Gya Me Pinddaan Kab Karna Chahiye गया में पिंडदान कब करना चाहिए? जानिए महत्व और पितृ दोष से बचने के उपाय

Gya Me Pinddaan Kab Karna Chahiye पितृ पक्ष में शेष दिन अभी है, अगर आपने अभी तक श्राद्ध पिंडदान नहीं किया तो कर ले जानते है आखिर गया में ही क्यों करते है पिंडदान और पितृदोष से बचने के उपाय

Update: 2023-10-09 14:38 GMT

Gya Me Pinddaan Kab  Karna Chahiye: फल्गु नदी के तट पर बसा गया शहर पितृपक्ष और पिंडदान को लेकर अलग पहचान है। पुराणों के अनुसार पितरों के लिए खास आश्विन माह के कृष्ण पक्ष या पितृपक्ष में मोक्षधाम गयाजी आकर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और माता-पिता समेत सात पीढ़ियों का उद्धार हो। बता दें भगवान श्रीराम ने भी गयाजी में ही पिंडदान किया था।

शास्त्रों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है।

गया में पिंडदान कब करना चाहिए?

पुराणों के अनुसार पितरों के लिए आश्विन माह के कृष्ण पक्ष या पितृपक्ष में मोक्षधाम गयाजी आकर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और माता-पिता समेत सात पीढ़ियों का उद्धार होता है।जब सूर्य की छाया पैरों पर पडऩे लगे तभी श्राद्ध कना चाहिए। सुबह-सुबह या 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता। पूर्वजों की पूजा हमेशा दाएं कंधे में जनेऊ डालकर और दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके ही करनी चाहिए। एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और 17 दिन का कर्मकांड किया जाता है।

कैसे पड़ा गया नाम

कहते हैं कि गयासुर नामक असुर ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पापमुक्त हो जाएं। इस वरदान के चलते लोग भयमुक्त होकर पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन करके फिर से पापमुक्त हो जाते थे। इससे बचने के लिए यज्ञ करने के लिए देवताओं ने गयासुर से पवित्र स्थान की मांग की। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया। जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। यही पांच कोस जगह आगे चलकर गया बना।

कहते हैं कि गया वह आता है जिसे अपने पितरों को मुक्त करना होता है। लोग यहां अपने पितरों या मृतकों की आत्मा को हमेशा के लिए छोड़कर चले जाता है। मतलब यह कि प्रथा के अनुसार सबसे पहले किसी भी मृतक तो तीसरे वर्ष श्राद्ध में लिया जाता है और फिर बाद में उसे हमेशा के लिए जब गया छोड़ दिया जाता है तो फिर उसके नाम का श्राद्ध नहीं किया जाता है। कहते हैं कि गया में श्राद्ध करने के उपरांत अंतिम श्राद्ध बदरीका क्षेत्र के ‘ब्रह्मकपाली’ में किया जाता है।इसलिए गया में श्राद्ध किया जाता है

गया क्षेत्र में भगवान विष्णु पितृदेवता के रूप में विराजमान रहते हैं। भगवान विष्णु मुक्ति देने के लिए ‘गदाधर’ के रूप में गया में स्थित हैं। गयासुर के विशुद्ध देह में ब्रह्मा, जनार्दन, शिव तथा प्रपितामह स्थित हैं। अत: पिंडदान के लिए गया सबसे उत्तम स्थान है। पुराणों अनुसार ब्रह्मज्ञान, गयाश्राद्ध, गोशाला में मृत्यु तथा कुरुक्षेत्र में निवास- ये चारों मुक्ति के साधन हैं- गया में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नीगमन और उक्त संसर्ग-जनित सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं।पितरों का दाहकर्म संस्कार विधिवत नही हुआ है तो आपको भी यह दोष लग सकता हैं।

पितृ दोष कारण और निवारण

पितरों से अभिप्राय व्यक्ति के पूर्वजों से है । जो पित योनि को प्राप्त हो चुके है। ऎसे सभी पूर्वज जो आज हमारे मध्य नहीं, परन्तु मोहवश या असमय मृत्यु को प्राप्त होने के कारण, आज भी मृत्यु लोक में भटक रहे है। अर्थात् जिन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई है, उन सभी की शान्ति के लिये पितृ दोष निवारण (Pitra Dosha Niwaran) उपाय किये जाते है। ये पूर्वज स्वयं पीडित होने के कारण, तथा पितृयोनि से मुक्त होना चाहते है, परन्तु जब आने वाली पीढी की ओर से उन्हें भूला दिया जाता है, तो पितृ दोष उत्पन्न होता है ।

कुंडली नवम पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है । शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है  व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है।

पितृ दोष होने के अनेक कारण हो सकते है. जैसे:- परिवार में अकाल मृत्यु हुई हों, परिवार में इस प्रकार की घटनाएं जब एक से अधिक बार हुई हों या फिर पितरों का विधी विधान से श्राद्ध न किया जाता हों, या धर्म कार्यो में पितरों को याद न किया जाता हो, परिवार में धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न न होती हो, धर्म के विपरीत परिवार में आचरण हो रहा हो, परिवार के किसी सदस्य के द्वारा गौ हत्या हो जाने पर, या फिर भ्रूण हत्या होने पर भी पितृ दोष व्यक्ति कि कुण्डली में नवम भाव में सूर्य और राहू की स्थिति के साथ प्रकट होता है ।

पितृ दोष शान्ति के उपाय

पितृ पक्ष में पूर्वजों को मृत्यु तिथि अनुसार तिल, कुशा, पुष्प, अक्षत, शुद्ध जल या गंगा जल सहित पूजन, पिण्डदान, तर्पण आदि करने के बाद ब्राह्माणों को अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन, फल, वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करने से पितृ दोष ) शान्त होता है .

इस पक्ष में एक विशेष बात जो ध्यान देने योग्य है वह यह है कि जिन व्यक्तियों को अपने पूर्वजों की मृत्यु की तिथि न मालूम हो, तो ऎसे में आश्विन मास की अमावस्या को उपरोक्त कार्य पूर्ण विधि- विधान से करने से पितृ शान्ति होती है . इस तिथि को सभी ज्ञात- अज्ञात, तिथि- आधारित पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है .

पितृ दोष से बचने के उपाय

पीपल के वृक्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है. इसके साथ ही सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है.

 अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आवाहन करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है.

 सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है.

सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कूंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है.

गया तीर्थ में त्रीपिण्डी श्राद्ध करने से पितृ दोष हमेशा के लिए समाप्त होता है ।


पितृ पक्ष पर गया जी में अपने पितरों का पिंड दान करते लोग। हिंदू धर्म में मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि गया में श्राद्ध करवाने से व्यक्ति की आत्मा को निश्चित तौर पर शांति मिलती है। इसलिए ही इस तीर्थ को बहुत श्रद्धा और विश्वास के साथ गया जी कहा जाता है।गया जी का महत्व बहुत अधिक है। कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पिंडदान यहां हो जाता है। उसकी आत्मा को निश्चित तौर पर शांति मिलती है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि गया में श्राद्ध हो जाने से पितरों को इस संसार से मुक्ति मिलती है। गरुण पुराण के मुताबिक गया जी जाने के लिए घर से गया जी की ओर बढ़ते हुए कदम पितरों के लिए स्वर्ग की ओर जाने की सीढ़ी बनाते हैं।





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