Chaiti Chhath Puja 2024: कब है चैती छठ पूजा, जानिए नहाय खाय से लेकर सूर्य को अर्घ्य देने की तिथि
Chaiti Chhath Puja 2024: चैती छठ को भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. तो चलिए जानते हैं चैती छठ पूजा 2024 में कब होगी....
Chaiti Chhath Puja 2024: सूर्य की उपासना का महापर्व छठ पूजा पूरे देश में प्रसिद्ध है. छठ पूजा साल में दो बार मनाया जाता है. इस दिन पूरी श्रद्धा एवं उत्साह से भगवान सूर्य कर माँ षष्ठी की पूजा की जाती है. छठ महापर्व बिहार, यूपी, झारखंड, असम और कुछ अन्य हिस्सों में मनाया जाता है. धीरे - धीरे यह पूरे देश में मनाया जाने लगा है.
छठ महापर्व साल में दो बार होती है. एक चैती छठ और दूसरा कार्तिक छठ. कार्तिक माह में आने वाले छठ को कार्तिक छठ कहा जाता है. कार्तिक छठ कार्तिक माह शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाता है. जबकि चैत्र माह में पड़ने वाले छठ पर्व को चैती छठ कहा जाता है. चैती छठ चैत्र मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. वहीँ कार्तिक छठ कार्तिक माह शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाता है. चैती छठ को भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. तो चलिए जानते हैं चैती छठ पूजा 2024 में कब होगी....
चैती छठ पूजा 2024: तिथि (Chaiti Chhath 2024)
नहाय खाय - 12 अप्रैल, शुक्रवार
खरना - 13 अप्रैल, शनिवार
संध्या अर्घ्य - 14 अप्रैल, रविवार
सुबह का अर्घ्य - 15 अप्रैल, सोमवार
नहाय खाय: महापर्व छठ की शुरुआत नहाय खाय के दिन से ही होती है. इस दिन से महिलाएं प्याज-लहसुन का त्याग करती है. सुबह स्नान कर नए वस्त्र धारण कर सूर्य भगवान की पूजा करती हैं. उसके बाद कद्दू और दाल की सब्जी खाती है.
खरना: छठ महापर्व के दूसरे दिन खरना मनाया जाता है. शास्त्रों में खरना का मतलब शुद्धिकरण बताया गया है. इस महिलाएं दिन सुबह से लेकर शाम तक निर्जला व्रत रखती हैं शाम के समय पारण करती हैं. खरना के दिन व्रत कर रही महिलाएं सबसे पहले नए मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ और चावल की खीर बनाती हैं. इसके बाद इस खीर का भोग छठी मैया को लगाया जाता है. खरना के दिन से 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है.
संध्या अर्घ्य: संध्या अर्घ्य छठ पूजा का तीसरा दिन होता है. इसे पहला अर्घ्य भी कहते हैं। इस दिन छठ पूजा का विधि विधान से प्रसाद बनाया जाता है. संध्या अर्घ्य के दिन व्रती घाट पर जाती हैं. डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं.
उषा अर्घ्य: उषा अर्घ्य छठ महापर्व का चौथा और आखरी दिन होता है. इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इससे ही व्रत का पारण और समापन होता है. व्रती दूध का शरबत पीकर और प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करते है.