Durva Ashtami Puja 2024 : गणपति जी का प्रिय दूर्वा... कल दूर्वा अष्टमी न चुके इस मौके को, जानिए किसने चढ़ाई थी बप्पा को सबसे पहले दूर्वा और दूर्वा चढ़ाने के नियम-लाभ

Durva Ashtami 2024 : गणेश चतुर्थी के 4 दिन बाद यानी भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की आठवीं तिथि पर दूर्वाष्टमी व्रत होता है. इस बार दूर्वाष्टमी का व्रत 11 सितंबर को रहेगा. इस दिन भगवान गणेश को खासतौर से दूर्वा चढ़ाने की परंपरा है. माना जाता है इस दिन दूर्वा से गणेशजी की विशेष पूजा करने से हर तरह की परेशानियां दूर होती हैं और मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं.

Update: 2024-09-10 10:52 GMT

Durva Ashtami 2024 : गणेश चतुर्थी के 4 दिन बाद यानी भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि पर दूर्वाष्टमी व्रत किया जाता है। इस बार ये 11 सितंबर को किया जाएगा। इस दिन भगवान गणेश को खासतौर से दूर्वा चढ़ाने की परंपरा है। माना जाता है इस दिन दूर्वा से गणेशजी की विशेष पूजा करने से हर तरह की परेशानियां दूर होती हैं और मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। इस तिथि से जुड़ी हुई पुराणों में कथा भी है। जिसमें राक्षस को मारने के बाद गणेशजी को दूर्वा चढ़ाई और तब से परंपरा चली आ रही है।

गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने के पीछे अनलासुर नाम के असुर से जुड़ी कथा है। कथा के मुताबिक अनलासुर के आतंक की वजह से सभी देवता और पृथ्वी के सभी इंसान बहुत परेशान हो गए थे। तब देवराज इंद्र, अन्य देवता और प्रमुख ऋषि-मुनि महादेव के पास पहुंचे। शिवजी ने कहा कि ये काम सिर्फ गणेश ही कर सकते हैं। इसके बाद सभी देवता और ऋषि-मुनि भगवान गणेश के पास पहुंचे।

देवताओं की प्रार्थना सुनकर गणपति अनलासुर से युद्ध करने पहुंचे। काफी समय तक अनलासुर पराजित ही नहीं हो रहा था, तब भगवान गणेश ने उसे पकड़कर निगल लिया। इसके बाद गणेश जी के पेट में बहुत जलन होने लगी। जब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर गणेश जी को खाने के लिए दी। जैसे ही उन्होंने दूर्वा खाई, उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई।

दूर्वा के बिना अधूरे हैं कर्मकांड और मांगलिक काम




 हिन्दू संस्कारों और कर्मकाण्ड में इसका उपयोग खासतौर से किया जाता है। हिन्दू मान्यताओं में दूर्वा घास प्रथम पूजनीय भगवान श्रीगणेश को बहुत प्रिय है। इसलिए किसी भी तरह की पूजा और हर तरह के मांगलिक कामों में दूर्वा को सबसे पहले लिया जाता है। इस पवित्र घास के बिना, गृहप्रवेश, मुंडन और विवाह सहित अन्य मांगलिक काम अधूरे माने जाते हैं। भगवान गणेश की पूजा में दो, तीन या पाँच दूर्वा अर्पण करने का विधान तंत्र शास्त्र में मिलता है।


गणपति को चढ़ने वाली दूर्वा कैसी होनी चाहिए ?


ज्योतिष के अनुसार श्री गणपति को अर्पित की जाने वाली दूर्वा कोमल होनी चाहिए। दूर्वा घास क्षत-विक्षत नहीं होनी चाहिए। दूर्वा के डंठल में 3, 5 या 7 जैसी विषम संख्या में पत्ते होने चाहिए।

दूर्वा की लंबाई कितनी होनी चाहिए?




ऐसा माना जाता है कि घर में गणपति की मूर्ति की लंबाई को ध्यान में रखते हुए ही दूर्वा की लंबाई होनी चाहिए। यदि मूर्ति यज्ञ की लकड़ी की ऊंचाई की हो, तो छोटी लंबाई की दूर्वा चढ़ाती चाहिए। दूसरी ओर, मूर्ति बड़ी होने पर भी दूर्वा की लंबाई ज्यादा होनी चाहिए। दूर्वा को लंबे समय तक ताजा रखने के लिए इसे पानी में भिगोएं फिर उसे अर्पित करें।

दूर्वा की संख्या कितनी होनी चाहिए?


दूर्वा को हमेशा विषम संख्या में चढ़ाना शुभ माना जाता है। इसकी संख्या 3, 5, 7 या 21 होनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि यह मूर्ति में शक्ति के अधिक अनुपात में प्रवेश करती है। आमतौर पर श्री गणपति को दूर्वा की 21 कोंपलें चढ़ाई जाती हैं।

यदि हम अंक ज्योतिष की मानें तो 2 +1 = 3 है। श्री गणपति अंक 3 से संबंधित हैं। चूंकि अंक 3 सृजन, पालन और विघटन का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए इसकी ऊर्जा से 360 तरंगों को नष्ट करना संभव है। ऐसी मान्यता है कि यदि दूर्वा को सम संख्या में चढ़ाया जाए तो पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता है।

दूर्वा चढ़ाने की सही विधि


यदि आप गणपति को दूर्वा चढ़ाती हैं तो श्री गणपति की मूर्ति का चेहरा छोड़कर उनका पूरा शरीर दूर्वा से ढका होना चाहिए। इस प्रकार, दूर्वा की सुगंध मूर्ति के चारों ओर फैल जाएगी। ऐसा माना जाता है कि चूंकि मूर्ति दूर्वा (दूर्वा के उपाय) से ढकी हुई होती है, इसलिए यह सुगंध गणपति की मूर्ति का रूप धारण कर लेती है और डूब घास भी गणपति के ही रूप में पूजी जाती है।

आप नियमित रूप से गणपति को 21 दूर्वा अर्पित कर सकती हैं और यदि आप बुधवार के दिन किसी मनोकामना की पूर्ति के साथ दूर्वा चढ़ाती हैं तो ये आपके लिए विशेष रूप से फलदायी हो सकता है। 21 दूर्वाओं का एक बंडल ब्रह्मांड से शक्तियों को आकर्षित करके पूरे घर में फैलाता है, जिससे घर में खुशहाली बनी रहती है।

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