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Bilaspur High Court: जैविक संतान को लेकर हाई कोर्ट का आया महत्वपूर्ण फैसला: भरण पोषण से इंकार करने वाले पिता से हाई कोर्ट ने कहा- संतान की देखरेख जरुरी है...

Bilaspur High Court: बिलासपुर हाई कोर्ट में पिता-पुत्री के रिश्ते को लेकर एक गंभीर मामला सामने आया है। पिता ने अपनी संतान होने से इंकार करते हुए परिवार न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने की मांग करते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। 20 साल बाद एक बेटी को अपने पिता से भरण पोषण की समुचित व्यवस्था की मांग को लेकर परिवार न्यायालय में याचिका दायर की थी। परिवार न्यायाालय ने प्रति महीने दो हजार रुपये पिता को निर्देश जारी किया था। डिवीजन बेंच ने कहा कि यह बाद में तय होते रहेगा कि याचिकाकर्ता और उसके बीच क्या रिश्ता है। बेटी की भरण पोषण सबसे पहले जरुरी है। कोर्ट ने पिता को निर्देशित किया है कि वह हर महीने दो हजार रुपये बेटी को दे।

Bilaspur High Court: जैविक संतान को लेकर हाई कोर्ट का आया महत्वपूर्ण फैसला: भरण पोषण से इंकार करने वाले पिता से हाई कोर्ट ने कहा- संतान की देखरेख जरुरी है...
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। पिता और पुत्री के रिश्ते और जिम्मेदारी निभाने को लेकर हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच में बेटी द्वारा पिता से भरण पोषण की समुचित व्यवस्था की मांग को लेकर परिवार न्यायालय में याचिका दायर की थी। परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए पिता ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। बेटी के दावे पर जब पिता ने अपना पक्ष रखा तो सब चौंक गए। पिता ने साफतौर पर अपना संतान मानने से इंकार कर दिया। डिवीजन बेंच ने कहा कि यह सब बाद में तय होते रहेगा। प्राथमिका बेटी की भरण पोषण की व्यवस्था करना है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता बेटी को हर महीने दो हजार रुपये देने का निर्देश पिता को दिया है। डिवीजन बेंच ने मामले का निराकरण छह महीने के भीतर करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि यदि निर्धारित अवधि में फैसला नहीं होता है और विलंब के लिए अपील करने वाला जिम्मेदार नहीं पाया जाता है तो ऐसी स्थिति में अंतरिम भरण पोषण पर पुनर्विचार किया जाएगा।

कबीरधाम निवासी युवती ने अपनी याचिका में कहा है कि उसकी मां की शादी 18 अप्रैल 1999 को हुई थी। उसका जन्म 16 नवंबर 2002 को हुआ। शादी के तीन साल बाद पिता ने उसकी मां को घर से निकाल दिया। तब से मां अपने मायके में रह रही है और वह भी मां के साथ ही रह रही है। आय का जरिया ना होने के कारण पढ़ाई प्रभावित हो रही है। जीवन यापन भी ठीक ढंग से नहीं चल रहा है। पढ़ाई सहित अन्य खर्च उठाना उसके लिए बेहद कठिन हो गया है। मामले की सुनवाई के बाद परिवार न्यायालय ने पिता को निर्देशित किया था कि बेटी को अंतरिम रूप से प्रति महीने दो हजार रुपये बतौर भरण पोषण दे। परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए पिता ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में पिता ने कहा कि वह छात्रा का जैविक पिता नहीं है। उसकी पत्नी के एक व्यक्ति से अवैध संबंध था। इसलिए वह भरण-पोषण देने के लिए जिम्मेदार नहीं है। यह भी कहा कि छात्रा ने 22 साल बाद भरण-पोषण की मांग की है, इसलिए वह इसकी हकदार नहीं है। याचिकाकर्ता ने परिवार न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने की मांग की थी।

कोर्ट ने पाया कि दंपती का विवाह 18 अप्रैल 1999 को हुआ था। पत्नी 22 मार्च 2002 को पति का घर छोड़कर चली गई थी। छात्रा का जन्म 16 नवंबर 2002 को हुआ। यानी पत्नी के घर छोड़ने के 9 महीने के भीतर। कोर्ट ने कहा कि यह फैसला बाद में होगा कि छात्रा उसकी बॉयोलॉजिकल संतान है या नहीं। अंतरिम भरण-पोषण के लिए प्रथम दृष्टया संबंध और आय की स्थिति देखी जाती है। लिहाजा छात्रा को प्रति महीने दो हजार रुपये देने का निर्देश दिया है।

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