Bilaspur High Court: घर जमाई बनने किया मजबूर,चरित्र पर शक भी: हाई कोर्ट ने कहा, पत्नी ने कभी वैवाहिक जीवन बचाने कोशिश ही नहीं की
Bilaspur High Court: विवाह को महज सात महीने ही हुए थे कि पत्नी बिना किसी विवाद के ससुराल छोड़कर मायके चली गई, सास-ससुर व परिजनों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना केस दर्ज करा दिया। इस सबके बाद भी पति ने पत्नी को साथ रखने राजी हो गया। पत्नी ने घर जमाई बनकर रहने की शर्त रख दी। मामले की सुनवाई के दौरान जब यह सब बातें हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच के सामने लाया गया तब डिवीजन बेंच ने माना कि पत्नी ने कभी वैवाहिक जीवन बचाने कोशिश ही नहीं की। डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता पति को तलाक की सशर्त मंजूरी दे दी है। पढ़ें जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत ने तलाक की मंजूरी देने के साथ ही याचिकाकर्ता पति को क्या निर्देश दिया है।

Bilaspur High Court
Bilaspur High Court: बिलासपुर। पत्नी पीड़ित एक पति की याचिका पर जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता पति को तलाक की सशर्त मंजूरी दे दी है। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में पत्नी के भरण पोषण को लेकर जरुरी निर्देश दिया है।
याचिकाकर्ता पति ने अपनी याचिका में पत्नी द्वारा दहेज के नाम पर उनके माता पिता व रिश्तेदारों के खिलाफ झूठी शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज कराने और केस करने की बात भी बताई। याचिकाकर्ता पति ने यह भी कहा कि इतना सब-कुछ के बाद भी वह घर को उजाड़ने के बजाय बसाने की सोची। पत्नी ने घर जमाई बनने की शर्त रख दी। कोर्ट ने माना कि पत्नी ने ऐसा सब कृत्य कर क्रूरता ही किया है। क्रूरता के साथ ही वैवाहिक जीवन को बचाने की कोशिश भी नहीं की।
पति-पत्नी बालोद के रहने वाले हैं। 2007 में विवाह हुआ था। विवाह के महज सात महीने बाद भी मनमुटाव के चलते पत्नी ससुराल से मायके चली गई और वहीं रहने लगी। मायके में रहने के दौरान ही सास-ससुर के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए झूठी शिकायत थाने में दर्ज करा दी। शिकायत पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 498 ए के तहत केस दर्ज कर लिया और मामला चला दिया। कोर्ट ने झूठी शिकायत के आधार पर दर्ज कराई एफआईआर को सुनवाई के बाद रद्द करने का आदेश दिया था। पत्नी ने आरोप लगाया कि 11 जून 2008 को बेटी पैदा हुई। बेटी के जन्म के बाद पति ने देखभाल नहीं की और ना ही ध्यान दिया। पति ने पत्नी के आरोपों को नकारते हुए कहा कि वह खुद होकर मायके चली गई थी। बिना विवाद के जाने के बाद दोबारा लौटकर वापस नहीं आई। माता पिता पर दहेज प्रताड़ना का झूठा मामला भी चलाया। उसके चरित्र पर शंका की और आरोप भी लगाई। याचिकाकर्ता पति ने कहा कि पत्नी द्वारा यह सब करने के बाद भी वह साथ रहने के लिए राजी था। उसने पहल भी किया। पत्नी ने माता पिता को छोड़कर आने और घर जमाई बनकर रहने की शर्त रख दी। जो उसे मंजूर नहीं था।
वैवाहिक जीवन को बचाने पत्नी ने कोशिश ही नहीं की
मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि ऐसा लगता है कि पत्नी ने अपने वैवाहिक जीवन को बचाने की कभी कोशिश ही नहीं की। बिना कारण पति का घर छोड़कर मायके चली गई। झूठे मामले दर्ज कराई। यह सब क्रूरता की श्रेणी में आता है। कड़ी टिप्पणी के साथ डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता पति को सशर्त तलाक की मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता पति को,गुजारा भत्ता के तहत पत्नी को पांच लाख रुपये देने का आदेश दिया। इसके लिए याचिकाकर्ता को दो महीने की मोहलत दी है।