Begin typing your search above and press return to search.

Bilaspur High court News: यूनिवर्सिटी के प्रशासन में सरकार के हस्‍तक्षेप पर बड़ा फैसला: हाईकोर्ट ने खारिज की पूर्व कुलपति की याचिका खारिज

Bilaspur High court News: बस्तर विश्वविद्यालय के कुलपति को हटाने के 11 साल पुराने राज्य सरकार के फैसले को हाईकोर्ट ने सही माना है। 11 साल पुराने मामले में सिंगल बेंच के बाद डबल बेंच में सुनवाई हुई। जिसमें कोर्ट ने राज्य शासन के हस्तक्षेप अधिकार को कायम रखते हुए कहा कि गड़बड़ी पाए जाने पर शासन को यूनिवर्सिटी के प्रशासन में हस्तक्षेप का अधिकार है।

Bilaspur High court News: यूनिवर्सिटी के प्रशासन में सरकार के हस्‍तक्षेप पर बड़ा फैसला: हाईकोर्ट ने खारिज की पूर्व कुलपति की याचिका खारिज
X
By Radhakishan Sharma

Bilaspur Highcourt News: बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 की धारा 52 को लागू करने के राज्य के अधिकार को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि असाधारण परिस्थितियों में राज्य शासन को विश्वविद्यालयों के प्रशासन में हस्तक्षेप करने का अधिकार है। उक्त आदेश देने के साथ ही हाईकोर्ट ने बस्तर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. एनडीआर. चंद्रा की अपील को खारिज कर दिया। उन्होंने पद से हटाए जाने को चुनौती दी थी।

जनवरी 2013 से बस्तर विवि के कुलपति प्रो.एनडीआर चंद्रा को प्रशासनिक कदाचार और वित्तीय अनियमितताओं सहित कई आरोपों के बाद पद से हटा दिया गया था। राज्य सरकार ने इन आरोपों की जांच के लिए 2015 में एक जांच समिति गठित की। जांच रिपोर्ट से पता चला कि विवि प्रबंधन में गंभीर खामियां हैं। इस पर सितंबर 2016 में चंद्रा को हटाने के लिए अधिसूचना जारी की। इसके खिलाफ कुलपति चंद्रा ने हाई कोर्ट में अपील की। सिंगल बेंच ने उनकी अपील को खारिज कर दी।

कुलपति चंद्रा ने सिंगल बेंच के आदेश को डिवीजन बेंच में चुनौती दी। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने सुनवाई की। प्राथमिक कानूनी मुद्दा छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 52 की राज्य द्वारा व्याया और उसके प्रयोग पर केंद्रित था, जो सरकार को विश्वविद्यालय प्रशासन में हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है। चंद्रा ने तर्क दिया कि उन्हें उचित प्रक्रिया से वंचित किया गया। पर्याप्त सुनवाई या जांच रिपोर्ट के निष्कर्षों को चुनौती देने का अवसर दिए बिना उनके विरुद्ध अधिसूचनाएं जारी की गई थीं।

संस्था के हित के लिए राज्य की कार्रवाई को उचित माना डिवीजन बेंच ने:–

सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के निर्णय को बरकरार रखा। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि राज्यपाल की व्यक्तिपरक संतुष्टि, जो धारा 52 के तहत एक आवश्यकता है, का न्यायिक मानकों द्वारा मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि ऐसे मामलों में जहां विश्वविद्यालय के प्रशासन को प्रभावी ढंग से प्रबंधित नहीं किया जा सकता है, राज्य को संस्थागत हितों की रक्षा के लिए अधिनियम के प्रावधानों को संशोधित करने का अधिकार है। न्यायालय ने उमराव सिंह चौधरी बनाम मध्य प्रदेश राज्य में सर्वोच्च न्यायालय की व्याया का हवाला दिया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि धारा 52 के तहत राज्य का विवेकाधिकार तभी वैध है जब प्रशासनिक शिथिलता या गड़बड़ी के साक्ष्य हों।

Next Story