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Bilaspur High Court : मिला न्याय: मौत के 9 साल बाद कांस्टेबल को मिला न्याय: बर्खास्तगी आदेश को हाई कोर्ट ने किया रद्द

Bilaspur High Court : शराब पीकर ड्यूटी आने के आरोप में बिना मेडिकल जांच कराए राज्य शासन ने कांस्टेबल को बर्खास्त कर दिया था। बर्खास्तगी के खिलाफ आरक्षक ने वर्ष 2016 में हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका लगाने के कुछ माह बाद आरक्षक की मौत हो गई थी। आरक्षक की मौत के बाद पत्नी और बच्चे न्याय दिलाने अदालती लड़ाई लड़ते रहे। 9 साल बाद आरक्षक को न्याय मिला है। हाई कोर्ट ने कहा है कि नशे के आरोप में मेडिकल जांच के बिना बर्खास्तगी गलत है।

Bilaspur Highcourt News
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court : बिलासपुर। नशे में ड्यूटी की शिकायत पर कांस्टेबल को राज्य शासन ने सेवा से बर्खास्त कर दिया था। बर्खास्तगी आदेश को चुनौती देते हुए कांस्टेबल ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने आरोपों को गलत बताया था। याचिका दायर करने के कुछ महीने बाद वर्ष 2016 में उसकी मौत हो गई। पत्नी व बच्चे ने मुकदमा लड़ने की ठानी और अदालती लड़ाई लड़ते रहे। नौ साल बाद कांस्टेबल को न्याय मिला है। मामले की सुनवाई जस्टिस संजय अग्रवाल के सिंगल बेंच में हुई। कोर्ट ने बर्खास्तगी आदेश को गलत ठहराते हुए रद्द कर दिया है। सिंगल बेंच ने फैसले में कहा है कि मेडिकल जांच के बिना सिर्फ मौखिक आधार पर नशे मे होने की पुष्टि नहीं की जा सकती।

पुलिस विभाग में कांस्टेबल जीडी के पद पर कार्यरत विनोद सिंह पर वर्ष 2014 में आरोप लगाया गया था कि वह ड्यूटी के दौरान नशे की हालत में था। शराब के नशे में सहकर्मियों के साथ अभद्र व्यवहार करने का आरोप भी लगा था। इसके अलावा पूर्व में भी उसे 7 छोटी व एक बड़ी अनुशासनात्मक सजाएं दी जा चुकी थीं। इस आधार पर 24 जनवरी 2015 को उसे सेवा से बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया। बर्खास्तगी के खिलाफ 2016 में याचिका लगाई थी। कुछ माह बाद वर्ष 2017 में मौत हो गई। इसके बाद पत्नी और बच्चों ने केस लड़ा।

0 ब्लड- यूरीन टेस्ट से पुष्टि जरूरी:

सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने पाया कि आरोपी के नशे की हालत में होने की पुष्टि के लिए किसी भी तरह की मेडिकल जांच नहीं कराई गई। मौखिक गवाही व पंचनामे के आधार पर बर्खास्त कर दिया। हाई कोर्ट ने बच्चूभाई कार्यानी विरुद्ध महाराष्ट्र राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि नशे की पुष्टि केवल ब्लड या यूरीन टेस्ट से ही की जा सकती है। ऐसा नहीं करने पर इसे कानूनी रूप से सिद्ध नहीं माना जा सकता।

0 आदेश की फिर से समीक्षा करने के निर्देश:

याचिकाकर्ता के इतिहास को लेकर हाई कोर्ट ने माना कि उसे दी गई पिछली सजाओं के बाद भी अगर उसके व्यवहार में सुधार नहीं हुआ है, इसलिए यह आरोप गंभीर हैं। आरोप को साबित किए बिना सेवा से बर्खास्त करना उचित नहीं है। इस आधार पर हाई कोर्ट ने आदेश की समीक्षा कर दो माह के भीतर निर्णय लेने को कहा है।

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