओं व जरुरतों के अलावा सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला भी दिया है। कोर्ट ने कहा है कि परिसीमन के मामले में राज्य सरकार द्वारा 1961 के अधिनियम की धारा 29, 1956 के अधिनियम की धारा 10 और 1994 के नियमों के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया गया है। राज्य सरकार द्वारा वार्डों का परिसीमन करना एक विधायी कार्य है, और इसलिए, परिसीमन की कार्यवाही न्यायिक समीक्षा के लिए तभी खुली हो सकती है जब इसके लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है। यदि राज्य सरकार ने पाया कि वार्डों की सघनता बनाए रखने के लिए वार्डों का परिसीमन आवश्यक है और यह 1994 के नियमों के नियम 3 (2) के अनुरूप है, तो कार्यवाही को न्यायालय की जांच के लिए नहीं रखा जा सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि चूंकि रिट याचिकाओं के इस समूह में चुनौती नगर निगम, नगर पंचायतों, नगर पालिकाओं के परिसीमन के लिए शुरू की गई कार्यवाही के साथ-साथ कुछ नगर पालिका, पंचायत, नगर पालिका क्षेत्रों के परिसीमन की अंतिम अधिसूचना जारी करने से संबंधित है, इसलिए इन रिट याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की गई और इस सामान्य आदेश द्वारा निर्णय लिया जा रहा है।

याचिकाकर्ताओं ने लगाए राजनीतिक लाभ का आरोप

परिसीमन प्रक्रिया को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं ने एक ही आरोप लगाया है कि अधिकारों का प्रयोग बेतरतीब ढंग से और बार-बार किया गया है। राज्य सरकार पर राजनीतक लाभ के लिए परिसीमन कराने का आरोप लगाया है। नगर पालिका परिषद में जनसंख्या के अनुसार वार्डों का परिसीमन वर्ष 2014 और 2019 में पहले ही किया जा चुका है, इसलिए प्रतिवादी प्राधिकारियों के लिए वार्डों के परिसीमन का प्रस्ताव देने का कोई अवसर नहीं है। इसके अलावा, न तो नगरपालिका सीमा के भीतर कोई क्षेत्र जोड़ा गया है और न ही कोई नई जनसंख्या जनगणना हुई है, जो इस बात का संकेत है कि निकायों में सत्ता प्राप्ति की कोशिश की जा रही है। परिसीमन प्रक्रिया वर्ष 2019 में पहले ही की जा चुकी है और उसके बाद नगर निगम की सीमाओं या जनसंख्या के मामले में परिदृश्य में कोई बदलाव नहीं हुआ है। पिछले पांच वर्षों से परिसीमन की पूरी प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 (जेडजी), 1961 के अधिनियम और 1994 के नियमों में निहित प्रावधानों का उल्लंघन है।

शासन ने कुछ इस तरह दिया जवाब

1956 के अधिनियम की धारा 10 और 1961 के अधिनियम की धारा 29 राज्य सरकार को वार्डों की संख्या और सीमा निर्धारित करने का अधिकार देती है। 1961 के अधिनियम की धारा 355 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 1994 के नियम बनाए गए हैं। परिसीमन की कार्यवाही आवश्यक हो गई है क्योंकि जनसंख्या के वितरण में घोर विसंगति थी और

वर्ष 2019 में की गई परिसीमन प्रक्रिया में वार्डों की सघनता। सक्षम शासन के हित में जनसंख्या के समान वितरण (2011 की जनगणना के अनुसार) और विभिन्न वार्डों की सघनता (जो पहले सघन नहीं थे) सुनिश्चित करने के लिए परिसीमन प्रक्रिया शुरू की गई है, वार्डों की सीमा के निर्धारण के लिए निष्पक्ष प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए, पूरी कार्रवाई कानून के अनुसार आम जनता और हितधारकों की पूर्ण भागीदारी के साथ आयोजित की गई है।

कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि 1956 के अधिनियम और 1961 के अधिनियम के तहत निहित प्रावधानों को पढ़ने से स्पष्ट रूप से स्थापित होता है कि वार्डों के निर्धारण के लिए कार्यवाही शुरू करने की अपनी शक्ति का प्रयोग करना राज्य सरकार का विवेक है। यह कानून और संवैधानिक जनादेश के तहत प्रावधानों का पालन करते हुए किया गया है। आपत्तियां मांगी गई थीं और उन पर फैसला किया गया। कुछ आपत्तियों/सुझावों को स्वीकार किया गया और कुछ को खारिज कर दिया गया। 10.6.2024 को प्रथम नोटिस जारी करने के पश्चात, राज्य सरकार द्वारा परिसीमन प्रक्रिया आरंभ करने के लिए पूर्व में जारी नोटिस में कुछ संशोधन करते हुए अन्य नोटिस जारी किए गए, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि परिसीमन तथा जनसंख्या के समतामूलक वितरण और वार्डों की सघनता का आधार पूर्णतः 2011 की जनगणना पर आधारित है।

कोर्ट ने यह भी कहा

. यह सरकार को तय करना है कि किस प्रकार प्रत्येक पंचायत क्षेत्र में पंचायत क्षेत्रों और निर्वाचन क्षेत्रों का सीमांकन किया जाएगा। यह न्यायालय का काम नहीं है कि वह यह बताए कि ऐसा किस तरह किया जाएगा। जब तक पंचायत क्षेत्रों और निर्वाचन क्षेत्रों का सीमांकन संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप या उसका उल्लंघन किए बिना किया जाता है, न्यायालय उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

कोर्ट ने कहा कि 1994 के नियमों को 1956 के अधिनियम की धारा 433 और 1961 के अधिनियम की धारा 355 के तहत शक्तियों के प्रयोग में शामिल किया गया है। प्रावधान के अवलोकन से पता चलता है कि राज्य सरकार के पास समय-समय पर वार्डों का परिसीमन करने की सभी शक्तियां हैं, जो प्रासंगिक प्रावधानों के तहत परिकल्पित मापदंडों और कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के अधीन हैं।

फैसले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का दिया हवाला

कोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए लिखा है कि संबंधित पक्षों के वकीलों द्वारा दिए गए तर्कों, लागू प्रावधानों और इस मुद्दे पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून पर गहन विचार करने के बाद, यह न्यायालय परिसीमन कार्यवाही और अधिसूचनाओं में हस्तक्षेप करने का कोई उचित कारण नहीं पाता है। लिहाजा विभिन्न नगर पालिकाओं और नगर निगमों के परिसीमन की कार्यवाही और अधिसूचनाओं को चुनौती देने वाली उपरोक्त रिट याचिकाएं विफल हो जाती हैं और याचिकाएं खारिज की जाती हैं।

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