Delimitation of Assembly Seats: विधानसभा सीटों का परिसीमन, जानिए... आजादी के बाद से छत्‍तीसगढ़ में कितनी बार बदली विधानसभा क्षेत्रों की सीमा और नाम, एक ही चुनाव के बाद खत्‍म हो गई कई सीटें

Delimitation of Assembly Seats: छत्‍तीसगढ़ राज्‍य वर्ष 2000 में अस्तित्‍व में आया, उससे पहले यह अविभाजित मध्‍य प्रदेश और उससे भी पहले सीपी एंड बरार का हिस्‍सा था। तब से लेकर अब तक यहां के विधानसभा क्षेत्रों में कितना बदलाव हुआ है, पढ़े एनपीजी की विशेष रपट...

Update: 2023-08-21 15:47 GMT
  • 1951 में 61 सीटें थीं, इनमें 8 अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित थी
  • 1957 में सीटों की संख्‍या घटाकर 57 कर दी गई, इनमें 22 एसटी और 11 एससी के लिए आरक्षित थीं
  • भिलाई सीट 1957 में अस्तित्‍व में आई, तब यह एसटी आरक्षित थी, 1967 में यह सामान्‍य हो गई
  • 2003 से राज्‍य में विधानसभा सीटों की संख्‍या 90 पहुंची और अभी 90 बनी हुई है

Delimitation of Assembly Seats: रायपुर। आदाजी के बाद से अब तक छत्‍तीसगढ़ में विधानसभा सीटों की संख्‍या और क्षेत्र कई बार बदला है। आजादी के बाद पहली बार 1951 में पूरे देश में विधानसभा के चुनाव हुए। तब यहां सीटों की संख्‍या 61 थी, लेकिन कई सीटों पर दो-दो विधायक चुने गए थे। राज्‍य विधानसभा का मौजूदा स्‍वरुप यानी 90सीट संख्‍या 2003 से हुई है। उससे पहले 1998 के चुनाव तक यहां कुल 83 सीट थे। तब तक छत्‍तीसगढ़ अविभाजित मध्‍य प्रदेश का हिस्‍सा था।

जानिए उन सीटों के बारे में जो 1951 से बनी हुई हैं

1951 से अब तक विधानसभा सीटों के क्षेत्र और नाम में कई बार बदलाव आया है, लेकिन कुछ सीटें ऐसी हैं जिनका क्षेत्र तो बदला, लेकिन नाम नहीं बदला है। इनमें मनेन्द्रगढ़, सामरी, सीतापुर, अंबिकापुर, जशपुर, सक्ती, रायगढ़, सारंगढ़, चंद्रपुर, जांजगीर- पामगढ़, अकलतरा मस्तूरी, बिलासपुर, कटघोरा, रामपुर, मुंगेली, तखतपुर, कोटा, सरायपाली, बसना, महासमुंद, राजिम, भाटापारा, कसडोल, आरंग, कुरुद, धमतरी, दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, चित्रकोट, जगदलपुर, केशकाल, नारायणपुर, कांकेर, बालोद, डोंगरगांव, डोंगरगढ़, खैरगढ़, दुर्ग, बेमेतरा और कवर्धा शामिल हैं। भाटापार के साथ सीतापुर नाम जुड़ा हुआ था। आरंग के साथ खरोरा और कसडोल से पहले कोसमंडी जुड़ा हुआ था।

रायपुर में गुढि़यारी भी विधानसभा सीट

कुल सीटें ऐसी भी हैं जो 1951 में ही खत्‍म हो गई। इनमें रायपुर की गुढि़यारी सीट भी शामिल है। पेंड्रा, नरगोड़ा, पचेड़ा, पांडुका और बोरी डेकर शामिल हैं।

राजनांदगवं था नंदगांव और सूरजपुर था सुरईपुर

राजनांदगांव सीट 1951 में ही अस्तित्‍व में आ गया था, लेकिन तब उसका नाम नंदगांव था। 1957 से इसे राजनांदगांव लिखा जाने लगा। इसी 1957 में सुरईपुर सीट अस्तित्‍व में आया। 1962 में इसका नाम सूरजपुर हो गया।


1957 के चुनाव में पहली बार अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गई सीट

1951 के चुनाव में केवल अनुसूचित जनजाति के लिए सीटे आरक्षित थीं। 1951 में अविभाजित मध्‍य प्रदेश में 184 सीटें थीं। इनमें मौजूदा छत्‍तीसगढ़ में आने वाली सीटों की संख्‍या 61 थी। इनमें 8 सीट आदिवासी वर्ग (एसटी) के लिए आरक्षित थीं। अनुसूचित जाति (एससी) को 1957 से आरक्षण मिलना शुरू हुआ। 1957 में अविभाजित मध्‍य प्रदेश में सीटों की संख्‍या बढ़कर 218 हो गई, लेकिन छत्‍तीसगढ़ के हिस्‍से में केवल 57 सीट थी। इनमें 22 एसटी और 11 एससी के लिए आरक्षित थीं। 1962 में प्रदेश में आने वाली सीटों की संख्‍या बढ़कर 81 हो गई। इसमें एससी के लिए आरक्षित सीटों की संख्‍या 11 से बढ़कर 13 हो गई, जबकि एसटी सीटें 22 ही रहीं। 1967 में फिर बदला हुआ और एससी आरक्षित सीटों की संख्‍या घटकर 8 हो गई, जबकि एसटी सीटें बढ़कर 28 हो गईं। 2003 तक राज्‍य में 34 सीटें एसटी और 10 सीटें एससी के लिए आरक्षित थीं। वर्तमान में यह संख्‍या क्रमश: 29 और 10 है।


Delimitation of Assembly Seats: जानिए क्‍यों किया जाता है परिसीमन

लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन समय- समय पर किया जाता है। सामान्‍यत: जनगणना के बाद परिसीमन किया जाता है। इसका उद्देश्य परिवर्तित जनसंख्या का समान प्रतिनिधित्व तय करना होता है। इसके माध्‍यम से सभी निर्वाचन क्षेत्रों की जनसंख्या को समान करने के लिए निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमा को निर्धारित की जाती है। ऐसे क्षेत्र अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या अधिक है, उन्‍हें आरक्षित किया जाता है।

जानिए क्‍या है परिसीमन Delimitation of Assembly Seats

भारत निर्वाचन आयोग के अनुसार परिसीमन का शाब्दिक अर्थ है किसी देश या प्रांत में विधायी निकाय वाले क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने की क्रिया या प्रक्रिया। परिसीमन का काम एक उच्चाधिकार निकाय को सौंपा जाता है। ऐसे निकाय को परिसीमन आयोग या सीमा आयोग के रूप में जाना जाता है। भारत मेंऐसे परिसीमन आयोगों का गठन 4 बार किया गया है-1952 में परिसीमन आयोग अधिनियम, 1952 के अधीन, 1963 में परिसीमन आयोग अधिनियम, 1962 के अधीन, 1973 में परिसीमन अधिनियम, 1972 और 2002 में परिसीमन अधिनियम, 2002 के अधीन। परिसीमन आयोग भारत में एक उच्चाधिकारनिकाय है जिसके आदेशों को कानून के तहत जारी किया गया है और इन्हें किसी भी न्यायालयमें चुनौती नहीं दी जा सकती। इस संबंध में,ये आदेश भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट तारीख से लागू होंगे। इसके आदेशों की प्रतियां संबंधित लोक सभा और राज्य विधानसभा के सदन के समक्ष रखी जाती हैं लेकिन उनमें उनके द्वारा कोई संशोधन करने की अनुमति नहीं होती है।

सेंट्रल प्राविंसेस एंड बरार विधानसभा से छत्‍तीसगढ़ तक का सफर

सीपी एंड बरार यानी सेंट्रल प्राविंसेस एंड बरार से छत्‍तीसगढ़ का सफर कैसा रहा। 15 अगस्‍त, 1947 के पूर्व देश में कई छोटी-बड़ी रियासतें एवं देशी राज्‍य अस्तित्‍व में थे। स्‍वाधीनता पश्‍चात् उन्‍हें स्‍वतंत्र भारत में विलीन और एकीकृत किया गया। 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के बाद देश में सन् 1952 में पहले आम चुनाव हुए, जिसके कारण संसद एवं विधान मंडल कार्यशील हुए। प्रशासन की दृष्टि से इन्‍हें श्रेणियों में विभाजित किया गया था। सन् 1956 में राज्‍यों के पुनर्गठन के फलस्‍वरूप 1 नवंबर, 1956 को नया राज्‍य मध्‍यप्रदेश अस्तित्‍व में आया। इसके घटक राज्‍य मध्‍यप्रदेश, मध्‍यभारत, विंध्‍य प्रदेश और भोपाल थे, जिनकी अपनी विधान सभाएं थीं। पुनर्गठन के फलस्‍वरूप सभी चारों विधान सभाएं एक विधान सभाएं एक विधान सभा में समाहित हो गईं। अत: 1 नवंबर, 1956 को पहली मध्‍यप्रदेश विधान सभा अस्तित्‍व में आई। इसका पहला और अंतिम अधिवेशन 17 दिसंबर, 1956 से 17 जनवरी, 1957 के बीच संपन्‍न हुआ। पूर्व में वर्तमान महाकौशल, छत्‍तीसगढ़ और महाराष्‍ट्र के बरार क्षेत्र को मिलाकर सेंट्रल प्राविंसेस एंड बरार नामक राज्‍य अस्तित्‍व में था। राज्‍य पूनर्गठन के बाद महाकौशल और छत्‍तीसगढ़ का क्षेत्र यानी पूर्व मध्‍यप्रदेश (जिसे सेंट्रल प्राविंसेस कहा जाता था) वर्तमान मध्‍यप्रदेश का भाग बना। इसके बाद 2000 में छत्‍तीसगढ़ राज्‍य का गठन हुआ।




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