सब ठहर तो गया है पर.. लौट आई गौरैया.. दिखने लगी है खूबसूरत तितलियाँ.. कुदरत कुछ समझा रही है समझिए

Update: 2020-04-02 08:38 GMT

याज्ञवल्क्य मिश्रा npg. news

रायपुर,2 अप्रैल 2020। जबकि लॉकडॉउन है, और सुरक्षा के लिए और कोई विकल्प नहीं है, यह भी सही है कि इस लॉकडॉउन ने पूरा सिस्टम रोक दिया है, इस लॉकडॉउन ने कमजोर तबके को परेशान भी किया है, लेकिन इन सबके बीच कुछ और भी है जो हो रहा है। कुदरत मुकम्मल संकेत दे रही है, एक खूबसूरत संकेत।

क्या आप उस गौरेया को देख पा रहे हैं अब जो जाने कहाँ चली गई थी, नन्ही चिड़ियों की चहचहाहट जो जाने कब आपने आख़िरी बार सुनी थी, वो लौट आई है.. वे तितलियाँ खूबसूरत कुदरती नक़्क़ाशी ली हुई तितलियाँ वे भी मंडराने लगी हैं। सोचिए कि कहाँ चले गए थे ये सब.. राजधानी जो कांक्रीट का जंगल बनी है, वहाँ से यह सब रुठ कर या डर कर कहाँ चले गए थे।
आपको याद है ज़रा कुछ सौ किलोमीटर का सफ़र कर उत्तर छत्तीसगढ़ जाते थे आप.. सरगुजा जशपुर बलरामपुर। पर देखिए पॉश कहलाती कॉलोनीयों में, शंकर नगर सिविल लाईंस पुरानी बस्ती डंगनिया लौट आई हैं चहचहाहट।

यही आवाज़ें आपको दूर सरगुजा में सुनाई देती थीं तो आप मोहित हो जाते थे न। सड़कें ख़ाली हैं.. प्रदूषण नहीं है.. जाने किसकी तलाश में अंतहीन दौड़ती हमारी आपकी भीड़ नहीं है। तो वे चले आएँ है जो चले गए थे रुठ कर या शायद डर कर।

हमने अपनी दौड़ में सब कुछ घेर लिया, जहां देखिये वहाँ इंसानी सर.. पेड़ पौधे प्रकृति की नेमत हैं, जंगल सदियों में बनने वाला कुदरती उपहार है। विकास का अजीब पैमाना लाए हम.. जहां कुदरत को ही नकारने की अजीब सनक सवार हुई। संतुलन अनिवार्य है, आप नहीं करेंगे तो कुदरत कर देगी। सनातन धर्म प्रकृति को ईश्वर का स्वरुप मानता है और सनातन धर्म के ग्रंथों में दर्ज है “क्रिया की प्रतिक्रिया अपरिहार्य है अनिवार्य है”

हर हादसा सबक़ देता है, वायरस का संक्रमण और उससे बचाव के लिए घरों में रहना भी सबक़ है। यकीनन आप अब बेहतर जान पाए होंगे कि बूजूर्गों के पास वक्त गुज़ारना कितना पूरसूकून है, आप अपनी बिटिया की ड्राइंग को बहुत गौर से देख पा रहे होंगे, आप समझ पाएंगे कि पत्नी क़िस व्यस्तता में भी थकती नही और मुस्कुराहट उसकी कैसे घर को ताकत देती है।
नीरव सन्नाटे को चीरती खूबसूरत चहचहाहट आपको कह रही है कि संतुलन रखिए। कुदरत का ख़्याल ही नहीं बल्कि लिहाज़ भी रखिए।

निश्चित तौर पर कमजोर तबके के लिए यह तकलीफ़ का दौर है, तो यह भी कुदरत कह रही है अपने घर के खाने में दो थाली उस तबके के लिए भी रखिए। ज़रा पूछ लीजिए पड़ोसी से उसे कुछ कमी तो नही।

करिए ऐसा आपको कुदरत सहजीविता अनुशासन और पारिवारिक मूल्यों को समझा रही है, कभी किया नहीं न .. इसलिए कुदरत सख़्त है.. पर करिए अच्छा लगेगा। NPG आपसे आग्रह करता है घर को समझिए.. कुदरत का लिहाज़ करिए। इन नन्ही चिड़ियों की चहचहाहट.. गौरेया का फुदकना.. तितलियों के लौटना.. इन सबका स्वागत करिए.. और ईमानदार कोशिश करिए कि ये फिर रुठ कर ना जाएँ।

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