"khajuraho of Chhattisgarh" Bhoramdeo temple: हरी-भरी वादियों के बीच स्थापत्य कला के इस बेजोड़ नमूने को आप देखते रह जाएंगे

Update: 2022-10-22 07:51 GMT

Bhoramdeo

दिव्या सिंह

Khajuraho of Chhattisgarh" Bhoramdeo temple: छत्तीसगढ़ का गौरवशाली इतिहास जानना हो तो इसके मंदिरों के दर्शन करने चाहिए। ऐसा ही एक मंदिर है भोरमदेव मंदिर।कबीरधाम में स्थित, स्थापत्य कला की दृष्टि से बेजोड़ इस मंदिर की तुलना मध्य प्रदेश के "खजुराहो" और उड़ीसा के "कोणार्क" मंदिर से की जाती है।

एक हजार वर्ष पुराना यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहाँ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं। खासकर अष्टभुजी गणेश जी की मूर्ति तो पूरी दुनिया में सिर्फ भोरमदेव मंदिर में ही है।मंदिर के चारों ओर मैकल पर्वत श्रृंखला है। बारिश और बसंत ऋतु में ये चोटियां जब हरियाली से पूर्णतः आच्छादित हो जाती हैं तब मंदिर के चारों ओर का यह दृश्य आगंतुकों को असीम आनंद से भर देता है। तो आज विस्तार से जान लेते हैं भोरमदेव मंदिर के बारे में।

*कहां स्थित है भोरमदेव मंदिर -

भोरमदेव छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में कवर्धा से 18 कि.मी. दूर तथा रायपुर से 125 कि.मी. दूर चौरागाँव में स्थित है। इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोंड राजाओं के देवता भोरमदेव थे और वे भगवान शिव के उपासक थे। भोरमदेव , शिवजी का ही एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा।

*कैसी है मंदिर की स्थापत्य कला

भोरमदेव मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली में बनाया गया है। मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक पाँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है। तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौड़ाई 40 फुट है। मंडप के बीच में 4 खंभे हैं तथा किनारे की ओर 12 खंभे हैं, जिन्होंने मंडप की छत को संभाल रखा है। सभी खंभे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक हैं। प्रत्येक खंभे पर कीचन बना हुआ है, जो कि छत का भार संभाले हुए है।

मंडप में लक्ष्मी, विष्णु एवं गरुड़ की मुर्ति रखी है तथा भगवान के ध्यान में बैठे हुए एक राजपुरुष की मूर्ति भी रखी हुई है। मंदिर के गर्भगृह में अनेक मुर्तियां रखी हैं तथा इन सबके बीच में एक काले पत्थर से बना हुआ शिवलिंग स्थापित है। गर्भगृह में एक पंचमुखी नाग की मुर्ति है, साथ ही नृत्य करते हुए गणेश की मूर्ति तथा ध्यानमग्न अवस्था में राजपुरुष एवं उपासना करते हुए एक स्त्री-पुरुष की मूर्ति भी है। मंदिर के ऊपरी भाग का शिखर नहीं है। मंदिर के चारों ओर बाहरी दीवारों पर विष्णु, शिव, चामुंडा तथा गणेश आदि की मुर्तियां लगी हैं। इसके साथ ही लक्ष्मी, विष्णु एवं वामन अवतार की मूर्ति भी दीवार पर लगी हुई है। देवी सरस्वती की मूर्ति तथा शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की मूर्ति भी यहाँ लगी हुई है।

* कब हुआ निर्माण

मंदिर के मंडप में एक दाढी-मूंछ वाले योगी की बैठी हुई मुर्ति है। इसपर एक लेख लिखा है जिसमे इस मुर्ति के निर्माण का समय कल्चुरी संवत 8.40 दिया है। इससे यह पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण छठवें फणी नागवंशी राजा गोपाल देव के शासन काल में हुआ था। कल्चुरी संवत 8.40 का अर्थ 10 वीं शताब्दी के बीच का समय होता है।

* इसलिए खास है भोरमदेव मंदिर

भोरमदेव मंदिर को जिस नफ़ासत से बनाया गया है, वही इसे खास बनाता है। संपूर्ण मंदिर में सुंदर कारीगरी की गई है। मंदिर के गर्भगृह के तीनों प्रवेशद्वार पर लगाया गया काला चमकदार पत्थर इसकी आभा में और वृद्धि करता है।इसकी बाहरी दीवारों पर कामुक मुद्रा वाली मूर्तियाँ हैं। इन्हीं मूर्तियों की वजह से भोरमदेव मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है।यही नहीं,यहां सभी मूर्तियों को बड़े ध्यान पूर्वक बनाया गया हैं। उस काल की पूरी जीवन-शैली, नाच-गाना, भक्ति, शिकार करना और बहुत कुछ बड़ी लगन से यहां उकेरा गया है। जो खुशहाल जीवन के प्रतिक हैं। नाचते-गाते आदिवासियों की मूर्तियाँ उस काल की मुद्राओं को दिखाती हैं। मंदिर प्रांगण में प्रेम ही प्रेम का अहसास है।

वहीं इसकी बेजोड़ स्थापत्य कला के कारण उड़ीसा के सूर्य मंदिर से इसकी तुलना की जाती है। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा की इस मंदिर में रखे अष्टभुजी गणेश जी की मूर्ति पूरी दुनियाँ में सिर्फ भोरमदेव मंदिर में है। अष्टभुजी गणेश जी की मूर्ति को तांत्रिक गणेश जी भी कहते हैं। हरी-भरी घाटियों के बीच स्थित इस मंदिर के सामने एक सुंदर तालाब है जिसमें आप बोटिंग का आनंद ले सकते हैं। साथ ही मंदिर परिसर में एक सुंदर- सा उद्यान भी है। जहां कैंटीन की सुविधा भी उपलब्ध है। इस गार्डन में आपको एक नटराज की स्टैच्यू भी देखने को मिलेगी जो कि काफी आकर्षक है।

*भोरमदेव मंदिर कब जाएँ

भोरमदेव मंदिर में सालभर पर्यटकों, भक्तों का आना जाना लगा रहता है लेकिन सावन माह में यहाँ लोगों की रौनक देखते ही बनती है। शिवभक्त बड़े उत्साह से यहां आते हैं और नर्मदा के जल से शिव जी का जलाभिषेक करते हैं। बतौर पर्यटक आप कभी भी इस प्राचीन भोरमदेव मंदिर के दर्शन कर सकते हैं।

*कैसे पहुँचें भोरमदेव मंदिर

वायु मार्ग- स्वामी विवेकानन्द हवाई अड्डा रायपुर (134 किमी ) है।

रेल मार्ग- हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर रायपुर(134 किमी) समीपस्थ रेल्वे जंक्शन है।

सड़क मार्ग- रायपुर से (116किमी ) एवं कवर्धा (18 किमी ) से दैनिक बस सेवा एवं टैक्सियां उपलब्ध हैं।

*कहाँ ठहरें

कबीरधाम में छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल का रिसॉर्ट तो है ही, इसके अलावा सहसपुर लोहारा सर्किट हाउस , बोडला सर्किट हाउस, नया सर्किट हाउस, पंडरिया सर्किट हाउस भी हैं। अपने बजट के अनुसार निजी होटलों चयन किया जा सकता है।

आसपास देखने योग्य जगहें

मंडवा महल-

भोरमदेव के निकट दर्शनीय स्थलों में चौरग्राम के समीप आयताकार पत्थरों से बना मंडवा महल है ।यह सुंदर ऐतिहासिक स्मारक है।

छेरकी महल-

चौरग्राम ( चोरगाँव ) के निकट ईंट-पत्थर से बना एक मंदिर है , जो छेरकी महल के नाम से प्रसिद्ध है । इस मंदिर के पास एक भी बकरी नहीं है तब भी आप मंदिर के गर्भगृह में बकरी के शरीर से निकलने वाली गंध का अनुभव करते हैं । यही इस मन्दिर की विशेषता है । इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ था। स्थानीय बोली में बकरी को 'छेरी' कहा जाता है इसलिए यह मान्यता है कि यह मंदिर बकरी चराने वालों को समर्पित है।

लक्ष्मण झूला-

यहाँ पास ही लक्ष्मण झूला भी बना हुआ हैं। जहाँ घूमकर इस जगह की खूबसूरती को आप अच्छे से निहार सकते हैं।

आप भोरमदेव मंदिर देखने का प्रोग्राम बनाएं तो "भोरमदेव महोत्सव" के दौरान वहां जाना भी एक अच्छा ऑप्शन है। भोरमदेव के ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व को बनाये रखने के लिए भोरमदेव महोत्सव का आयोजन चैत्र त्रयोदशी (चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की तेरस) किया जाता है।महोत्सव में छत्तीसगढ़ की कला, संस्कृति, रीति रिवाजों की जानकारी मिलती है। साथ ही भजन-कीर्तन का अयोजन भी होता है, जिसमें छत्तीसगढ़ के आंचलिक कलाकारों को मौका दिया जाता है। हर वर्ष यहां मंदिर के प्राचीन सरोवर में दीपदान करने का एक अलौकिक रिवाज भी है जिसमें हिस्सा लेकर आप निश्चय ही आनंदित होंगे।

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