Tripura HIV Case: त्रिपुरा में HIV से हुई 47 छात्रों की मौत और 828 संक्रमित, जानिए क्या है कारण

Tripura HIV Case: त्रिपुरा में छात्रों के बीच HIV संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। त्रिपुरा स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी (TSACS) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने जानकारी दी कि राज्य में HIV से अब तक 47 छात्रों की मौत हो चुकी है।

Update: 2024-07-06 16:35 GMT

Tripura HIV Case: त्रिपुरा में छात्रों के बीच HIV संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। त्रिपुरा स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी (TSACS) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने जानकारी दी कि राज्य में HIV से अब तक 47 छात्रों की मौत हो चुकी है। साथ ही, राज्य में 828 छात्र HIV पॉजिटिव पाए गए हैं। इस खतरनाक संक्रमण के कारण राज्य में चिंता बढ़ रही है।

बढ़ते HIV मामलों की गंभीरता

TSACS के अनुसार, 220 स्कूलों और 24 कॉलेजों एवं यूनिवर्सिटी में ऐसे छात्रों की पहचान की गई है जो इंजेक्शन से ड्रग्स लेते हैं। हाल ही में सामने आए आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में लगभग हर दिन HIV के पांच से सात नए मामले सामने आ रहे हैं। TSACS के ज्वाइंट डायरेक्टर ने बताया कि राज्य में कुल 164 स्वास्थ्य सुविधाओं से डेटा एकत्र किया गया है, जिससे इन मामलों की गंभीरता का पता चलता है।

HIV का इलाज और वर्तमान स्थिति

TSACS के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मई 2024 तक एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) केंद्रों में 8,729 लोगों को रजिस्टर किया गया है। HIV से पीड़ित लोगों की कुल संख्या 5,674 है, जिनमें से 4,570 पुरुष और 1,103 महिलाएं हैं। इनमें से केवल एक मरीज ट्रांसजेंडर है। ART केंद्रों में इलाज के जरिए इन मरीजों की स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है।

HIV मामलों में बढ़ोतरी के कारण

TSACS के ज्वाइंट डायरेक्टर भट्टाचार्जी ने बताया कि राज्य में HIV मामलों में बढ़ोतरी का मुख्य कारण नशीली दवाओं (ड्रग्स) का दुरुपयोग है। उन्होंने कहा कि अधिकतर मामलों में बच्चे अच्छे परिवारों के होते हैं, जहां माता-पिता दोनों सरकारी सेवा में होते हैं और बच्चों की हर जिद और मांग को पूरा करते हैं। लेकिन बाद में माता-पिता को एहसास होता है कि उनका बच्चा नशे की चपेट में आ गया है और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

जागरूकता और समाधान की दिशा में कदम

राज्य में बढ़ते HIV मामलों को रोकने के लिए जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है। नशीली दवाओं के दुरुपयोग को रोकने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा और परामर्श कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। इसके साथ ही, माता-पिता को भी बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखने और उनकी समस्याओं को समझने की सलाह दी जानी चाहिए।

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