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Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: सहमति देने के बाद भी कर्मचारी के वेतन से नहीं कर सकते रिकवरी

Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का यह फैसला प्रदेश के कर्मचारियों के लिए राहत वाली हो सकती है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सेवाकाल के दौरान विभागीय अफसरों के दबाव में आकर कर्मचारियों ने सहमति पत्र में हस्ताक्षर कर दिया है, तब भी सेवाकाल के दौरान या रिटायरमेंट के बाद वेतन से रिकवरी नहीं हो सकती। कंपनी कमांडर की याचिका में हाई कोर्ट में यह फैसला दिया है।

Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: सहमति देने के बाद भी कर्मचारी के वेतन से नहीं कर सकते रिकवरी
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By Sanjeet Kumar

Bilaspur High Court: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का ताजा फैसला प्रदेश के लाखों कर्मचारियों के लिए राहत वाली है। 8वीं बटालियन छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल के कंपनी कमांडर की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि विभागीय अफसरों के दबाव में आकर कर्मचारियों ने सहमति पत्र में हस्ताक्षर कर दिया है, तब भी सेवाकाल के दौरान या रिटायरमेंट के बाद वेतन से रिकवरी नहीं हो सकती। विभागीय अफसर द्वारा जारी रिकवरी आदेश को रद्द करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता से वसूली गई राशि का तत्काल भुगतान करने का निर्देश दिया है।

एस मनोहरदास, 8वीं बटालियन छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल, राजनांदगांव में पुलिस विभाग में कंपनी कमांडर के पद पर पदस्थ थे। सेनानी 8वीं वाहिनी, राजनादगांव द्वारा एस. मनोहरदास को सेवाकाल के दौरान 01.01.2006 से 01.07.2018 तक त्रुटिपूर्ण ढंग अधिक वेतन भुगतान का हवाला देते हुए विरूद्ध वसूली आदेश जारी कर उनके वेतन से वसूली प्रारंभ कर दी।

कंपनी कमांडर एस. मनोहरदास ने अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय एवं दुर्गा मेहर के माध्यम से हाई कोर्ट बिलासपुर के समक्ष रिट याचिका दायर कर वसूली आदेश को चुनौती दी। मामले की सुनवाई जस्टिस पीपी साहू के सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिषेक पांडेय ने कोर्ट के समक्ष पैरवी करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्टेट आफ पंजाब विरूद्ध रफीक मसीह एवं अन्य, थामस डेनियल विरूद्ध स्टेट आफ केरल के उस आदेश का हवाला दिया जिसमें किसी भी तृतीय श्रेणी कर्मचारी से पूर्व के वर्षों में अधिक भुगतान का हवाला देकर उनके वेतन से किसी भी प्रकार की वसूली नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने यह भी व्यवस्था दी है कि यदि किसी शासकीय कर्मचारी ने आला अफसरों के दबाव में आकर सेवाकाल के दौरान लिखित सहमति (Undertaking) दे दी है तब भी उक्त शासकीय कर्मचारी के वेतन से किसी भी प्रकार की राशि की वसूली नहीं की जा सकती। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट के सामने छत्तीसगढ़ वेतन पुनरीक्षण अधिनियम में दी गई व्यवस्थाओं का भी जिक्र किया है।

क्या है छत्तीसगढ़ वेतन पुनरीक्षण अधिनियम

छत्तीसगढ़ वेतन पुनरीक्षण नियम 2009 एवं 2017 में यह प्रावधान किया गया है कि किसी शासकीय कर्मचारी को अधिक वेतन नियमन का हवाला देकर उनसे लिखित सहमति (Undertaking) लेकर किसी भी प्रकार की राशि की वसूली नहीं की जा सकती है। कंपनी कमांडर के मामले में विभागीय अफसरों ने छत्तीसगढ़ वेतन पुनरीक्षण अधिनियम के अलावा सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले की अवहेलना कर दी है। मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस पीपी साहू ने याचिकाकर्ता कंपनी कमांडर की रिट याचिका को स्वीकार कर लिया है। कोर्ट ने वसूली आदेश को निरस्त करते हुए सेनानी आठवीं बटालियन राजनादगांव को नोटिस जारी कर याचिकाकर्ता से वसूली गई राशि तत्काल वापस करने का निर्देश दिया है।

Sanjeet Kumar

संजीत कुमार: छत्‍तीसगढ़ में 23 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। उत्‍कृष्‍ट संसदीय रिपोर्टिंग के लिए 2018 में छत्‍तीसगढ़ विधानसभा से पुरस्‍कृत। सांध्‍य दैनिक अग्रदूत से पत्रकारिता की शुरुआत करने के बाद हरिभूमि, पत्रिका और नईदुनिया में सिटी चीफ और स्‍टेट ब्‍यूरो चीफ के पद पर काम किया। वर्तमान में NPG.News में कार्यरत। पंड़‍ित रविशंकर विवि से लोक प्रशासन में एमए और पत्रकारिता (बीजेएमसी) की डिग्री।

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