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Bilaspur High Court: अवैध संबंध के बाद एबार्शन का दबाव, मां नहीं मानी, दिया बच्चे को जन्म, अब जैविक संतान ने मांगा अपना अधिकार

Bilaspur High Court: फैमिली कोर्ट ने बेटे की उस आवेदन को खारिज कर दिया था जिसमें उन्होंने अपने आपको पिता के जैविक संतान बताते हुए संपत्ति पर हक मांगा था। कोर्ट ने समय सीमा का हवाला देते हुए आवेदन खारिज कर दिया था। तब उसने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

Bilaspur High Court: अवैध संबंध के बाद एबार्शन का दबाव, मां नहीं मानी, दिया बच्चे को जन्म, अब जैविक संतान ने मांगा अपना अधिकार
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। 20 वर्ष के युवक ने खुद को एक शख्स का जैविक संतना (biological) संतान साबित करने और पिता की संपत्ति पर अधिकार की मांग करते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। हाई कोर्ट ने अपनी तरह के इस रोचक मामले को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है। मामले की सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस रजनी दुबे की डिवीजन बेंच में हुई। फैमिली कोर्ट ने समय सीमा का हवाला देते हुए आवेदन नामंजूर कर दिया था। हाई कोर्ट ने आदेश में कहा है कि बच्चों को यह अधिकार हमेशा मिला हुआ है, इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं है।

सूरजपुर के उमेशपुर निवासी एक युवक ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें खुद को एक पुरुष और महिला का जैविक बेटा घोषित करने और संपत्ति में अधिकार देने की मांग की है । याचिका में कहा है कि अपनी मां के साथ रहता है। उसका जन्म 12 नवंबर 1995 को हुआ था। उसके पिता की उमेशपुर गांव में पैतृक संपत्ति है। जहां उसकी मां पड़ोसी थी। पिता ने विवाह का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाया, जिससे मां प्रेग्नेंट हो गई। पिता ने मां पर एर्बाशन के लिए दबाव बनाया। दबाव के बाद भी उसने एबार्शन से इनकार कर दिया, जिसके बाद पिता ने संबंध समाप्त कर दिया।

इस मामले में सूरजपुर थाने में रिपोर्ट भी दर्ज करवाई गई थी। पुलिस आईपीसी की धारा 376 के तहत मामला दर्ज किया था। याचिका में कहा है कि वह वर्ष 2017 में बीमार पड़ा था। इलाज के लिए आर्थिक मदद मांगने व अपने पिता के घर गया, लेकिन उन्होंने बेटा मानने और मदद करने से इनकार कर दिया। फैमिली कोर्ट ने दस्तावेज और सबूतों पर विचार किए बिना ही समय सीमा का हवाला देते हुए आवेदन निरस्त कर दिया था। डिवीजन बेंच ने दलीलें सुनने के बाद फैमिली कोर्ट के निर्णय और डिक्री को निरस्त कर दिया है। याचिकाकर्ता को पुरुष और महिला का वैध पुत्र घोषित किया गया है। साथ ही कहा है कि वैध संतान होने के नाते सभी लाभों का हकदार होगा।

समाज ने कर दिया है अस्वीकार, आय का कोई जरिया नहीं

याचिकाकर्ता युवक ने अपनी याचिका में कहा है कि शादी से पहले मां बनने के कारण मां को समाज से बाहर कर दिया है। तब से लेकर आज तक मां और वह दोनों समाज से बाहर हैं। सामाजिक स्वीकार्यता ना होने के कारण दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा आय का कोई जरिया भी नहीं है।

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