Bilaspur High Court: हाई कोर्ट ने कहा- मध्यस्थता अधिनियम की धारा 48 के तहत विदेशी अवार्ड के प्रवर्तन से नहीं किया जा सकता इंकार
Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने अपने विदेशी प्रवर्तन अधिनियम की धाराओं का उल्लेख करते हुए कहा है कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 48 के तहत विदेशी अवॉर्ड के प्रवर्तन से इंकार नहीं किया जा सकता, जब तक कि यह सार्वजनिक नीति के खिलाफ न हो। बता दें कि हाई कोर्ट का यह फैसला न्याय दृष्टांत (AFR) बन गया है।
Bilaspur High Court: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने अपने विदेशी प्रवर्तन अधिनियम की धाराओं का उल्लेख करते हुए कहा है कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 48 के तहत विदेशी अवॉर्ड के प्रवर्तन से इंकार नहीं किया जा सकता, जब तक कि यह सार्वजनिक नीति के खिलाफ न हो। बता दें कि हाई कोर्ट का यह फैसला न्याय दृष्टांत (AFR) बन गया है।
इस महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के जस्टिस दीपक तिवारी के सिंगल बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद सिंगल बेंच ने माना है कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 48 के तहत किसी विदेशी अवार्ड को लागू करने से तब तक इंकार नहीं किया जा सकता जब तक कि यह साबित ना हो कि अवार्ड भारत की सार्वजनिक नीति के विरुद्ध है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि COVID-19 महामारी के दौरान भी बैंकिंग क्षेत्र ने आवश्यक सेवाएं प्रदान करना जारी रखा और अधिसूचना में उक्त क्षेत्र अपवाद के अंतर्गत है। लिहाजा अवार्ड को भारत की सार्वजनिक नीति के विपरीत नहीं कहा जा सकता।
क्या है मामला
छह मार्च, 2020 को एक ई-मेल के माध्यम से पार्टियों के बीच 50,000 मीट्रिक टन कोयले की बिक्री के लिए एक अनुबंध किया गया था, जिसमें मानक कोयला व्यापार समझौता संस्करण 8, सामान्य नियम और शर्तें (ScoTA) शामिल थीं।
इसके अलावा, प्रतिवादी -देनदार को डिलीवरी अवधि शुरू होने से 10 दिन पहले 31.3.2020 से पहले ऋण पत्र (एलसी) खोलने के लिए बाध्य किया गया था। प्रतिवादी देनदार उक्त तिथि तक एलसी खोलने में विफल रहा।
इसके बाद आवेदक के पक्ष में एक मध्यस्थ अवार्ड और लागत अवार्ड पारित किया गया। इस संबंध में वाणिज्यिक मंत्रालय द्वारा जारी 25.10.1976 की अधिसूचना जारी की गई। चूंकि प्रतिवादी की संपत्ति छत्तीसगढ़ राज्य के क्षेत्र में स्थित है, इसलिए ये दोनों आवेदन उक्त विदेशी अवार्ड को मान्यता देने के लिए दायर किए गए हैं।
हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि 1996 अधिनियम की धारा 48 अवार्ड प्रवर्तन चरण में विदेशी अवार्ड पर “दूसरी नज़र” डालने का अवसर नहीं देती है। धारा 48 के तहत जांच का दायरा योग्यता के आधार पर विदेशी अवार्ड की समीक्षा की अनुमति नहीं देता है। मध्यस्थों ने उक्त मुद्दे पर सावधानीपूर्वक विस्तार से विचार किया है और पाया है कि बैंक और शिपिंग अपवादित उद्योग हैं और वे लॉकडाउन नियमों के अधीन नहीं हैं।
हाई कोर्ट ने कहा कि तय अवधि के दौरान, संबंधित व्यक्ति सक्षम प्राधिकारियों की अनुमति प्राप्त करने के बाद बैंक से संपर्क कर सकता था। बैंकिंग क्षेत्र ने ऐसी असाधारण परिस्थितियों में प्रत्येक नागरिक की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक सेवाएं प्रदान करना जारी रखा है, ताकि किसी भी वित्तीय कठिनाई से बचा जा सके। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि इस आधार पर अवार्ड भारत की सार्वजनिक नीति के विपरीत या उसके विरुद्ध नहीं होंगे और प्रतिवादी ऋणी के वकील द्वारा उठाई गई उक्त आपत्ति संधारणीय नहीं है।