Chaitra Navratri 2024 : सातवें दिन माता दुर्गा के सातवें स्वरूप कालरात्रि की पूजा अर्चना

मां के बाल लंबे और बिखरे हुए होते हैं. गले में माला है, जो बिजली की तरह चमकती रहती है. माता कालरात्रि के चार हाथ हैं. मां के इन हाथों में खड़क, लोहअस्त्र, वरमुद्रा और अभय मुद्रा है.

Update: 2024-04-14 09:45 GMT
Chaitra Navratri 2024 : सातवें दिन माता दुर्गा के सातवें स्वरूप कालरात्रि की पूजा अर्चना
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नवरात्रि के 9 दिनों में भक्त माता के नौ रूपों का विधि-विधान से पूजा करते हैं. नवरात्रि के सातवें दिन माता दुर्गा के सातवें स्वरूप कालरात्रि की पूजा अर्चना की जाती है. माता कालरात्रि का शरीर अंधकार की तरह काला होता है.

मां के बाल लंबे और बिखरे हुए होते हैं. गले में माला है, जो बिजली की तरह चमकती रहती है. माता कालरात्रि के चार हाथ हैं. मां के इन हाथों में खड़क, लोहअस्त्र, वरमुद्रा और अभय मुद्रा है.



 नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा की जाती है. इस दिन सुबह उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद माता की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं. मां को लाल वस्त्र अर्पित करें. मां को पुष्प अर्पित करें, रोली कुमकुम लगाएं.

मिष्ठान, पंचमेवा, पांच प्रकार के फल माता को भोग में लगाएं. माता कालरात्रि को शहद का भोग अवश्य लगाना चाहिए. इसके बाद माता कालरात्रि की आरती करें. माता कालरात्रि को रातरानी पुष्प अति प्रिय है. पूजन के बाद माता रानी के मंत्रों का जाप करना शुभ होता है

मन्त्र

‘दंष्ट्राकरालवदने शिरोमालाविभूषणे.चामुण्डे मुण्डमथने नारायणि नमोऽस्तु ते। या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता.नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः’

हिंदू मान्यताओं के अनुसार माता कालरात्रि के इन मंत्रों का जप करने से भक्तों के सारे भय दूर होते हैं. माता की कृपा पाने के लिए गंगा जल, पंचामृत, पुष्प, गंध, अक्षत से माता की पूजा करनी चाहिए. इस मंत्र के जप से माता कालरात्रि की कृपा सदैव अपने भक्तों पर बनी रहती है और माता अपने भक्तों को शुभ फल प्रदान करती है. इसी कारण से माता कालरात्रि का एक नाम शुभंकरी भी पड़ा है.

हिंदू धार्मिक पुराणों में उल्लेख मिलता है कि माता भगवती के कालरात्रि स्वरूप की उत्पत्ति दैत्य चण्ड-मुण्ड के वध के लिए हुई थी. कथा मिलती है कि दैत्य राज शुंभ की आज्ञा पाकर चण्ड-मुण्ड अपनी चतुरंगिणी सेना लेकर माता को पकड़ने के लिए गिरिराज हिमालय के पर्वत पर जाते हैं. वहां पर वह माता को पकड़ने का दुस्साहस करते हैं. इस पर मां को क्रोध आता है और उनका मुंह काला पड़ जाता है. भौहें टेढ़ी हो जाती है और तभी विकराल मुखी मां काली प्रकट होती हैं. उनके हाथों में तलवार और शरीर पर चर्म की साड़ी और नर मुंडों की माला विभूषित होती है. अपनी भयंकर गर्जना से संपूर्ण दिशाओं को गुंजाते हुए वे बड़े-बड़े दैत्यों का वध करती हुईं दैत्यों की सेना पर टूट पड़तीं है और उन सब का भक्षण करने लगती है.

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