Akhshya Tritiya Special 2024 : क्या आप जानते हैं अक्षय तृतीया से जुड़ी पौराणिक कहानियाँ और उनका महत्व

पांच कारण ऐसे हैं, जिन्हें अक्षय तृतीया से जोड़कर देखा जाता है। इन पांच कारणों से अक्षय तृतीया मनाई जाती है।

Update: 2024-05-04 15:42 GMT

अक्षय तृतीया इस साल 10 मई को है। अक्षय तृतीया पर माता लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है।

इसके अलावा पांच कारण ऐसे हैं, जिन्हें अक्षय तृतीया से जोड़कर देखा जाता है। इन पांच कारणों से अक्षय तृतीया मनाई जाती है।

साथ ही इन अक्षय तृतीया से जुड़ी इन पांच पौराणिक कहानियों का विशेष महत्व है। आइए, जानते हैं अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है और क्या है इससे जुड़ीं 5 पौराणिक कहानियां।​


भगवान शिव ने कुबेर को दिया था धनपति होने का आशीर्वाद

कुबेर को धन का देवता माना जाता है। पौराणिक कहानियों में इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि सोने की लंका कुबेर की हुआ करती थी लेकिन कुबेर के भाई रावण ने बलपूर्वक कुबेर से सोने की लंका छीन ली थी। कुबेर भी भगवान शिव के भक्त माने जाते हैं। जब कुबेर ने अपने मन की व्यथा भगवान शिव से कही, तो भगवान शिव ने कहा कि जिस समुद्र से एक बूंद जल लेने से समुद्र कभी खाली नहीं हो सकता, उसी तरह कुबेर से लंका छीन लेने से रावण धन का देवता नहीं बन सकता। भगवान शिव ने कुबेर को धनपति होने का आशीर्वाद दिया था। साथ ही उन्हें अलकापुरी का राज्य दिया गया और स्वर्ग के वित्त को संभालने की जिम्मेदारियां दी गई थीं। उस दिन को अक्षय तृतीया का शुभ दिन माना गया। माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर कुबेर की पूजा करने से अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

​अक्षय तृतीया पर सूर्य देवता ने युधिष्ठिर को दिया था अक्षय पात्र​

अक्षय का अर्थ होता है अविनाशी यानी जिसे कभी खत्म नहीं किया जा सकता। महाभारत के आरण्यपर्व के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सूर्य देव ने युधिष्ठिर को अक्षय पात्र दिया था। अक्षय पात्र यानी ऐसा बर्तन जिसमें रखा अन्न कभी भी खत्म नहीं होता था। तभी वनवास के दौरान इतने अभावों में भी द्रौपदी अक्षय पात्र होने के कारण ही पांडवों सहित कुंती को भोजन कराया करती थी। अक्षय पात्र में रखा अन्न कभी खत्म नहीं होता था।​

नर-नारायण के इसी दिन सिखाया था तपस्या करने का पाठ​

नर नारायण नाम के दो संत भाइयों ने संसार को इसी दिन तपस्या का पाठ सिखाया था। नर नारायण ने संसार में उपस्थित शारीरिक और मानसिक दुखों को देखा, वो इन सभी चीजों से पार लगना चाहते थे, इसलिए भौतिकों प्रलोभनों को छोड़कर हिमालय पर तपस्या करने के लिए निकल गए। नर नारायण उत्तराखंड में पवित्र स्थली बदरीवन और केदारवन में तपस्या करने चले गए। उसी बदरीवन में आज बद्रीकाश्रम बना है, जिसे बद्रीनाथ भी कहा जाता है। जब वे तपस्या कर रहे थे, तो हिमालय से एक बर्फ का टुकड़ा टूटकर दोनों भाइयों के ऊपर गिरने लगा, यह देखकर धरती पर विचरण कर रही देवी लक्ष्मी ने दोनों को बचाने के लिए बेर के पेड़ का रूप लिया।

​अक्षय तृतीया पर पृथ्वी के गर्भ से मिला था सोना

​पौराणिक कहानियों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जिस दिन पृथ्वी के गर्भ से सोना निकला था, उस दिन को अक्षय तृतीया माना गया क्योंकि सोना अक्षय माना जाता है, जिसे कभी कोई नष्ट नहीं कर सकता। वहीं, सोने का महत्व कभी भी कम नहीं होता। हजारों साल पहले भी सोना मूल्यवान वस्तु थी और आज भी सोना मूल्यवान है। सोने खरीदना भाग्य का प्रतीक माना जाता है।​


अक्षय तृतीया पर हुआ था भगवान परशुराम का जन्म​

परशुराम जी त्रेता युग में एक ब्राह्मण ऋषि के घर जन्मे थे। महाभारत और विष्णुपुराण के अनुसार परशुराम जी का मूल नाम राम था किन्तु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान किया तभी से उनका नाम परशुराम पड़ गया। मान्यता है कि परशुराम जी का जन्म जिस दिन हुआ था, उसे अक्षय तृतीया कहा गया क्योंकि परशुरामजी चिरंजीवी है और उनकी आयु अक्षय है, इसलिए अक्षय तृतीया को चिरंजीवी तिथि भी कहा जाता है।

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