रेप मामले में हाईकोर्ट का फैसला: शादी का वादा करके सेक्स करना हमेशा रेप नहीं होता…..इस मामले को लेकर की टिप्पणियां

Update: 2020-12-18 02:57 GMT

नयी दिल्ली 18 दिसंबर 2020। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हाई कोर्ट ( Delhi High Court ) ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। इस फैसले के तहत शादी का वादा कर शारीरिक संबंध बनाना हर बार रेप की श्रेणी में नहीं माना जाएगा। दरअसल रेप केस की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है। महिला 2008 से लेकर 2015 तक एक पुरुष के साथ रिलेशन में थी. बाद में उस व्यक्ति ने महिला को छोड़ दिया और दूसरी महिला से शादी कर ली. महिला ने आरोप लगाया था कि शादी का वादा करके उसके साथ कई महीनों तक फिजिकल रिलेशन बनाए गए.

पहले ये केस ट्रायल कोर्ट में था. वहां से आरोपी पुरुष को रेप के आरोप से बरी कर दिया गया था. इसके बाद फरियादी महिला ने हाई कोर्ट का रुख किया. अब हाई कोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी है.जस्टिस विभू बाखरू की बेंच ने कहा कि कुछ केस ऐसे होते हैं, जिनमें महिलाएं शादी के वादे में आकर कुछ मौकों पर फिजिकल रिलेशन बनाने के लिए राजी हो जाती हैं, जबकि इसमें उनकी पूर्ण सहमति नहीं होती. ये ‘क्षणिक’ होता है और ऐसे मामलों में IPC की धारा- 375 (रेप) के तहत केस चलाया जा सकता है.

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा हैकि शारीरिक संबंध बनाने के लिए शादी का वादा करने का प्रलोभन देना और पीड़िता के इस तरह के झांसे में आना समझ में आ सकता है, लेकिन शादी का वादा एक लंबे और अनिश्चित समय की अवधि में शारीरिक संबंध के लिए सरंक्षण नहीं दिया जा सकता। इसके साथ ही उच्च न्यायलय ने कहा है कि महिला की शिकायत के साथ-साथ उसकी गवाही से भी साफ जाहिर होता है कि आरोपी के साथ उसके संबंध सहमति से बने थे।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि महिला की शिकायत के मुताबिक उसने 2008 में आरोपी के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे और इसके तीन या चार माह बाद उसने उससे शादी करने का वादा किया। इसके बाद वह लड़के के साथ रहने लगी थी। न्यायालय ने कहा है कि महिला ने शिकायत में यह भी आरोप लगाया कि वह दो बार गर्भवती हुई। लेकिन आरोपी के बच्चे की चाहत नहीं होने के चलते उसने दवाई लाकर दी जिससे गर्भपात में उसे मदद मिली।

उच्च न्यायालय ने कहा है कि महिला को यह भी याद नहीं है कि वह कब गर्भवती हुई और कब गर्भपात कराया। इसके साथ ही साक्ष्यों की कमी और अन्य पहलुओं को देखते हुए उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ महिला की अपील को खारिज कर दिया। निचली अदालत के 24 मार्च 2018 को साक्ष्यों के अभाव में आरोपी को दुष्कर्म के आरोपों से बरी कर दिया था।

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