Uniform Civil Code: जानिए क्या है UCC यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड, लागू होने पर क्या होंगे बदलाव ?

भाजपा अक्सर यूनियन सिविल कोड की बात करती है, जिसका विरोध विपक्ष करता रहा है। ऐसे में आज हम जानेंगे कि आखिर यूसीसी यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है और इसके लागू होने से लोगों के जीवन में क्या बदलाव होंगे?

Update: 2024-06-13 13:14 GMT

रायपुर, एनपीजी डेस्क। भारत में अक्सर यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता की बात उठती रही है। बीजेपी के घोषणा पत्र में हर बार इसका जिक्र जरूर होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई भाजपा नेता यूसीसी की बात उठा चुके हैं, जिसका विरोध विपक्ष करता रहा है। ऐसे में आज हम जानेंगे कि आखिर यूसीसी यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है? 

यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम या कानून। समान नागरिक संहिता का मतलब है कि पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिए विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे। संविधान के अनुच्छेद 44 में भी सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है।


अनुच्छेद 44 में यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात

इस अनुच्छेद में कहा गया है कि 'राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा'। समान नागरिक संहिता में देश के हरेक नागरिक के लिए एक समान कानून होता है, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। वर्तमान में देश में सभी धर्मों के लिए शादी, तलाक, संपत्ति के लिए अलग-अलग नियम हैं। देश में कई धर्म के लोग विवाह, संपत्ति और गोद लेने में अपने पर्सनल लॉ का पालन करते हैं। मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का अपना-अपना पर्सनल लॉ है, जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं।

2 तरह के कानून क्रिमिनल लॉ और सिविल लॉ

अधिकतर देशों में 2 तरह के कानून होते हैं। क्रिमिनल लॉ और सिविल लॉ। क्रिमिनल लॉ में चोरी, लूट, मारपीट, डकैती, हत्या जैसे आपराधिक मामलों की सुनवाई की जाती है। इसमें सभी धर्मों या समुदायों के लिए एक ही तरह के कोर्ट, प्रोसेस और सजा का प्रावधान होता है।


सभी धर्मों के अपने-अपने पर्सनल लॉ

वहीं सिविल लॉ में शादी, तलाक, संपत्ति, गोद लेने से जुड़े मामले आते हैं। भारत में अलग-अलग धर्म के लोग रहते हैं और इनके रीति- रिवाज, संस्कृति और परम्पराएं एक-दूसरे से भिन्न हैं। अलग धर्मों या समुदायों से जुड़े कानून भी हैं, जिन्हें पर्सनल लॉ कहते हैं। यूनिफॉर्म सिविल कोड के लागू होने से सभी तरह के पर्सनल लॉ खत्म हो जाएंगे और सभी धर्मों, समुदायों के लिए समान कानून लागू हो जाएगा। अभी पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम व्यक्ति 4 शादियां कर सकता है, लेकिन हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करना अपराध है।

यूसीसी लागू होने के बाद महिलाओं को होगा फायदा

अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है, तो लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ा दी जाएगी। इससे वे कम से कम ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई पूरी कर सकेंगी। वहीं गांव स्‍तर तक शादी के पंजीकरण की सुविधा पहुंचाई जाएगी। अगर किसी की शादी पंजीकृत नहीं होगी है, तो दंपति को सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा। पति और पत्‍नी को तलाक के समान अधिकार मिलेंगे। एक से ज्‍यादा शादी करने पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी। नौकरीपेशा बेटे की मौत होने पर पत्‍नी को मिले मुआवजे में माता-पिता के भरण पोषण की जिम्‍मेदारी भी शामिल होगी। उत्‍तराधिकार में बेटा और बेटी को बराबर का हक होगा।

मुस्लिम महिलाओं को हलाला और इद्दत से मिलेगा छुटकारा

पत्‍नी की मौत के बाद उसके अकेले माता-पिता की देखभाल की जिम्‍मेदारी पति की होगी। वहीं, मुस्लिम महिलाओं को बच्‍चे गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा। उन्‍हें हलाला और इद्दत से पूरी तरह से छुटकारा मिल जाएगा। लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले सभी लोगों को डिक्लेरेशन देना पड़ेगा। पति और पत्‍नी में अनबन होने पर उनके बच्‍चे की कस्‍टडी दादा-दादी या नाना-नानी में से किसी को दी जाएगी। बच्‍चे के अनाथ होने पर अभिभावक बनने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी।

समान नागरिक संहिता का विरोध क्यों?

अल्पसंख्यक समुदाय खासतौर पर मुस्लिम संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहते हैं कि संविधान ने देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया है। इसलिए सभी पर समान कानून थोपना संविधान के साथ खिलवाड़ करने जैसा होगा।

मुस्लिमों के मुताबिक, उनके निजी कानून उनकी धार्मिक आस्था पर आधारित हैं, इसलिए समान नागरिक संहिता लागू कर उनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप न किया जाए।

मुस्लिम विद्वानों के मुताबिक शरिया कानून 1400 साल पुराना है, क्योंकि यह कानून कुरान और पैगम्बर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं पर आधारित है, इसलिए ये उनकी आस्था का विषय है।

समान नागरिक संहिता के पक्ष में दलीलें

अनुच्छेद 14 के तहत कानून के सामने समानता का अधिकार, अनुच्छेद 15 में धर्म, जाति, लिंग के आधार पर किसी भी नागरिक से भेदभाव करने की मनाही और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और निजता के संरक्षण का अधिकार लोगों को दिया गया है। हालांकि महिलाओं के मामले में इन अधिकारों का लगातार हनन होता रहा है। यूसीसी लागू होने से लैंगिक समानता आएगी। वहीं सामाजिक समानता भी सुनिश्चित हो सकेगी।

गोवा और उत्तराखंड में लागू है यूनिफॉर्म सिविल कोड

समान नागरिक संहिता के मामले में गोवा अपवाद है। गोवा में यूसीसी पहले से ही लागू है। संविधान में गोवा को विशेष राज्‍य का दर्जा दिया गया है। गोवा को पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का अधिकार भी मिला हुआ है। राज्‍य में सभी धर्म और जातियों के लिए फैमिली लॉ लागू है। सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग से जुड़े लोगों के लिए शादी, तलाक, उत्‍तराधिकार के कानून समान हैं। गोवा में कोई भी ट्रिपल तलाक नहीं दे सकता है। रजिस्‍ट्रेशन कराए बिना शादी कानूनी तौर पर मान्‍य नहीं होती है। संपत्ति पर पति-पत्‍नी का समान अधिकार है। वहीं आजादी के बाद उत्तराखंड भारत का पहला राज्य बन गया है, जहां यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हुआ है।

पाकिस्तान और बांग्लादेश में लागू है समान नागरिक संहिता

दुनिया के कई देशों में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। इनमें पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश भी शामिल हैं। इनके अलावा इजरायल, जापान, फ्रांस और रूस में भी समान नागरिक संहिता लागू है। यूरोपीय देशों और अमेरिका में धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होता है। दुनिया के ज्‍यादातर इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है, जो वहां रहने वाले सभी धर्म के लोगों को समान रूप से लागू होता है।

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