मौत की पार्टी?...

Update: 2021-11-27 23:15 GMT

संजय के दीक्षित

तरकश, 28 नवंबर 2021. अचानकमार टाईगर रिजर्व में बाघ के शावक की मौत हुई। जांच के लिए जंगल विभाग के सीनियर अफसर एटीआर पहुंचे। सुना, साथ में साब के साथ पत्नी-बच्चे भी। सीसीएफ और अगल- बगल के चार डीएफओ साब के खुशामद में हाजिर थे। जंगल में टेंट लगा रात को जबरदस्त पार्टी हुई। अगर ऐसा हुआ तो ये गंभीर है। सरकार को पड़ताल कर कार्रवाई करनी चाहिए। शावक के पोस्टमार्टम से पहले जंगल में मंगल...वाकई ये संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है।

मंच खचाखच, श्रोता सफाचट

लगता है, पीसीसी चीफ मोहन मरकाम अपनी अलग लकीर खींचने की फेर में हैं। सबने देखा ही जब पूरा मंत्रिमंडल और विधायक दिल्ली में थे, तब वे अचानकमार के जंगल मेें आदिवासियों के बीच मांदर में थाप देते थिरक रहे थे। तो दो दिन पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बस्तर दौरे में थे तो मोहन मरकाम जांजगीर में सभा कर रहे थे। कांग्रेस भवन में झूमाझटकी मामले में सन्नी अग्रवाल को निलंबित करने में उन्होंने जरा सी देर नहीं लगाई। पब्लिक मीटिंगों में उनका अंदाज भी बदला हुआ है। नेताओं को भी नसीहत देने में कोई मरौव्वत नहीं बरत रहे। पामगढ़ की सभा में मंच पर पैर रखने की जगह नहीं थी वहीं श्रोताओं की कुर्सियां खाली पड़ी थी। इस पर वे यह कहने से नहीं चूके कि जितने लोग मंच पर बैठे हैं, वे अगर पांच-पांच लोग लेकर आए होते तो कुर्सियां भर गई होती।

टिकिट उन्हें ही...

पीसीसी चीफ मोहन मरकाम जो कह रहे हैं और अगर वो टिकिट वितरण का मापदंड बन गया तो अगले विधानसभा चुनाव के दावेदारों की मुश्किलें बढ़ जाएगी। बिलासपुर संभाग के दौरे में कई जगहों पर उन्होंने कहा है कि टिकिट उन्हें ही दिया जाएगा, जो विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अपने घर के आसपास के पांच बूथों का वोटों का फिगर लेकर आएंगे। उनका कहना है, जो नेता अपने आसपास के बूथों पर पार्टी को बढ़त नहीं दिला सकता, वो चुनाव क्या जीत पाएगा। अगर ऐसा हुआ तो कई कई बड़े नेता भी निबट जाएंगे। लेकिन, पीसीसी चीफ के ये तेवर से ऐसा तो नहीं कि वर्तमान सियासी परिदृश्य में वे अपना भविष्य टटोल रहे हैं।

एसपी को सीएसपी का चार्ज

पिछली सरकार में अमरनाथ उपध्याय को सरकार ने पुलिस प्रमुख तो बना दिया था मगर लंबे समय तक उन्हें प्रशासन के दायित्व से मुक्त नहीं किया। भोले-भाले पंडितजी ने कुछ बोला भी नहीं, पुलिस का प्रशासन संभाले रहे। दरअसल, उपध्याय डीजीपी बनने से पहले एडीजी प्रशासन थे और सरकार ने जब उन्हें डीजीपी बनाया तो भूल गई कि प्रशासन किसी और को दिया जाए। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। डीएम अवस्थी को हटाकर सरकार ने अशोक जुनेजा को डीजीपी बना दिया मगर उनके पास सशस्त्र बल का चार्ज यथावत है। पुलिस का मुखिया किसी विभाग का भी हेड रहे, तो गरिमापूर्ण नहीं लगता। अगर चीफ सिकेरट्री को किसी विभाग का सिकरेट्री का अतिरिक्त प्रभार दे दिया जाए, उसका क्या हाल होगा। जुनेजा भी ऐसा ही कुछ महसूस कर रहे होंगे।

एक लिस्ट और

अशोक जुनेजा के डीजीपी बनने के बाद एक छोटी लिस्ट निकली...जिसमें एडीजी प्रदीप गुप्ता को लोक अभियोजन से और डीआईजी संजीव शुक्ला को पुलिस एकेडमी से पुलिस मुख्यालय वापिस बुलाया गया। बताते हैं, एक लिस्ट और निकलेगी, जब अगले महीने स्पेशल डीजी आरके विज रिटायर होंगे। विज को टेम्पोरेटी तौर पर लोक अभियोजन भेजा गया था। 31 दिसंबर को उनके रिटायरमेंट से लोक अभियोजन भी खाली हो जाएगा। उसके बाद अशोक जुनेजा का सशस्त्र बल किसी एडीजी को दिया जाएगा। हो सकता है, पवनदेव को पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन से पुलिस मुख्यालय वापिस बुलाया जाए।

प्रदीप गुप्ता का कद

95 बैच के सौम्य, शालीन आईपीएस अधिकारी प्रदीप गुप्ता से पता नहीं, क्या चूक हो गई थी कि उन्हें पीएचक्यू से लोक अभियोजन भेज दिया गया था। अब उनकी धमाकेदार वापसी हुई है। धमाकेदार इसलिए कि उन्हें योजना और प्रबंध का दायित्व सौंपा गया है। पुलिस महकमे में डीजीपी के बाद खुफिया और फिर योजना प्रबंध सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। हथियार खरीदी से लेकर सूबे की पुलिस की जरूरतों को मुहैया कराने की जिम्मेदारी योजना और प्रबंध विभाग के हेड की होती है। प्रदीप रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर के आईजी रह चुके हैं। दुर्ग में अभिषेेक हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में उनकी खासी भूमिका रही।

कल्लूरी की वापसी?

94 बैच के आईपीएस एसआरपी कल्लूरी हैं तो पुलिस मुख्यालय में लेकिन, पोस्टिंग के नाम पर कुछ खास नहीं है। ट्रेनिंग है। इसमें वे क्या करेंगे, जब ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट याने एकेडमी का डायरेक्टर आठ साल सीनियर डीएम अवस्थी बन गए हैं। अशोक जुनेजा जब बिलासपुर एसपी थे और उनका बहुत अच्छा चल रहा था, तब कल्लूरी कोरबा से आकर उन्हें रिप्लेस किया था। यह कड़वा सच हैं....जुनेजा को भारी मन से दुर्ग जाना पड़ा। लेकिन, जुनेजा टीम वर्क में विश्वास करते है...कई दफा बातचीत में कह चुके हैं, काम लेना आना चाहिए, अफसर काम कैसे नहीं करेंगे। ऐसे में, हो सकता है वे दिवंगत डीजीपी ओपी राठौर की तरह कल्लूरी को उनकी क्वालिटी के हिसाब से कोई अहम जिम्मेदारी देने का प्रयास करें। राठौर उस समय कल्लूरी को बलरामपुर का एसपी बनवाने में कामयाब हुए थे, जब भाजपा सांड के लाल कपड़े की तरह कल्लूरी के नाम पर बिदकती थी। और यह भी सत्य है कि कल्लूरी ने सरगुजा से माओवादियों के पांव उखाड़ दिए।

वीवीआईपी कलेक्टर

ब्यूरोक्रेसी में मुख्यमंत्री का जिला वीवीआईपी जिला कहा जाता है और वहां के कलेक्टर को वीवीआईपी कलेक्टर। पिछले महीने वीवीआईपी कलेक्टर की कुर्सी अचानक हिलने लगी तो लोग चौंके। ब्यूरोक्रेसी में भी मान लिया गया कि सर्वेश की दुर्ग से बिदाई हो जाएगी। लगता है, यह बात मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक पहुंची और पिछले हफ्ते दुर्ग दौरे में उन्होंने न केवल भूरे की भूरी-भूरी प्रशंसा की बल्कि कोरोना काल में दमदारी से उनके किए गए काम के लिए ताली भी बजवाई। इससे यह तो साफ हो गया है कि सर्वेश की कुर्सी को फिलहाल कोई खतरा नहीं है। ये जरूर है कि सर्वेश के लिए ताली बजवाना उन अफसरों को धक्का लगा होगा, जिन अधिकारियों का नाम दुर्ग के लिए चल रहा था।

कमिश्नर का कमाल!

कलेक्टर, कमिश्नर कॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री ने स्पष्ट निर्देश दिया था, ढाई-तीन साल से जमे अमले को हटाया जाए। लेकिन, अगले महीने 31 दिसंबर को रिटायर होने जा रहीं सरगुजा कमिश्नर ने गजब ढा दिया। जशपुर के दिव्यांग छात्रावास में रेप और छेड़छाड़ की घटना में निलंबित डीएमसी को डेढ़ महीने के भीतर न केवल रिस्टेट कर दिया बल्कि उसी पोस्ट पर, जिस पर डीएमसी 2015 से जमे हुए हैं। कमाल है, आदिवासी महिला कमिश्नर और आदिवासी मूक-बधिर बच्ची से दुष्कर्म...उसके बाद भी डीएमसी को बहाल करते समय कमिश्नर मैडम का मन कैसे नहीं डोला। ठीक है, मैम्म आप रिटायर होने वाली हैं, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं...।

अंत में दो सवाल आपसे

1. अगले महीने रिटायर हो रहे स्पेशल डीजी आरके विज को क्या पुलिस हाऊसिंग कॉर्पोरेशन की पोस्टिंग मिल सकती है?

2. किस मंत्री के बारे में कहा जा रहा, उन्होंने ट्रांसफर की दुकान खोल ली है?

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