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Bilaspur High Court: 6 लाख के लिए 19 साल लड़ना पड़ा मुकदमा, अब आया हाई कोर्ट का फैसला

Bilaspur High Court: दुकान की खरीदी-बिक्री में खरीदार ने दुकानदार के साथ वादाखिलाफी कर दिया। सौदा के बाद चेक तो जारी किया पर सभी चेक बैंक से बाउंस हो गए। चेक बाउंस होने के बाद रकम लौटाने में आनकानी करने लगा। निचली अदालत ने दुकानदार के बजाय खरीदार के पक्ष में फैसला सुनाया। जीवनभर की गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा गंवाने वाले दुकानदार ने निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। 19 साल बाद अब जाकर उसे न्याय मिल पाया है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए,कुछ ऐसा फैसला सुनाया है।

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Bilaspur High Court

By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। चेक बाउंस के एक मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने चेक जारी करने वाले व्यक्ति को दोषी ठहराते हुए याचिकाकर्ता को छह महीने के भीतर शेष रकम छह लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह चेतावनी भी दी है कि तय तिथि के भीतर रकम ना लौटाने पर कठोर कारावास भुगतने क लिए तैयार रहे। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें चेक जारी करने वाले व्यक्ति को निर्दोष करार दिया था।

रायपुर निवासी मो. गुलाम मोहम्मद ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए अपने अधिवक्ता के माध्यम से छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में अपील पेश की थी। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कोर्ट को बताया है कि रायपुर के बैजनाथपारा स्थित अपनी तीन दुकान बेचने के लिए कटोरा तालाब निवासी मो. युसूफ से 28 लाख में सौदा तय किया था। खरीदी-बिक्री की बात पक्की होने के बाद रकम के भुगतान के लिए यह तय हुआ था कि 10 लाख रूपये पहले देने होंगे। शेष 18 लाख रुपये का भुगतान छह-छह लाख रुपये के तीन किस्तों में करना होगा। सौदा तय होने के बाद पंजीकृत बिक्री विलेख बनाया गया। छह अगस्त 2005 को 10 लाख का भुगतान किया गया। शेष राशि तीन बराबर किस्तों में भुगतान करने का वादा किया। खरीदार ने पहली किस्त के रूप में केवल छह लाख रुपये की राशि का चेक जारी किया और शेष राशि 12 लाख रुपये दो किस्तों में भुगतान करने का वादा किया।

चेक हो गया बाउंस

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि मो युसूफ द्वारा जारी छह लाख के चेक को भुगतान के लिए बैंक में जमा किया। बैंक में जब भुगतान के लिए गया तब कैशियर ने बताया कि अकाउंट में राशि ही नहीं है, लिहाजा चेक बाउंस हो गया। इस बात की जानकारी जब मो युसूफ को दी तब उसने एक और चेक जारी किया और आश्वस्त किया कि बैंक अकाउंट में बैलेंस है। दूसरी मर्तबे भी चेक बाउंस हो गया। बैंक द्वारा भी मो युसूफ को चेक बाउंस होने की लिखित सूचना भेजी गई। याचिकाकर्ता ने बताया कि इसके बाद अपने अधिवक्ता के माध्यम से मो युसूफ को लीगल नोटिस जारी किया। जवाब ना आने पर निचली अदालत में चेक बाउंस के मामले में मामला दायर किया। मामले की सुनवाई के बाद निचली अदालत ने 24 दिसंबर 2009 को याचिका को खारिज कर दिया।

हाई कोर्ट ने भुगतान का दिया निर्देश, सजा भुगतने चेतावनी भी दी

मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे के सिंगल बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के दौरान मो युसूफ ने दो बार चेक जारी करने की बात स्वीकार की। याचिकाकर्ता ने भुगतान के लिए 20.09.2005 को चेक जमा किया था जो 21.09.2005 को चेक जारीकर्ता मो युसूफ के बैंक अकाउंट में पर्याप्त राशि ना होने के कारण बाउंस हो गया। लीगल नोटिस को मो युसूफ ने स्वीकार नहीं किया। कोर्ट ने चेक जारीकर्ता मो युसूफ को दोषी ठहराते हुए याचिकाकर्ता को तय सौदा के अनुसार शेष रकम का भुगतान करने का निर्देश दिया है। इसके लिए छह महीने का समय सीमा तय कर दिया है। कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी है कि तय समय सीमा में राशि का भुगतान ना करने पर कठोर सजा भुगतने के लिए तैयार रहे।

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