Uttarkashi Tunnel Rescue: सिल्क्यारा सुरंग को लेकर उठा हादसा या अपराध का सवाल

Uttarkashi Tunnel Rescue: उत्तरकाशी के सिल्क्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को निकालने का इंतजार लंबा होता जा रहा है। 12 नवंबर को दीपावली की रौशनी में जब पूरा देश जगमग हो रहा था...

Update: 2023-11-19 11:04 GMT

Uttarkashi tunnel rescue

Uttarkashi Tunnel Rescue: उत्तरकाशी के सिल्क्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को निकालने का इंतजार लंबा होता जा रहा है। 12 नवंबर को दीपावली की रौशनी में जब पूरा देश जगमग हो रहा था देश की आर्थिक रफ्तार बढ़ाने के नाम पर एक लंबी सुरंग खोदने को तैनात मजदूर एक भयानक विस्फोट की आवाज के साथ हुए भूस्खलन से अंधेरे में घिर गए। आज आठवें दिन रविवार को भी ये अंधेरा कायम हैसाथ ही हिमालयी क्षेत्रों में अवैज्ञानिक बेतरतीब, बेहसाब निर्माण कार्यों से जुड़े सवाल भी एक बार फिर हमारे सामने खड़े हो गए हैं।

देश के सीमावर्ती इलाकों में बेहतर सड़कें और आर्थिक गलियारों के नाम पर बनी भारतमाला परियोजना को सरकार की ओर से रोड टु प्रॉस्पेरिटी यानी समृद्धि की ओर ले जाने वाली सड़कें कहा गया है। हिमालयी क्षेत्र में चारधाम सड़क परियोजना इसी समृद्धि के सपने के नाम पर लाई गईं। इन बारामासी सड़कों पर हादसों, भूस्खलन के नए सक्रिय जोन और विवादों के कई अध्याय जुड़ गए हैं।

क्या है सिल्क्यारा सुरंग? 

सड़कें चौड़ी करने, दुर्गम इलाकों में आवाजाही सुगम करने के नाम पर बनाई जा रही सिल्क्यारा सुरंग चारधाम परियोजना का हिस्सा है। भारतमाला परियोजना रिपोर्ट में इसे “स्टेट ऑफ आर्ट” कहा गया। जो इस समय मलबे से पटी है और भारी भरकम आधुनिक अर्थ ऑगर मशीन हिमालयी चट्टानों को भेदने में अब तक असफल रही हैं। हालांकि उम्मीद बची रहनी चाहिए।

उत्तरकाशी के यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर धरासू और बड़कोट के बीच सिल्क्यारा गांव के नजदीक 853.79 करोड़ लागत की 4.86 किमी लंबी सुरंग का निर्माण यमुनोत्री धाम में किया जा रहा है। सिल्क्यारा गांव की तरफ से 2.3 किमी और बड़कोट की तरफ से 1.6 किमी सड़क का निर्माण पूरा हो चुका था। सिल्क्यारा की तरफ से लगभग 270 मीटर अंदर सुरंग धंस गई और ऊपर पहाड़ का मलबा सुरंग के भीतर 22 मीटर तक भर गया। मशीनों से इस मलबे को हटाने की कोशिश में पहाड़ से और ज्यादा मलबा नीचे आया और करीब 60 मीटर तक मलबे की दीवार बन गई।

एक्सीडेंट या अपराध? 

उत्तरकाशी में पर्यावरण मुद्दों को लेकर कार्य कर रहे गैर-सरकारी संगठन “गंगा आह्वान” की मल्लिका भनोट भागीरथी इको सेंसेटिव जोन की सिंगल लेन सड़क का उदाहरण देती हैं। “इस साल मानसून में चारधाम सड़क परियोजना से जुड़ी सीमावर्ती क्षेत्रों केदारनाथ, बद्रीनाथ और पिथौरागढ़ की सड़कें भूस्खलन के चलते बंद हुईं लेकिन भागीरथी क्षेत्र की सड़क में ऐसे भूस्खलन नहीं हुए वो जगह सबसे ज्यादा सुरक्षित और स्थिर रही। वही एक रास्ता सीमा तक खुला था। जबकि सारे अन्य रास्ते बंद हो रहे थे।

मल्लिका आक्रोश जताती हैं कि ऐसे हादसों के बाद नेताओं के खोखले बयान सामने आते हैं। जोशीमठ और हिमाचल आपदा के बाद हिमालयी क्षेत्र की वहनीय क्षमता (कैरिंग कैपेसिटी) के आकलन की बात कही जा रही है। सुरंग आपदा के बाद राज्य की सभी सुरंगों की समीक्षा के बयान सामने आ रहे हैं। ये काम पहले क्यों नहीं किये गए? हम हिमालयी क्षेत्र को मैदानों की तर्ज पर क्यों विकसित करना चाहते हैं? हम हिमालय को क्यों नहीं समझ रहे हैं?

मल्लिका कहती हैं कि सिल्क्यारा जैसे सुरंग हादसे ‘आपराधिक’ हैं। चारधाम परियोजना को लेकर बनाई गई हाई पावर कमेटी ने सिल्क्यारा में सुरंग निकालने के लिए मना किया था। सरकार को सारी परियोजनाओं की अलग-अलग विशेषज्ञ संस्थाओं से समीक्षा करवानी चाहिए। उनकी रिपोर्ट के आधार पर निर्माण कार्यों में बदलाव लाने चाहिए। तभी जांच से जुड़ी उनकी मंशा में कोई सच्चाई है।

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