छत्तीसगढ़ में वृक्षारोपण फेल होने से सरकार को करोड़ों का नुकसान, सिंघवी ने वन मंत्री अकबर को पत्र लिख अधिकारियों से 25 फीसदी राशि वसूलने की मांग की

Update: 2020-09-08 07:45 GMT

रायपुर, 8 सितंबर 2020 । रायपुर निवासी नितिन सिंघवी ने वन मंत्री मोहम्मद अकबर और प्रमुख सचिव वन को पत्र लिखकर मांग की है की संयुक्त मध्यप्रदेश के समय जारी आदेश के अनुसार छत्तीसगढ़ के जिलों में वृक्षारोपण के बाद अगर 40% से कम पौधे जीवित रहते हैं तो ऐसे रोपण को असफल माना जावेगा तथा वृक्षारोपण पर खर्च की गई 25% राशि शासन के लिए हानि मानी जावेगी और इसके लिए उत्तरदायित्व निर्धारित किया जाकर उत्तरदाई अधिकारी कर्मचारी से वसूली की जाएगी, यह आदेश छत्तीसगढ़ में लागू है।

तो जमीन की कमी पड़ गई होती छत्तीसगढ़ में

सर्वविदित है कि छत्तीसगढ़ निर्माण के समय से ही छत्तीसगढ़ के 42% भूभाग में वन है. सिंघवी ने पत्र में बताया है कि फारेस्ट सर्वे ऑफ़ इंडिया के अनुसार छत्तीसगढ़ के 42 प्रतिशत वन क्षेत्रों में 116 करोड़ वृक्ष है। छत्तीसगढ़ में पिछले कई वर्षों से वन विभाग द्वारा प्रतिवर्ष 7 से 10 करोड़ पौधों का वृक्षारोपण किया जाता है। इस प्रकार प्रति व्यक्ति लगभग 40 वृक्षों की दर से लगभग 80 करोड़ पौधों का वृक्षारोपण तो हो ही चुका है, अगर इस 80 करोड़ पौधों में से आधे भी जिंदा होते तो उससे छत्तीसगढ़ के भूभाग के 60 प्रतिशत भाग में पेड़ होते, इस प्रकार छत्तीसगढ़ में जमीन की कमी हो गई होती। अतः स्पष्ट है कि असफल वृक्षारोपण किया गया है। इस लिए अब समय आगया है कि शासन को पिछले 10 वर्षो में किए गए वृक्षारोपण का मूल्यांकन करा कर असफल वृक्षारोपण से हुई वित्तीय हानि की वसूली उत्तरदाई अधिकारियों और कर्मचारियों से वसूल की जाये।

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में दिया था शपथ पत्र

वृक्षारोपण की तकनीकी के संबंद में पत्र में बताया गया है कि छत्तीसगढ़ शासन ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायलय में दायर एक जनहित याचिका “नितिन सिंघवी विरुद्ध छत्तीसगढ़ राज्य” में वर्ष 2017 में बताया था कि वृक्षारोपण तकनीकी के अनुसार किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ वन विभाग एवं तत्कालीन मध्य प्रदेश वन विभाग द्वारा जारी आदेशानुसार रोपण क्षेत्र का चयन वृक्षारोपण के एक वर्ष पूर्व हो जाना चाहिए तथा चयन किए गए रोपण क्षेत्र की उपयुक्तता का प्रमाण पत्र राजपत्रित अधिकारी से प्राप्त किया जाना चाहिए। बरसात के दौरान जब जमीन में 1 से 1.5 फीट तक नमी पहुंच जावे तो रोपण प्रारंभ करना चाहिये। वर्षाऋतु में रोपण का कार्य 31 जुलाई तक हर हालत में पूर्ण हो जाना चाहिये। यथा सम्भव 20 जुलाई तक सम्पन्न कराने का प्रयास किया जाना चाहिये। किसी कारणवश जैसे कि बरसात के कारण विषम परिस्थितियों के कारण 31 जुलाई तक रोपण किया जाना संभव न हो तो अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास/योजना) से समय वृध्दि प्राप्त की जावेगी। प्रत्येक रोपण क्षेत्र को प्रोजेक्ट के रूप में मानकर क्रियान्वयन हेतु अधिकारी तथा कर्मचारियों का नामांकन तथा निरीक्षण हेतु अधिकारी का नामांकन भी प्रोजेक्ट में दर्शना अनिवार्य है।

क्या की गई मांग

सिंघवी ने आरोप लगाया कि वन विभाग एवं वृक्षारोपण करने वाले अन्य विभाग तकनीकी का पालन नहीं करते बरसात चालू होने के बाद जमीन ढूंढते है और साल भर यहाँ तक कि भरी गर्मियों में भी वृक्षारोपण करते है, गर्मियों में गड्ढे ना खोद कर वर्षाऋतु में वृक्षारोपण की लिए गड्ढे खोदते है, तीन साल तक देख भाल नहीं करते, जिसके कारण वृक्षारोपण असफल होता है। सिंघवी ने मांग की है कि पिछले दस वर्षो में किए गए असफल वृक्षारोपण से हुई शासन और जनता के पैसे की हुई वित्तीय हानि की 25 प्रतिशत वसूली उत्तरदाई अधिकारियों और कर्मचारियों से वसूल की जावे एवं भविष्य में वृक्षारोपण तकनीकी अनुसार किया जाये।

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